*यह मनुष्य शरीर जीते जी आत्म कल्याण, मुक्ति-मोक्ष प्राप्त करने के लिए मिला है।*

*जयगुरुदेव*
*प्रेस नोट/ दिनांक 26.08.2021*
आसनसोल, पश्चिम बंगाल

*यह मनुष्य शरीर जीते जी आत्म कल्याण, मुक्ति-मोक्ष प्राप्त करने के लिए मिला है।*

यह मनुष्य जीवन सुख-शांति से कट जाए और फिर इस शरीर का समय पूरा होने पर आत्मा नरकों व चौरासी में न चली जाए, इसका सरल उपाय बार-बार बताने-समझाने वाले,
वक़्त के पूरे संत सतगुरु उज्जैन के *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने 25 फ़रवरी 2021 को आसनसोल, पश्चिम बंगाल में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम *(jaigurudevukm)* पर प्रसारित संदेश में बताया कि,
राजा जनक विदेही कहलाए। साधना में जब उन्होंने जीवों को नर्कों में चिल्लाते हुए देखा तो अपनी ढाई घड़ी की साधना, आध्यात्मिक शक्ति जीवों को दिया और उनका उद्धार किया।

इसी तरह नानक साहब एक बार नर्कों में गये। उन्होंने वहां के सारे जीवों का उद्धार कर दिया था, पूरा नरक ही खाली कर दिया था। उनका एक जीव गलत कामों की वजह से नरक में फंस गया था। कहा जाता है संत जिसको पकड़ते हैं फिर छोड़ते नहीं हैं, पार कर ही दम लेते हैं।

तो निकालने के लिए गए, पैर लटकाया और कहा कि अंगूठा पकड़ करके निकल चल, मैं तेरे को निकालने के लिए आया हूं। पर वो परमार्थी जीव था। उसने आवाज लगा दिया कि नरक में जितने भी जीव थे, सब एक दूसरे के पैर का अंगूठा पकड़ लो और मेरा अंगूठा पकड़ लो। मैं गुरु जी का अंगूठा पकड़ने जा रहा हूं। निकल चलो, मौका अच्छा है।
नानक जी ने एतराज भी किया कि तुझको निकालने के लिए आया, तूने सब का ठेका ले लिया। क्या कर रहा है? तो बोला आप जैसे समरथ संत नरक में आए, इन जीवों का उद्धार नहीं हुआ तो इनको कौन पार करेगा।

*नानक जाए अंगूठा बोरा। सब जीवों का किया निबेरा।।*

आप समझो! एक बार सबको पार किया था। तो यह कभी-कभी हुआ है, कभी होगा। हमेशा यह नहीं होता है। नर्कों की सजा तो भोगनी पड़ती है, बड़ी भयंकर होती है।
वहां से जो छुटकारा मिलता है तो कुत्ता, बिल्ली, मुर्गा, भैंसा, बकरा आदि की योनि में यही जीवात्मा डाल दी जाती है।
इसीलिए तो कहते हैं कि किसी भी रूप में कोई भी अगर उस परमात्मा को मानते हो, किसी भी नाम से उसको पुकारते हो, तनिक भी आपके अंदर उस परमात्मा के प्रति प्रेम है, श्रद्धा है तो किसी भी जीव को मत सताओ, दया करो। दया धर्म को अपना लो।
*दया धर्म तन बसै शरीरा। ताकि रक्षा करे रघुवीरा।।*

*यदि आप जीवों पर दया नहीं करोगे तो दया मांगने के हकदार भी नहीं होंगे।*

जिसके अंदर दया होती है, उसकी रक्षा भगवान, परमात्मा करता है। लेकिन जब दया नहीं करोगे तो दया मांगने के हकदार भी नहीं होगे। दया लेने का समय जब निकल जाएगा तब आपको दया मिलने वाली नहीं है।
फिर तो आप इंसाफ के तख़्त के सामने आप खड़े किए जाओगे। वहां कोई जोर - सिफारिश - पहचान नहीं चलेगी। वहां कोई वकील छुड़ाने वाला नहीं मिलेगा, फिर तो सजा मिल ही मिल जाएगी।

*चौरासी लाख योनियों में मिले सर्वश्रेष्ठ मनुष्य शरीर से जीवों पर दया करो।*

इसलिए जीवों पर दया करने वाली बात आई है। सब जीवों पर दया करना चाहिए, क्योंकि यही आत्मा जो हमारे - आपके अंदर है, वही जानवरों में भी है। उसमें रहना पड़ता है।
आपको यह नहीं पता है कि पिछले जन्मों में कहां थे ? मां के पेट में जब थे तब सब दिखाई पड़ता था। लेकिन यह काल - माया का लोक है। भूल - भ्रम का पर्दा पड़ गया तो दिखाई नहीं पड़ता है लेकिन नर्कों में जाना पड़ता है।
नर्कों से जब छुटकारा मिलता है तो चौरासी लाख योनियों में जाना पड़ता हैं। सबसे श्रेष्ठ योनि मनुष्य योनि है। गाय और बैल की योनि के बाद यह मनुष्य शरीर मिलता है, बहुत भटकना पड़ता है।
*कोटी जन्म जब भटका खाया। तब यह नर तन दुर्लभ पाया।।*

*यह मनुष्य शरीर जीते जी आत्म कल्याण, मुक्ति-मोक्ष प्राप्त करने के लिए मिला है*

यह नर तन जो आपको मिला है? यह देव दुर्लभ शरीर है। देवता इसके लिए चौबीसों घंटा तरसते रहते हैं कि थोड़े समय के लिए अगर हमको यह मनुष्य शरीर मिल जाए तो हम अपना असला काम बना लें।
अपना असला काम कौन सा काम है? यही कि शरीर के रहते - रहते अपनी आत्मा को उस परमात्मा तक पहुंचा दो।
बहुत से लोग रुपया पैसा को ही सब मान लेते हैं। यह मनुष्य शरीर खाने-पीने, मौज मस्ती के लिए नहीं मिला। यह काम तो जानवर भी करते हैं, खाते हैं, बच्चा पैदा करते हैं और दुनिया-संसार से चले जाते हैं।
*मनुष्य का शरीर अपनी आत्मा के कल्याण के लिए मिला है, इस को मुक्ति-मोक्ष दिलाने के लिए मिला है।*

sant-updesh


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