*जयगुरुदेव | आरती संकलन* (Post no.2.)
दया करो दाता मेरे, चित्त चरनन लागे।१
जन्म जन्म रही भूल में, नहीं पाया भेदा,
काल करम के जाल में, रही भोगत खेदा।२
जगत जीव भरमत फिरें, नित चारों खानी,
ज्ञानी जोगी पिल रहे, सब मन की घानी।३
भाग जगा मेरा आदि का, मिले सतगुरु आई,
राधा स्वामी धाम का, मोहि भेद जनाई।४
ऊंच से ऊंचा देश है, वह अधर ठिकानी,
बिना सन्त पावे नहीं, स्रुत शब्द निशानी।५
राधा स्वामी नाम की, मोहि महिमा सुनाई,
विरह अनुराग जगाई के, घर पहुँचूं भाई।६
साध संग कर सार रस, मैंने पिया अघाई,
प्रेम लगा गुरु चरण में, मन शांति न आई।७
तड़प उठे बेकल रहूं, कस पिया घर जाई,
दरशन रस नित नित लहूँ, गहे मन थिरताई।८
सुरत चढ़े आकाश में, करे शब्द बिलासा,
धाम-धाम निरखत चले, पावे निज घर वासा।९
यह आसा मेरे मन बसे, रहे चित्त उदासा,
विनय सुनो कृपा करो, दीजै चरण निवासा।१०
तुम बिन कोई समरथ नहीं, जासे मांगू दाना,
प्रेम धार बरसा करो, खोलो अमृत खाना।११
दीन दयाल दया करो, मेरे समरथ स्वामी,
शुकर करुं गावत रहूं, नित राधा स्वामी।१२
कुल कुटुम्ब सब अपना तारती।।
ममता चादर छिन में फाड़ती।।
रोग दोष सब छिन में जारती।।
दीपक बाला दरस नेम का।।
राग सुनाया ध्यान जुक्ती का।।
नैनन मै ज्यों पुतली धरती।।
मै दरबारी स्वामी दर की।।
लउआ नाम मै अपना धरती।।
सेत पदम में सूरत . देई।।
खिल खिल देखूँ बिमल तमाशा।।
तन मन अपना उन पर वारू।।
पहुँच गई सतगुरु दरबारी।।
★ Aaj Mera Jaga Bhag Apaar ★
मिले मोय सतगुरु परम दयार ।।१
हुई मैं उन चरनन बलिहार,
उतारा जन्म जन्म का भार ।।२
गुरु ने कीन्हा अद्भुत प्यार,
नाम का भेद बताया सार ।।३
आरती सतगुरु करुंगी संभार,
प्रेम की थाली कर मे धार ।।४
शब्द की लीन्ही जोति जगाय,
करुँ अब आरत चित्त लगाय ।।५
सुरत मन चले गगन की ओर,
सुना जब घट में अनहद शोर ।।६
सहस दल पहुँची सतगुरु लार,
निरंजन ज्योति किया दीदार ।।७
शंख धुन सुनी बंक के द्वार,
खोल पट पहुँची गुरु दरबार ।।८
गुरु का रुप लखा निज सार,
सुनी धुन किंगरी सारं सार ।।९
सुन्न का खोला जाकर द्वार,
मान सर न्हाय हुई सर सार ।।१०
पुरुष ने कीन्हा अद्भुत प्यार,
महा सुन्न पहुँची सतगुरु लार।।११
भंवर गढ़ लीन्ह सुरत नें जाय,
सूर जहाँ सेत सेत दरसाय ।।१२
सत्त पद चली बीन की लार
रुप लख पाया पुरुष अपार ।।१३
कहूँ का शोभा बर्निन जाय,
देखि छवि कोटि भानु शरमाय।।१४
हुई मैं अलख अगम के पार,
मिला राधास्वामी का दीदार.।।१५
एक टिप्पणी भेजें
0 टिप्पणियाँ
Jaigurudev