*जयगुरुदेव | आरती संकलन* (Post no.2.)

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★ Bar Bar Karu Vinti ★


बार बार करुं विनती, राधा स्वामी आगे,
दया करो दाता मेरे, चित्त चरनन लागे।१

जन्म जन्म रही भूल में, नहीं पाया भेदा,
काल करम के जाल में, रही भोगत खेदा।२

जगत जीव भरमत फिरें, नित चारों खानी,
ज्ञानी जोगी पिल रहे, सब मन की घानी।३

भाग जगा मेरा आदि का, मिले सतगुरु आई,
राधा स्वामी धाम का, मोहि भेद जनाई।४

ऊंच से ऊंचा देश है, वह अधर ठिकानी,
बिना सन्त पावे नहीं, स्रुत शब्द निशानी।५

राधा स्वामी नाम की, मोहि महिमा सुनाई,
विरह अनुराग जगाई के, घर पहुँचूं भाई।६

साध संग कर सार रस, मैंने पिया अघाई,
प्रेम लगा गुरु चरण में, मन शांति न आई।७

तड़प उठे बेकल रहूं, कस पिया घर जाई,
दरशन रस नित नित लहूँ, गहे मन थिरताई।८

सुरत चढ़े आकाश में, करे शब्द बिलासा,
धाम-धाम निरखत चले, पावे निज घर वासा।९

यह आसा मेरे मन बसे, रहे चित्त उदासा,
विनय सुनो कृपा करो, दीजै चरण निवासा।१०

तुम बिन कोई समरथ नहीं, जासे मांगू दाना,
प्रेम धार बरसा करो, खोलो अमृत खाना।११

दीन दयाल दया करो, मेरे समरथ स्वामी,
शुकर करुं गावत रहूं, नित राधा स्वामी।१२


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★ Apne Swami Ki Me Karat Aarti ★


अपने स्वामी की मै करत आरती।
कुल कुटुम्ब सब अपना तारती।।

काल कर्म सिर धौल मारती।
ममता चादर छिन में फाड़ती।।

हँस हँस स्वामी हिये में धारती।
रोग दोष सब छिन में जारती।।

थाल  सजाया  उमँग  प्रेम का।
दीपक   बाला   दरस नेम का।।

भोग   धराया भाव  भक्ति का।
राग  सुनाया ध्यान  जुक्ती का।।

दृष्टि   जोड़ कर  दर्शन करती।
नैनन   मै   ज्यों  पुतली धरती।।

छबि स्वामी   की बडी़ चहीती।
मै  दरबारी    स्वामी  दर की।।

लौ    लगाय  चरनन में रहती।
लउआ नाम मै अपना धरती।।

श्याम    कंज में    त्यागा येहि।
सेत   पदम   में    सूरत . देई।।

सुरत   चढाय   गई   आकाशा।
खिल खिल देखूँ बिमल तमाशा।।

राधास्वामी      चरन     निहारूँ।
तन मन अपना   उन पर वारू।।

आरत   पुरन    भई  है हमारी।
पहुँच    गई   सतगुरु    दरबारी।।


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★ Aaj Mera Jaga Bhag Apaar ★

आज मेरा  जागा भाग अपार,
मिले मोय सतगुरु परम दयार ।।१

हुई मैं उन चरनन बलिहार,
उतारा जन्म जन्म का भार   ।।२

गुरु  ने कीन्हा अद्भुत प्यार,
नाम  का भेद  बताया सार   ।।३

आरती सतगुरु करुंगी संभार,
प्रेम  की  थाली  कर  मे  धार ।।४

शब्द की लीन्ही जोति जगाय,
करुँ अब आरत चित्त लगाय  ।।५

सुरत मन चले गगन की ओर,
सुना जब घट में  अनहद शोर  ।।६

सहस दल पहुँची सतगुरु लार,
निरंजन ज्योति  किया दीदार  ।।७

शंख  धुन  सुनी  बंक के द्वार,
खोल पट पहुँची  गुरु  दरबार  ।।८

गुरु का रुप  लखा  निज सार,
सुनी  धुन  किंगरी  सारं  सार ।।९

सुन्न  का  खोला जाकर  द्वार,
मान सर न्हाय  हुई  सर सार ।।१०

पुरुष ने कीन्हा अद्भुत  प्यार,
महा सुन्न पहुँची सतगुरु लार।।११

भंवर गढ़ लीन्ह सुरत नें जाय,
सूर  जहाँ  सेत सेत  दरसाय ।।१२

सत्त पद चली बीन की  लार
रुप लख पाया पुरुष अपार ।।१३

कहूँ का शोभा बर्निन जाय,
देखि छवि कोटि भानु शरमाय।।१४

हुई मैं अलख अगम के पार,
मिला राधास्वामी का दीदार.।।१५

श्याम को छोडा़ देख असार,
लाल हुई पाया धुन भंडार ।।१६

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★ Charan Sharan Ki Vandana ★

चरण शरण की वन्दना, नित कोई और न काम।
गुरु बसो चित्त आय मेरे, बख्श दो निज नाम।।

तेरी शरणागत हुआ, फिर किस की राखूं आस।
आस तो तेरी दया की, जग से रहूं उदास।।

रूप ध्याऊं नाम गाऊं, शब्द राता मन।
आठों याम तेरा ही सुमिरन, भाग मेरा धन।।

सीस पर निज कर कमल धर, लिया चरण लगाय।
पतित पापी तर गया, गुरु शरण तेरी आय।।

मुक्ति की नहीं चाह मन में, भक्ति प्यारी लाग।
राधास्वामी की दया से, भाग पूरण जाग।।


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★ Aarti Aage Radha Swami Ki Keeje ★

आरती आगे राधास्वामी की कीजै।
बिमल प्रकाश अमी रस पीजे।।

चित्त कर चन्दन हित कर माला।
आन चढ़ाऊं स्वामी दीनदयाला।।

गगन का थाल सुरत की बाती। 
शब्द की जोत जगे दिन राती।।

सहस कंवल दल घण्टा बाजे। 
बंक नाल धुन शंख सुनीजे।।

औंकार धुन त्रिकुटी साजे। 
सुन्न शिखर अक्षर धुन गाजे।।

भंवर गुफा ढ़िग सोहंग बासा। 
सतलोक सतनाम निवासा।।

दास आपमी आरती गावें। 
चरण कंवल में बासा पावें।।

दया करो मेरे साइयां, देओ प्रेम की दात। 

दुःख सुख कुछ व्यापे नहीं, छूटे सब उत्पात।


★ जयगुरुदेव ★
शेष क्रमशः पोस्ट 3. में पढ़ें ...
https://www.amratvani.com/2018/11/blog-post_24.html

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