*आध्यात्मिक सवाल- जवाब* [8]

 *४०. स्वामी जी ! आदत नहीं छूटती है क्या करें कैसे मेरा सुधार होगा  ?*

उत्तर - आदत का पलटना महान कठिन काम है । यह ठीक उसी प्रकार है जैसे जानवर से इंसान बनाना हो । जैसे रस्सी जल जाती है पर ऐंठन नहीं जाती। ठीक उसी प्रकार विकारी अंग तो छूट जाते हैं और स्वभाव नहीं बदलता। जिसमें जो स्वभाव प्रबल है वह देर अवेर अपना इजहार और अवसर जरूर पैदा करता है।

जैसे शराबी है वह बहुतेरी कसमें खाता है कि फिर कभी शराब नहीं पिएंगे पर जब वक्त आता है तब वादे भूल जाता है । मनुष्य का स्वभाव सत्संग सेवा गुरु की दया से ही बदल सकता है। इसलिए सत्संग बहुत जरूरी है । जब भी मौका मिले गुरु के समीप जाकर उन का सत्संग सुनो धीरे-धीरे आदत बदल जाएगी ।

सत्संग नहीं सुनोगे और महीनों महीनों तक न ही दर्शन करोगे और ना ही सत्संग में हाजिरी दोगे तो जो स्वभाव पड़ गया है वह नहीं छूटेगा ।
बुरी आदत पड़ जाती है वह जल्दी छूटती नहीं ।
प्रार्थना करते रहो और सत्संग सुनते रहो तो कुछ समय बाद स्वभाव परिवर्तन हो जाएगा और भजन भी बनने लगेगा।

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*४१. स्वामी जी ! चारों तरफ अशांति फैली हुई है क्या किया जाए ?*

उत्तर - भजन ! भजन से ही सुख मिलेगा | भजन वह नहीं जो ढोलक हारमोनियम पर गाते बजाते हैं | भजन करने का तरीका संत बताते हैं जो उस मालिक के पास हर क्षण आते-जाते रहते हैं | उनकी दिव्य दृष्टि खुली होती है |

ऐसे संत महापुरुष का अवतार हिंसा मिटाने अहिंसा की स्थापना करने नफरत मिटाने मनुष्य के हृदय में दया भाव लाने और उन्हें सही रास्ते पर चलाने के लिए होता है | जब लोग ऐसे महापुरुष की बातों की अवहेलना करने लगते हैं तब काल भगवान की विकराल दृष्टि पड़ती है जिससे महान कष्ट लोगों को कर्म अनुसार होता है |

कुदरत कभी सूखा कभी बाढ़ कभी महामारी कभी भूकंप आदि द्वारा सजा देती है और जनता अकाल मृत्यु को प्राप्त होती है | इन प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए संतो का सहारा लेना पड़ेगा और उनसे रास्ता लेकर जब भजन किया जाएगा तभी रक्षा हो सकती है अमन चैन हो सकता है|

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 *४२. स्वामी जी! भजन ध्यान स्नान करने के बाद करूं या इसके पहले भी कर सकती हूं ?*

उत्तर - भजन करने से कोई छुआछूत नहीं | तुम किसी भी समय किसी अवस्था में कर सकती हो कोई परहेज नहीं | स्नान करने न करने का कोई बंधन नहीं है | भजन आत्मा से किया जाता है शरीर से नहीं | शरीर तो जड़ है और आत्मा चेतन है | चेतन से चेतन परमात्मा का ध्यान होता है भजन होता है|
महीने में प्रतिदिन भजन करना चाहिए | जितनी बार कर सको भजन ध्यान कर सकती हो|  सुमिरन 24 घंटे में एक बार अवश्य करना चाहिए | अगर इच्छा हो और पहले ठीक से ना हुआ हो तो दोबारा भी सुमिरन किया जा सकता है|

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*प्रश्न ४३. स्वामी जी ! सत्संग के क्या नियम हैं कृपा करके बताइए |*

उत्तर - महापुरुषों के सत्संग में स्त्री -पुरुष बच्चे- बच्चियों को सिर ढक कर जाना चाहिए | ऐसा न करना बेअदबी है | स्त्रियां साड़ी तथा बच्चियां दुपट्टा सिर पर रखें| समय का ख्याल रखना जरूरी है| 
पूरी बात सुनने पर समझ आती है| पूरी बात नहीं सुनोगे अधूरी बात सुनोगे तो अर्थ का अनर्थ हो जाएगा | अनुशाशन में रहकर सत्संग सुनना चाहिए| जुबान मीठी हो | जो ऐसा करते हैं उन पर महापुरुषों की दया हो जाती है|

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*प्रश्न ४४. गुरु जी ! मन वश में कैसे होगा ?*

उत्तर - मन का बस में होना आसान नहीं महा कठिन है | मन तीन लोक का मालिक है | इसके अधीन ऋषि मुनी, देवी देवता सभी हैं और यह सब को नचाता रहता है |  मन को वश में करने का एक ही साधन है और वह है नाम, आवाज, संगीत, आकाशवाणी, देववाणी जो इस मनुष्य शरीर में दोनों आंखों के पीछे यानी घट में हर वक्त हो रही है | 
जब तक वह नाम पकड़ में नहीं आएगा आकाशवाणी सुनने को नहीं मिलेगी | मन की भागदौड़ समाप्त नहीं होगी |

रावण चार वेदों का टीकाकार पंडित था फिर भी मन उसके बस में नहीं आया | विश्वामित्र ने 60,000 साल तक तप किया और मेनका के प्रेम पास में बंध गए और शकुंतला का जन्म हुआ| जिसकी कहानी किताबों में पढ़ते हो और नाटक भी देखते हो| पाराशर ऋषि सारी उम्र योग अभ्यास में लगे रहे और मछुआरे की लड़की पर मुग्ध हो गए | मन तरकीब से ही काबू में आ सकता है | वाणी में आता है - *बिना शब्द मन बस नहीं तुम सूरत करो अब शब्द की|*
*धन्य धन्य धन धन्य प्यारे क्या कहूं महिमा शब्द की||*

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*प्रश्न ४५. स्वामी जी ! सतगुरु की निंदा सुनने से क्या पाप लगता है ?*

उत्तर-  शिष्य अगर मेले हृदय से गुरु को देखता है, उनकी निंदा करता है या सुनता है तो इसमें उसका अपना नुकसान होता है|  गुरु निंदा कान से नहीं सुनना चाहिए यह परहेज बड़ा जरूरी है|  हमें नाम की कद्र नहीं | नाम मुफ्त में मिल गया और मुफ्त में सत्संगी हो गए | घरों में जितने भी झगड़े होते हैं अधिकतर दुनिया की बातों के पीछे होते हैं| दुनियादारी के झगड़े होते हैं|
 
सत्संग से ही बातें समझ में आती हैं| हम सत्संग में बैठे नहीं और बैठे भी तो ध्यान से बचने को सुने नहीं तो भ्रम सदा बना रहेगा | निंदा किसी की भी ना करनी चाहिए न सुननी चाहिए इससे कर्मों का भार जीवात्मा पर आता है | जो भजनानंदी होते हैं इस बात पर बराबर ध्यान देते रहते हैं|
संत सतगुरु की निंदा जहां होती है वहां से हट जाना चाहिए | नानक जी ने कहा है कि-  
*संत की निंदा नानका फिर फिर नरके जाए ||*


जयगुरुदेव ★

शेष क्रमशः पोस्ट न. 9 में पढ़ें  👇🏽

जीवों की संभाल करने वाले बाबा 

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