◆● महाराज जी की सम्मति ●◆
जितने भी सत्संगी भाई बहिन हो, आपके क्षैत्र में मन्दिर, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरुद्वारा है वहां पर आप जाओ और उनसे कहो कि आप लोग उच्च स्थान पर हो, मान्यता प्राप्त स्थान पर हो, आप लोग भी हमारे इस काम में मदद करो। आप भी दूसरों को शाकाहारी बनाओ। ये न किसी को कहने को रहे कि हमको किसी ने चेताया नहीं।
◆● महाराज जी के अनमोल वचन ●◆
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★ हर युग मे मन की अलग अलग शक्ति कही गई है। सतयुग में इसकी शक्ति हाथी के समान थी। वह बलशाली भी था और हरदम अपने निशाने पर टिका होता था।
देखो, हाथी जब चलता है, तब लोग उसके पीछे चल रहे हैं या नहीं चल रहे हैं उसकी निन्दा हो रही है या प्रशंसा अथवा उसके पीछे कुत्ते भौंक रहे; वह इनकी ओर तनिक ध्यान नहीं देता।
वह तो अपनी मस्ती में रंगा अपने निशाने पर चलता रहता है।
त्रेता में इसकी शक्ति घोड़े की हो गई। इसकी चाल अब तेज हो गई, परन्तु इस पर नियंत्रण आवश्यक हो गया। द्वापर में कर्मों का आवरण अधिक हो जाने से इसका बल बकरी के समान रह गया।
काल भगवान के बनाये पाप और पुण्य के विधान इतने कठोर होते गये कि अब मन कलयुग आते आते चींटी के समान हो गया।
मगर प्रेमी भाई बहनों, इतनी बात समझ लो कि आटे में चीनी को अलग करने की कला केवल चींटी को ही मालूम है।
वैसे ही वक्त के महात्मा से मिलकर भक्ति का सार तत्व पाया जा सकता है। यह सौभाग्य अन्य युगों से प्राप्त नहीं था, यह केवल आपको मिला।
★ जैसे दाल आप बनाते हो तो उसमें नमक का एक टुकड़ा डाल देते हो और वह नमक पूरी दाल में समान रूप से पंहुच जाता है। उसी प्रकार एक को पकड़ते तो तुम्हारी पूजा सब तक समान रूप से पंहुच जायेगी। महात्माओं ने कहा है किः
गुरु पूजा मे सबकी पूजा, ज्यों समुद्र में नदी समाजा।
★ कलयुग मे इस वक्त पर मालिक का मिलना बहुत आसान है। अच्छे कपड़े पहनों, अच्छा खाना खाओ, प्रारब्ध के अनुसार अच्छे मकान में रहो। गुफा, जंगल मे मत जाओ। सच्चे महात्मा से मिलो और परमात्मा को पाने के लिए थोड़ा वक्त निकालो।
संकल्प और निष्ठा से अभ्यास करोगे तो वह ग्रहस्थ जीवन में ही मिल जाएगा।
★ एक नकटे ने अपनी हंसी उड़ने के भय से लोगों के बीच प्रचार कर दिया कि ‘नाक कटवा लेने से भगवान मिल जाते हैं।
जब कई लोगों ने नाक कटवा ली और भगवान नही मिले तब यह रहस्य प्रकट हुआ। अब कई नाकें कट चुकीं तो उपहास से बचने के लिए नकटा सम्प्रदाय ही बना डाला।
इसी प्रकार, स्वामी जी अभी जीवित हैं, यहां दिखे, वहां दिखे, चन्द्रमा में दिखे; ऐसा कहकर कितनों का परमार्थ बिगाड़ा जा रहा है।
यह स्वयं तो परमार्थ से वंचित हो ही रहे हैं, दूसरों को भी नकटे की तरह परमार्थ से वंचित करवा रहे हैं।
★ कितने घर में ही रहकर के साधन भजन करने की बात करते हैं। नामदान तो ले ही लिया तो घर में ही गुरु महाराज के दर्शन हो जाएंगे।
तो प्रेमी भाई बहनों, इस बात को पकड़ लो कि यह गुरु महाराज की दौलत है। यह तो राजी खुशी से ही प्राप्त होगी और उनकी खुशी संगत की सेवा, उनके आदेश पालन में है।
जा पर कृपा गुरु की होई, तापर कृपा करे सब कोई।।
★ ऊपर उड़ने वाला कभी गिर भी जाता है। जो जमीन से लगकर रहता है, वह कब गिरेगा? इसलिए एक जिम्मेवार सत्संगी को उड़ने वाला नहीं, जमीनी कार्यकर्ता बनकर रहना है।
{17 अगस्त 2013 की शाम, मेला मैदान, सोनपुर, बिहार}
अमृत वाणी से साभार,
जयगुरुदेव ●
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