जयगुरुदेव*【स्वामी जी ने सुनाईं कहानी 15.】*

कहानी संख्या  15.

   किसी शहर में एक साहूकार और दूसरे शहर में एक मजदूर आदमी रहता था। साहूकार वह साहूकार था जिसका कर्ज बहुत से मनुष्यों पर लदा हुआ था, जो कि पूर्व जन्म का था और जिसका हिसाब कई जन्मों से लेना था। 
दूसरा मनुष्य उसी साहूकार के यहां नौकरी करने किसी के जरिए पंहुच गया। साहूकार मजदूर से दिन भर काम लेता था और रात को नौ बजे तक सोने नहीं देता था। इतने पर भी मजदूर को तीन बजे तक जगा देता था। और सुबह उसे बुलाकर बहुत बुरी तरह डांटता था।
कहता कि तुमने कुछ काम नहीं किया।

विचारा मजदूर लाचार था। रोज सोचता कहां जाऊं हमारे लिए तो यही घर है।
उसी समय एक महात्मा उसी मोहल्ले में आ पंहुचे और उनका सत्संग जारी हो गया। साहूकार अपनी धन की हविश पूरी करने हेतू अशान्त रहता था और मजदूर अपनी गरीबी से तबाह था दोनों अपने मर्ज में फंसे थे।

सुना कि पंहुचे महात्मा आये हैं, हर मर्ज की दवा देते हैं। मजदूर गरीबी दूर कराने पंहुचा और साहूकार यह इच्छा लेकर पंहुचा कि हमें धन प्राप्त हो जावे।
यह भाव लेकर दोनों महात्मा जी के पास पंहुचे कि हमें धन प्राप्त हो जाय।

इन दोनों के पंहुचते ही महात्मा जी सत्संग में बोले कि सुनो प्रेमी जनों!  लेनदार, देनदार दोनों असाध्य मरीज आ पंहुचे हैं । महात्मा जी के सत्संग में लाखों की भीड़ होती थी।
महात्मा जी ने साहूकार को सारे सत्संग का हैड कैशियर बनाया और कहा कि मनमानी रुपया खर्च करो, तुमको पूरा अधिकार है।
मजदूर से महात्मा जी ने कहा कि तुम हैड कैशियर के साथ रहना जो वें कहें उसी को करना साहूकार रुपया पाकर और साथ साथ बहुत आदर मान सत्संग में पाकर सोचने लगा कि मुझे यहां मुफ्त में सब चीजें प्राप्त हुई हैं और शान्त हो गया।

मजदूर सोचने लगा कि मैं अपने मालिक के साथ हूं । हर प्रकार का मुझे आराम है। महात्मा जी ने सेवा कराकर उस साहूकार का धन अदा कर दिया और साहूकार ने जिन जिन लोगों को धन दिया था वह धन मान से प्राप्त कर लिया।
सन्त जन हर तरह से जीव के कर्ज को अदा कर देते हैं और कर्ज चुका देते हैं। जीव अपनी अज्ञानता में यह सूझ नहीं पैदा कर पाता कि सन्त जन कितनी भारी दया करते हैं।


3.
*【 गुरु नानक की सीख 】*

एक बार नानक जी अपने शिष्यों के साथ बैठे हुए थे। उनका पुत्र भी वहीं बैठा हुआ था। उसने हाथ जोड़कर कहा कि पिताजी! अपनी गद्दी का मालिक मुझे बनाईएगा।
उसकी बातों को सुनकर नानकजी चुप हो गए। जाड़े के दिन थे। नानक जी अपने प्रेमियों के साथ प्रातःकाल वायु सेवन के लिए निकले थे। सामने एक लकड़हारा सिर पर एक भारी बोझ लादे चला जा रहा था। सर्दी से उसके पैर 
ठिठुर रहे थे। बदन पर ठीक से कपड़ा भी नहीं था कि अभी वो गिर जाएगा। 

नानक जी को दया आयी और वे अपने पुत्र से बोले कि बेटा! इस बेचारे लकड़हारे के बोझ को उठाकर घर तक पहुंचा दो।
लड़का संकोच में पड़ गया और धीरे से बोला कि पिताजी! आपके साथ इतने लोग हैं किसी से कह दीजिए। मैं बोझ को न उठा पांऊगा। 

नानक जी ने अपने एक शिष्य से कहा कि बेटा! तुम इसके बोझ को घर तक पंहुचा दो। आज्ञा पाते ही वह खुशी खुशी लकड़हारे के बोझे को लेकर नगर की ओर चला गया।

नानक जी ने अपने पुत्र की तरफ देखते हुए कहा कि बेटा। जो दूसरे के बोझों को अपने ऊपर खुशी खुशी उठा लेते हैं वहीं इस गद्दी के मालिक हुआ करते हैं।


4.
*【 बाबा जयगुरुदेव जी महाराज द्वारा 】*

एक महात्मा जा रहे थे। एक पेड़ देखा तो सोचा कि कुछ देर बैठा जाय और वो पेड़ के साये में बैठ गए। ऊपर एक पक्षी बैठा था। उन्होने अपनी चादर उछाली और देखते रहे कि वह पक्षी देखता है या नहीे । पर वह तो अन्धा था। वो चुपचाप बैठा रहा।

महात्मा सोचने लगे कि हमारे गुरुमहाराज कहा करते थे कि मालिक सबको दाना पानी देता है। यह पक्षी अन्धा है खुद तो दाना चुग नहीं सकेगा इसे वह कैसे देगा।
जब ठीक दोपहर के 12 बजे तो वह पक्षी पेड़ के नीचे उतरा। उन्होने देखा कि एक दिए में पानी और दूसरे में 
खाना रक्खा है। पक्षी ने दाना खाया पानी पिया और फिर  उड़कर पेड़ पर बैठ गया। 

वो सोचते रहे कि गुरुजी ने बिल्कुल ठीक कहा था कि मालिक सबको देता है। वो वहां से उठे और चले गए पहाड़ो की कन्दराओं मे और वहां जाकर बैठ गए। तीन दिन तक भूखे रहे और बेहोश हो गए।
उधर से दो तीन आदमी गुजर रहे थे उनके पास खाना था। उन्होने सोचा कि यह आदमी भूख से  बेहोश हो गया है। उन्होने खाना निकाला और मिलाकर महात्मा के मुंह में डाला। वो धीरे धीरे खाने लगे।
खाने पर उनको होश आ गया तब वो बोले कि अब हमको विश्वास हो गया कि मालिक सबको देता है।
कहने का यह है कि तुम मालिक पर विश्वास रखो वह देगा। 

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