एक जमींदार साहब थे वो कभी बीमार नहीं पड़े। कहानी संख्या 44.
✧ स्वामी जी महाराज ने एक कहानी सुनाई
एक जमींदार साहब थे वो कभी बीमार नहीं पड़े।उनके पड़ोस में एक ठाकुर रहते थे। उनके मन में आया कि कैसे जमींदार को बीमार किया जाय। उन्होने अपने कुछ आदमियों को बुलाया और उनसे कहा-
जब यह जमींदार सुबह घूमने निकलें तो तुम लोग इनके रास्ते में थोड़ी थोड़ी दूरी पर खड़े हो जाना और बस यही पूछना कि जमींदार साहब आपकी तबीयत तो ठीक है? आप कुछ कमजोर से दिख रहे हैं ?
दूसरे दिन सुबह ठाकुर के आदमियों ने जमींदार से पूछना शुरु कर दिया। पहले तो वो कहते रहे कि नहीं मैं तो बिल्कुल ठीक हूं, मुझे कुछ भी नहीं हुआ है लेकिन कई दिनो तक घूमफिरकर लगातार वही बातें उनसे वो सब पूछते रहे। अब इतने लोग एक ही तरह की बातें करें तो मन में तो कुछ होने ही लगता है।
जमींदार के मन में भी आया कि जरूर मुझे कोई बीमारी लग गई है तभी तो यह लोग ऐसा पूछते हैं। यह सोच सोच कर वो दुबले होने लगे, खाना पीना कम लिया और अपने को बीमार समझने लगे।
इसको सुनाते हुए स्वामी जी महाराज ने कहा था कि सुनते सुनते हम बुराईयों को अपना लेते हैं और कहते सुनते हम अच्छाईयों पर भी चल पड़ते हैं।
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✴ बाबा जयगुरुदेव जी की भूली बिसरी बातें -
इसी तरह से धीरे धीरे फिर पल्लु सिर पर आ जायेगा, पुरुषों के सिर पर साफे, पगड़ी, टोपी आ जायेगी।
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दण्ड कठोर हों अपराध अपने आप कम होने लगते हैं। दण्ड प्रक्रिया लचर होगी तो मारने वाला मारकर भाग जायेगा, उसको पकड़ना मुश्किल, लूटने वाला लूटकर भाग जायेगा, उसका सुराग नहीं मिलेगा, घोटाले वाले बड़े बड़े घोटाले कर जायेंगे, कुछ दिन शोर शराबा होगा, बाद में उसका भी कुछ पता नहीं लगेगा।
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Jaigurudev