जयगुरुदेव चेतावनी 159.
Suni ri maine nirbal ke bal ram
सुनि री मैंने निर्बल के बल राम।
पिछली साख भरे संतन की,
अड़े संवारे काम ।।१।।
जब लगि गज बल अपनो बरत्यो,
नैक सर्यो नहीं काम ।
निर्बल होए हरि नाम पुकार्यो,
आये आधो नाम ।।२।।
द्रुपद-सुता निर्बल भई जा दिन,
तजि आये निज धाम ।
दुःशासन की भुजा थकित भई,
बसन रूप भये श्याम ।।३।।
अपबल तपबल और बाहुबल,
चौथी बल है दाम ।
'सूर' किशोर कृपा ते सब बल,
हारे को हरि नाम ।।४।।
जयगुरुदेव चेतावनी 160.
*Guru bin kaun chhudave yam ne banh pakadi*
गुरु बिन कौन छुड़ावे रे यम ने बाँह पकड़ी ।।
नाम बिहूना जग में आ के, बैठा चित विषयों में लाके ।
अन्त समय पछतावे रे ।। यम ने बाँह पकड़ी ।।
सारे संत यही समझावें ।
गुरु बिन ज्ञान कहीं नहीं पावे,
दर दर भटका खावे रे । यम ने बाँह पकड़ी ।।
सतगुरु जी हैं ज्ञान के दाता, दीन भाव से शरण में आता ।
भव सागर तर जावे रे ।। यम ने बाँह पकड़ी ।।
सतगुरु जी की सेवा कर ले, तन, मन, धन सब अर्पण कर दे।
सहज अमर पद पावे रे ।। यम ने बाँह पकड़ी ।।
सद्गुरु जी का कहा मान ले, हृदय में सत् नाम सुमिर ले ।
हर्ष हर्ष जश गावे रे ।। यम ने बाँह पकड़ी ।।
अब भी मन में सोच ले बन्दे, छोड़ दे दुनिया के गोरख धन्धे ।
मौका हाथ न आवे रे ।। यम ने बाँह पकड़ी ।।
कहे सतगुरु भाई फिरेगा रोता, लख चौरासी में खायेगा गोता ।।
जनम जनम पछतावे रे ।। यम ने बाँह पकड़ी ।।
जयगुरुदेव चेतावनी 161.
*Utho sone walo jagane wala aa gya*
उठो सोने वालो जगाने वाला आ गया।
नाम की खुमारी चढ़ाने वाला आ गया।
भरम वाले बाहर से मूंद के किवाड़ सारे ।
छुपे हुए राम को दिखाने वाला आ गया ।
भूले हुए प्राणियों को रास्ता बताने हेतु ।
गीता का ज्ञान कराने वाला आ गया।
ज्ञान का सुहाग दे चढ़ा बरात सोहनी ।
बिछड़ी हुई रूहों को मिलाने वाला आ गया।
दया दृष्टि दीनों पर डाल करके जयगुरुदेव ।
चौरासी का बन्धन छुड़ाने वाला आ गया।
उठो, करो मन को जयगुरुदेव चरणों में समर्पण।
अमर ज्योति घट में दिखाने वाला आ गया ।
जयगुरुदेव चेतावनी 162.
*Ram tajun par guru na bisarun*
राम तजूं पर गुरु न बिसारुं ।
गुरु के सम हरि को न निहारूँ।।
हरि ने जन्म दियो जग माहीं ।
गुरु ने आवागमन छुड़ाई ।।
हरि ने पाँच चोर दिए साथा।
गुरु ने लई छुड़ाय अनाथा ।।
हरि ने कुटुम्ब जाल में गेरी।
गुरु ने काटी ममता बेरी ।।
हरि ने रोग भोग उपजायो ।
गुरु योगी कर सबै छुड़ायो ।।
हरि ने करम भरम भरमायो ।
गुरु ने आतम रूप लखायो ।।
हरि ने मो सों आप छिपायो ।
गुरु दीपक है ताहि लखायो ।।
फिर हरि बन्द मुक्ति मन लाए।
गुरु ने सबही भरम मिटाए ।।
'चरनदास' पर तन मन वारौं।
गुरु न तजौ चाहे हरि तजि डारौं ।।
जयगुरुदेव चेतावनी 163.
*Mere malik ki dukan me sab duniya ka khata*
मेरे मालिक की दुकान में सब दुनिया का खाता ।
जो जितना करता कर्म है उतना ही फल पाता ।। मेरे
कलियुग वालो कलियुग वालो देखो कैसा नाता ।
सुनो पते की बात एक मैं तुमको अभी बताता ।। मेरे
क्या साधु क्या संत गृहस्थी क्या राजा क्या रानी ।
प्रभु की पुस्तक में लिखी है सब की कर्म कहानी।
वही है सबके जमा खर्च का सही हिसाब लगाता ।। मेरे
चले नहीं उसके घर रिश्वत चले नहीं चालाकी,
इसके पहले लेन देन की रीत पड़ी है बाकी ।
पुण्य का बेड़ा पार करत है पापी की नाव डुबाता ।। मेरे
इसका फैसला कभी न छूटे लाख कोई सर पटके,
करता है इंसाफ सभी का सिंहासन पर डट के।
समझदार तो चुप रहते हैं मूरख शोर मचाता ।। मेरे
अच्छी करनी करलो भाई करम करो ना काला,
सच्चिदानन्द देख रहा है तुम्हें देखने वाला ।
जयगुरुदेव 'संत' से प्रेम लगा ले समय गुजरता जाता ।। मेरे
जयगुरुदेव चेतावनी 165.
*Lagi aisi lagan mira ho gai magan*
लागी ऐसी लगन, मीरा हो गई मगन,
वो तो गलि गलि गुरु गुण गाने लगी ।
जो महल में पली, बनने जोगिन चली।
मीरा रानी दीवानी कहाने लगी ।।
बैठी संतों के संग, रंग गई मोहन के रंग,
मीरा प्रीतम को अपने रिझाने लगी ।।
राणा ने विष दिया, जान अमृत पिया,
जीना मरना समान बिताने लगी ।।
कोई रोके नहीं, कोई टोके नहीं,
मीरा सतगुरु की महिमा सुनाने लगी ।।
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