जयगुरुदेव प्रार्थना 227.
satguru ne alakh lakhayo re
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सतगुरु ने अलख लखायो रे,
सतगुरु ने परम प्रकाश अखण्ड ज्ञान घट भीतर दरसायौ ।।
मन बुद्धि बाणी नहिं जानें वेद कहत सकुचायौ ।।
अगम अपार अथाह, अगोचर, नेति २ श्रुत गायौ ।।
तेल में तेल काठ में अग्नी, दूध में व्रत समायौ ।।
शब्द में अर्थ पदारथ पद में, स्वर में राग समायौ ।।
बीज मांहि अंकुर तरु शाखा फूल पत्र फल छायौ ।।
त्यों आतम में हैं परमातम, गुरुदेव दरासायौं ।।
अलख पुरुष सतगुरु की कृपा, निज सरूप है पायौ ।
जयगुरुदेव प्रार्थना 228.
Tere dar se jayen khali
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तेरे दर से जायें खाली, लोग क्या कहेंगे।
अफसाने तेरे हम से जुड़े, लोग क्या कहेंगे।।
ये जिन्दगी है प्यार तेरा, सिकवा हमें न कोई ।।
जब गैर देंगे ताने, कैसे उन्हें सहेंगे।
अफसाने तेरे हम से जुड़े, लोग क्या कहेंगे।।
इस राहे मुहब्बत में, मजबूरियाँ हैं काफी ।
तुम जैसे रहवर दिल, कहीं और क्या मिलेंगे।
अफसाने..
तेरी दया की है आसा, दुनिया को भुला देना ।
पर तेरी मुहब्बत बिन, हम ही कहाँ रहेंगे।
अफसाने..
छूटें भले ही सारे, दुनियां के नाते रिश्ते ।
बिन तेरी दया के मालिक, हम कैसे जी सकेंगे।
तेरे दर से जायें खाली, लोग क्या कहेगे ।
अफसाने..
जयगुरुदेव प्रार्थना 229.
Man thanda thariya ji
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मन ठण्डा ठरियाँ जी, गुरु जी दर्शन करके तेरा ।
दर्श गुराँदा सबसे आला, मन मेरे हुआ उजाला ।
लख जोता जगयाँ जी। गुरु जी दर्शन करके तेरा ।
सतगुरु अनहद तूर बजाया। जो सब भक्ताँ दे मन भाया।
मन बिच सुर भरियाँ जी, गुरुजी दर्शन करके तेरा ।
सतगुरु पावन नाम जपाया, मन एकाग्र कर दिखलाया ।
आनन्द लहर बहाइया जी, गुरुजी दर्शन करके तेरा
कोई भागाँ वाला सत्संग पाये, दो घड़ियां जो सुरत जमाये ।
फल उसने पाया जी, गुरुजी दर्शन करके तेरा
सब जग में इक हंस समाया, जो प्रेमी के मन नू भाया।
जब गुरु चरणां चित्त लाइयां जी ।। गुरुजी दर्शन करके तेरा
जयगुरुदेव प्रार्थना 230.
Guru pure ka darshan kar sakhi
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गुरु पूरे का दर्शन कर सखी आज गुरु पूर्णिमा आई ।
गुरु चन्द्र गगन में खिले अहा क्या धवल चाँदनी छाई ।।
हंसन की शोभा न्यारी, क्या दीखे प्यारी प्यारी,
मिलि मधुर स्वर में सखि कोई अगम आरती गाई।
देखा गुरु का दिव्य सिंहासन, गुरु बैठे आसन लाई ।।
सुरतें तो सब देख रही हैं, गुरु प्यारे से दृष्टि मिलाई ।
अमृत की वर्षा है होती, हंसा सबही चुग रहे मोती ।।
किंगरी धुन मधुर सारंगी पड़ रही अजब सुनाई।
जागे सखी भाग्य हमारे, आज पहुँची सतगुरु के द्वारे ।।
गुरु दर्शन से हुई कृतार्थ, सखि धुली जन्म की काई।
अब कृपा तुम कीजै स्वामी, पाऊँ सतगुरु धाम अनामी ।
जयगुरुदेव प्रार्थना 231.
Guru pyare tumko badhai badhai
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गुरु प्यारे तुमको बधाई बधाई
गुरु पूर्णिमा की महा पर्व आई।
बड़े भाग्य से वर्ष का दिन ये आया,
बहुत से झकोलों से तुमने बचाया ।
तुम्हरी कृपा हमको यह दिन दिखाई।।
मेरी आँख पर कालिमा रहती छाई,
खुली आँख थी पर न देता दिखाई।
मगर बादलों से चमक जैसी आई।।
गुरु ने हमें पास अपने बुलाया,
धरा हाथ सिर पर व चन्दन लगाया।
दया आपकी पड़ी अब दिखाई।।
मेरी आँख आँखों में तेरे नहाई,
लगी घट में बजने आनन्द बधाई।
सुरत देह तजि करके ऊपर को धाई।
गुरु तेरी संगत है कैसी सुहावन,
जिसे देख सुरत हुई मेरी पावन ।
बिना साज की कैसी नौबत बजाई।।
गुरुदेव चरणों पै बलि बलि जाऊँ,
तुम्हरी तो नगरी कभी न भुलाऊँ।
सुरत मान सरोवर में गोते लगाई।।
सुनो तान वंशी ए किसने बजाई,
पुरुष का दरस अब पड़ा है दिखाई।
मधुर बीन तान सत पुरुष ने सुनाई।।
जयगुरुदेव प्रार्थना 232.
Vinay karu gurudev tumhari
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विनय करूँ गुरुदेव तुम्हारी, अर्ज सुनो अब नाथ हमारी ।
सत्त पुरुष तुम सत गुरु दाता, सब जीवों के पितु और माता ।
दया धार वर्षा कर दीजै, काल जाल से न्यारा कीजै।
सतयुग त्रेता द्वापर बीता , नहि कोऊ जानी शब्द की रीता ।
कलयुग में स्वामी दया विचारी, प्रकट करके शब्द पुकारी।
जीव काज स्वामी जग में आये, भौ सागर से पार लगाये ।
परम अनुग्रह सतगुरु कीन्हा, नाम दान हम को तुम दीन्हा ।
झिलमिल झिलमिल बरसे नूरा, नूर जहूर सदा भर पूरा ।।
रूनझुन रूनझुन अनहद बाजै, भँवर गुंजार गगन चढ़ि गाजे ।।
रिमझिम रिमझिम बरसे मोती, भयो प्रकाश निरंतर जोती।
दया दास पर सतगुरु कीजै, निज चरणों की भक्ती दीजै।
जयगुरुदेव जपूं निशियामा, गुरु चरणों में हो विश्रामा ।।
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