✵ अब तो सम्हल जाओ ✵
अफवाहें कब तक चलेंगी ? हाथरस के तुलसी साहेब ने कहा है कि-
जो कोई कहे हम सन्त को चीन्हा, तुलसी हाथ कान पर दीन्हा।
कितनी बड़ी बात कही है। महापुरुष क्या हैं ? उनके पास कौनसी दौलत मिलती है ? इसको कौन समझायेगा जो उन्हे सही रूप से जान सके। उन्हें सही रूप मे समझने वाला माई का लाल कोई हुआ करता है। जो उन्हें पहचान लेता है उनकी दात जिसे मिल जाती है उसकी वाणी मौन हो जाती है क्योंकि उसे जो भी मिल जाता है वह अवर्णनीय दौलत है। रामायण में गोस्वामी जी ने कहा कि गुरु के प्राप्त होने पर जो कुछ मिलता है वह क्या है-
जो नहिं देखा नहिं सुना, जो मनहुं न समाइ। सो अब अद्भुत देखेऊ, बरनि कवन विधि जाई।।
ये है महापुरुष की बात। सूरदास ने गूंगे का गुण कह दिया। महात्मा के पास वह अनमोल धन है जिसके लिए उनके कदमों में तुरन्त तख्त और ताज झुक जाते हैं। कितनों की नादिर शाही झुक जाती है। कितने डाकू बाल्मीकि बन जाते हैं। आप ने क्या समझा ? आपने समझने का प्रयत्न ही कब किया ? आप केवल एक ही बात समझ पाते हैं कि खाओ पीओ मौज करो। धर्म के क्षेत्र में अगर कुछ लोग आये तो उन्होंने दिखावा अपना लिया, दुनिया भक्त कह ले दिल में चाहे जो हो जबकि महापुरुष ने कह दिया-
लोग पतीजे कछु न होवे, नाहिं राम अयाना।
राजनीतिक दायरे के लोग समझते हैं कि यह सब चुनाव जीतने का चक्कर है और आये हुए प्रेमी किराये के टट्टू हैं क्योंकि इससे अधिक बेचारे सोचें भी कैंसे ? चुनावी चक्कर में किराये के टटटू वे लोग बुलाते हैं अतः यह स्वाभाविक है कि लोगों को वही नजर आता है।
दूसरे यह जनतंत्र है बहुमत का राज्य है। अतः लोगों के डरने का एक यह भी बहुत बड़ा कारण है कि जिधर ही अधिक लोग झुकेंगे गद्दी उन्हीं को मिलेगी। राजाओं के युग में वे गद्दी के प्रति इतने भयभीत नहीं होते थे और अपनी जिम्मेदारियों को जनतंत्र की अपेक्षा अधिक महसूस करते थे। साधू-महात्माओं के कदमों में आकर झुकते थे। यही कारण है कि राजनीति के ठेकेदार आने से घबराते हैं और जनता को भी भ्रमित रखना चाहते हैं।
बाबा जी आपके पैसों के भूखे नहीं। बाबा जी के पास ऐसे ऐसे सेठ साहूकार पड़े रहते हैं जिन्हें आप समझ नहीं सकते। उनकी इतनी हस्ती हैं कि आपको पैसे के तराजू पर रखकर इधर से उधर फेंक दें। महापुरुष ही ऐसे होते हैं जिनके पास शेर और बकरी एक घाट पर बैठे नजर आते हें। उनकी दात को पाने के लिए राजाओं ने गद्दी छोड़ दी, सेठ साहूकारों ने अपने महले दो महले छोड़ दिए और आकर के महात्माओं के यहां झाड़ू लगाया, पानी भरा, टटटी उठाया। क्या वे किराये के टटटू होंगे। कभी नहीं।
महात्मा के उस अनमोल दौलत को पाने के लिए कबीर जैसे साधारण जुलाहे के पास धर्मदास जैसे सेठ ने कंगाल बनकर स्वीकार किया, बलख बुखारे के शाह ने राज सुख छोड़ दिया। जिसकी शक्ति के आगे प्रजातंत्र की निरंकुशता कभी शीश झुकाती रही उसे आप कहते हैं कि किराये के टटटु लाये होंगे। इससे अधिक बुद्धि का दिवालियापन और क्या हो सकता है।
आप समझें न समझें हमारा कोई सरोकार नहीं है किन्तु सही बात तो कहनी ही पड़ेगी कि महात्मा जीवों को परमात्मा की दौलत देना चाहते हें और जो योग्य पात्र होते हैं उन्हें देते हैं। पहले भी दिया और अब भी देते हैं। अध्यात्म धार के आकर्षण में लोग खिंचे चले आते हैं उनकी दया लेने। इसके लिए वे सबकुछ सहते हैं। धूप गर्मी मेहनत भूख प्यास किन्तु फिर भी प्रसन्न रहते हैं उनके चेहरे पर थकान भी नहीं अभरती है। ये है महात्माओं की बात, यह है उनका प्यार। आप क्या जानें ?
दुनिया के प्रपंचों से छल फरेबों से लोगों को बहकाने से ही आपको समय नहीं मिल पाता है तो आप सही बात क्या समझेंगे? आपके समझने न समझने से बनता बिगड़ता क्या है किसी का। समय समझा देता है। एक बात सत्य है कि महापुरुषों की बात प्रारम्भ से ही दुनिया के सब दौलतों के ऊपर रही अब भी है और आगे भी रहेगी।
✵ कलयुग में सतयुग आने को तैयार भाइयों
अब मिल गया प्रचार का आधार भाइयों। सबसे सुखद आहार शाकाहार भाइयों।।
सतयुग व त्रेता द्वापर में, सबकी खुराक थी। संग्राम महाभारत में, इसकी ही धाक थी।।
तामस खुराक वालों ने खाई मार भाइयों। सबसे सुखद आहार शाकाहार भाइयों।।
वैज्ञानिकों ने शोध कर, हार्स पावर को चुना। कितनी छलांग लम्बी हो ? लायॅन पावर न बना।
इस खोज के पीछे भी शाकाहार भाइयों। सबसे सुखद आहार शाकाहार भाइयों।।
तामसी भोजन से आयु क्षीण हो जाती। उनकी कभी भी रूह, निजात न पाती।
बिस्मिल है रहमानों का रहमान भाइयों। सबसे सुखद आहार शाकाहार भाइयों।।
हिन्दु हो सिख जैन या मुस्लिम हो पारसी। सबके ही मुर्शिदों ने , तालीम यही दी।
बेजान पशु पक्षी को, मत मार भाइयों। सबसे सुखद आहार शाकाहार भाइयों।।
बाबा जयगुरुदेव ने ऐलान कर दिया। भगवान खुदा को पाना आसान कर दिया।
बस! एक त्याग कर दो, मांसाहार भाइयों। सबसे सुखद आहार शाकाहार भाइयों।।
पशु-पक्षियों के मांस से, बीमारी आयेगी। कितनी दवा करो, कभी राहत न आयेगी।
ऊपर से पड़ेगी कुदरती मार भाइयों। सबसे सुखद आहार शाकाहार भाइयों।।
गन्दा गलीज छोड़ शाकाहारी बन चलें। तन-मन को शुद्ध करके, भगवत भजन करें।
कलयुग में सतयुग आने को तैयार भाइयों। सबसे सुखद आहार शाकाहार भाइयों।।
✵ सुई सुहागा सन्त जन
गुरु ने प्रेमियों को जो रास्ता बताया और प्रेमी उनके बताये रास्ते पर चले और उनकी जीवात्मा के आंख कान खुले तो प्रेमी कहते हैं कि वहां हमने देखा कि ‘गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु, गुरुदेवो महेश्वरः, गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नमः’ मंत्र तो पढ़ते हैं पर गुरु के स्थान को नहीं जानते। अगर गुरु के स्थान को जान लेेते तो विकार पैदा नहीं होता मानवता आ जाती इंसानियत आ जाती और सबसे प्यार मोहब्बत हो जाता।
जब प्यार मोहब्बत होता है तो चोरी, डकैती मारपीट नही होती यहां मित्र मित्र की चीज को नहीं लेता, प्रेमी प्रेमी की चीज को नहीं लेता,। लेकिन जब शत्रुता आ गयी, दिल के टुकड़े टुकड़े हो गये तो उसे कौन जोड़ेगा। इसे धन दौलत तो जोड़ नहीं सकता। इनको कोई महात्मा ही जोड़ सकता है। दुष्ट का काम क्या है, जुदा कर देना, कुल्हाड़ी का काम क्या है, पेड़ को काट देना। कैंची का काम क्या है, कपड़े को काट देना। काट तो ये सब देंगे, लेकिन जोड़ेगा कौन ? सुई सुहागा सन्तजन बिछुड़े देंय मिलाय’।
कपड़े को कैंची काट देती है, और सुई उसको जोड़ देती है। तो कहते हैं कि दुष्टों को कौन जोड़ेगा ? इनको सन्त जोड़ देते हैं, जो अलग अलग हो गये, उनको मिला देते हैं, इसी तरह से इनको भी सन्त महात्मा ही मिलायेंगे। गोस्वामी जी महाराज इतनी छोटी सी अवस्था में पूर्ण पद प्राप्त करने के बाद बहुत से लोगों को प्राप्त कराते हुए गये।
उन्होंने कहा कि यहां जब जब जीवों के लेने के लिए महापुरुष आये, तो लोगों ने उनको बहुत तकलीफ दी। महात्माओं के संकेत से तो मैं ऐसा ही समझता हूं कि जब मेरे ऊपर बीती तो सभी महात्माओं के ऊपर बीती होगी और जो कुछ भी उन्होेंने कहा सत्य कहा। यही रैदास जी पर भी बीती। यही काशी में बेचारे जूता गांठ करके बच्चों का पालन पोषण करते थे, पूरे सन्त थे, उन्हें किसी से कोई झगड़ा नहीं, लेकिन जूता गांठना भी मुश्किल हो गया, यानी मजदूरी करना भी मुश्किल, किसी को छू भी नहीं सकते। छुआछूत, छुआछूत क्या रोग है।
तो इस प्रकार आपने किसी को पहचाना नहीं। न आपने सुपच जी को पहचाना, न मीरा बाई को पहचाना। वो तो क्षत्रिय थीं, न आपने गोस्वामी जी को पहचाना वो तो जाति के ब्राह्मण थे और किसी जाति में मुसलमान या अन्य जाति में आये, उनको भ नहीं पहचाना। तो कहते हैं कि हरि का भजे सो हरि का होई, जाति पाति पूछे नहीं कोई।
अरे तुम कहां फस गये जाकर। इससे तुमको क्या मिला ? तुमने जरा सी इस बात को नहीं समझा कि महापुरुष तो हर जाति में हर तरह से तुमको सम्हालने के लिए आते हैं, उनको जाति पाति से क्या लेना देना ?
40. प्रार्थना
गुरु बिना दाता कोई नहीं, जग मांगन हारा। तीन लोक ब्रह्माण्ड में, सबके भरतारा।।1
अपराधी तीरथ चले, क्या तीरथ तारे ? काम क्रोध मद न मिटा, क्या देह पखारे।।2
कागज की नौका बनी, बिच लोहा भारे। शब्द भेद जाने नहीं, मूरख पच हारे।।3
बांझ मनोरथ पिय मिले, घट भया उजारा। सतगुरु पार उतारि हैं, सब सन्त पुकारा।।4
पाहन को क्या पूजिये, या में क्य पावे ? अड़सठ के फल घर मिलें, जो साध जिवावे।।5
कहें कबीर विचार के अंधा खग डोले। अंधे को सूझे नहीं, घट ही में बोले।।6
✵ राजनीतिक संस्थायें समाप्त होंगी
सिसेंडी। लखनऊ। में 23 मई 1972 को अपने सत्संग सन्देश में बाबा जयगुरुदेव जी ने कहा कि मेरी कोई भी बात जो इस मंच से कहूंगा वह गलत नहीं होगी। अब तक कुछ भी पहले मैंने कहा है उसमे से बहुत कुछ आपको देखने को मिला। पूर्वी पाकिस्तान के समाप्त होने की बात कई वर्ष पूर्व मैंने कही थी और वह समाप्त हो गया। यह भी कहा था कि बहुत खून खराबा होगा। लाशें पड़ी रहेंगी और उठाने वाले नहीं मिलेंगे। आपने देखा कि सब घटनायें घटित हुईं।
मैं फिर कह रहा हूं कि पश्चिम में भी लड़ाई होगी और भारी नरसंहार होगा। उसके बाद पश्चिम का भी पाकिस्तान समाप्त हो जायेगा। फिर उत्तर में लड़ाई होगी और और उसके बाद दक्षिण में होगी। इसके बाद चारो तरफ बजेगा। इसी बीच नेपाल तिब्बत बरमा आदि देश टूट कर भारत वर्ष में मिल जायेंगे।
बाबा ने आगे कहा कि भविष्य में सभ संस्थायें भारत में राजनैतिक समाप्त हो जायेंगी। क्या होगा और कैसे होगा ? यह आपको समय बतायेगा, ऐसे लोग पैदा हो गये हैं जो प्लेटफार्म पर आयेंगे। संगठित होकर वे तुम्हारे बीच आ जायेंगे। शक्ति तो उनमें पहले से मौजूद है केवल थोड़ा उभार देना होगा। फिर वे काम करने लगेंगे।
मैं हर जगह जाता हूं, बड़े से बड़े लोगों के यहां भी जाता हूं करोड़पति अरबपति भी मुझे लिवा जाते हैं, राजे महाराजे भी इस सन्देश को सुनना चाहते हैं, मैं गरीब, किसान, भंगी, चमार, मुसलमान सबके घरों में चला जाता हूं, मेरे लिए सब बराबर हैं। मगर सबको शाकाहारी बनना होगा। मैं लू में घूमता हूं तुम्हारे लिए, मेरा अपना स्वार्थ क्या है ?
तुमसे एक पैसा मांगता नहीं हूं और न सरकार से ही मांगता हूं। आश्रम पर जमीन है जिसमें 900 मन गेहूं इसी फसल में तैयार हुआ है। सरसो और चना अलग। मैं पक्का किसान हूं और किसान के दुख दर्द को जानता हूं। मैं खुरपी भी चलाता हूं। फावड़ा भी चलाता हूं, खेत भी काटता हूं, गट्ठर भी उठाता हूं, जानवरों को चारा पानी भी देता हूं। किसान का हर कार्य करता हूं। और उसके बाद अध्यात्मवाद का उपदेश भी करता हूं। जीवात्मा परमात्मा की बात भी करता हूं और जीवात्मा को परमात्मा तक पहुंचाने का मार्ग भी बताता हूं। यहां केवल जवानी जमाखर्च की कोई बात नहीं है।
आगे भारी संकट आ रहा है जिसे मैं देख रहा हूं। तुम उसे नहीं जानते हो कि क्या हो जायेगा। भारत की 65 करोड़ आबादी में से लगभग 50 करोड़ हिन्दु फिर भी गउओं का काटना इन 25 वर्षों में बन्द नहीं हुआ मैं अभी बम्बई गया था।। हिन्दु गायों पर ठप्पा लगाते हैं और वे काट दी जाती हैं। हिन्दु ये काम करने लगे। फिर तुम सोचो। एक एक आदमी पर सो सो गउओ के काटने का पाप लदा हुआ है।
तुमने अपना मतदान दिया और लोग उधर जाकर शराब पीने लगे मांस खाने लगे, अन्याय करने लगे। और क्या क्या करने लगे। उनका सब किया हुआ पाप तुम किसानों पर बंट जायेगा और तुमको भोगना होगा। तुम पर इतना अधिक कष्ट और परेशानी आयेगी कि ये नेता गांवों को छोड़कर भाग जायेंगे। अगर कहीं गांवों में यह रह गये तो तुम इनको क्या कर दोगे कि इन्हें बिल्कुल मसल दोगे।
मुझे याद है कि टैक्स बढ़ाते समय यह कहा गया था कि दस वर्षो में अर्थात् सन् 1960 तक गांव गांव में सड़क बन जायेंगी, गांव गांव में बिजली हो जायेगी, गांवों में पानी की सुविधा हो जायेगी। सबके पास मकान हो जायेगा। मगर सन् 60 को कौन कहे सन् 70 भी बीत गया और मैें देखता हूं कि पहले से गरीबी और अधिक आ गई है। 800 रु. महीना पाने वाला चपरासी खूब डटकर भोजन करता था, परिवार के सभी प्राणी सुखी थे, दूध भी पीता था और महीने के अन्त में 211 बचा लेता था।
अभी लखनऊ में डाक्टरों ने देखा कि शाकाहारी भोजन मरीजों को देने से उन्हें जल्द आराम होता है। अतः मालूम हुआ कि अस्पतालों में मांस का पकना बन्द कर दिया। यह आपको करना ही होगा। अगर कानून बन जाये कि गाय को मारने वाले को वहीं सजा मिलेगी जो इंसान को मारने की होती है तो क्या गाय काटना बन्द नहीं हो जायेगा ? यह कोई बात नहीं है।
मैंने ब्राह्मणों से पूछा, मुसलमानों से पूछा कि तुम मोहब्बत साहब की आयतों को दिखाओ जिसमें लिखा है कि मांस खाना चाहिए। किसी धर्म पुस्तक में मांस खाने का आदेश नहीं दिया गया है।
मैं सिसेंडी में दूसरी बार आया हूं। इसको छोड़ने वाला नहीं। एक समय आयेगा कि जब तुम इस को सुनने के लिए भागते आओगे। रात को दो बजे तुम्हार बैलगाड़ियां चल पडे़ंगी। पैदल या अन्य सवारियों से बच्चों को लेकर तुम इस मैदान में उपस्थित होंगे। घबड़ाने की कोई बात नहीं। समय तुमको हर प्रकार से मजबूत करेगा कि तुम इस सन्देश को सुनो।
मेरा नाम जयगुरुदेव नही है। मेरा नाम तुलसी दास है जिन्होंने रामायण बनाया है। जयगुरुदेव नाम परमात्मा का है। इस नाम में शक्ति है। जब कोई मुसीबत आ जाये, असाध्य रोग हो जाये और डाक्टर जवाब दे दे, तो तुम 5- 7 मिनट तक इस नाम को लेना। अगर तुमको लाभ हो आराम मिले तो उसके बाद मांस, मछली, शराब, अण्डा, गांजा, भांग का सेवन छोड़ देना। एक बार परीक्षा करलो फिर देखो।
मुझसे अखबार वालों ने बताया कि उन्हे ऊपर से आदेश मिला है कि मेरे कार्यक्रमों को अखबारों में न छापा जाये क्योंकि इतने बड़े बड़े कार्यक्रम उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि स्थानों में हो रहे हैं जहां पर बेशुमार भीड़ होती है। किसी किसी स्थान पर तो डेढ़ लाख, दो लाख, तीन लाख से ऊपर भीड़ होती है। गांवों में बीस तीस हजार की भीड़ होना मामूली बात है। अब लोगों को डर हो गया है। शासन में रहकर इतनी बड़ी भीड़ इकट्ठा नहीं हो पाती है तो यह खास बात है।
बगैर अखबार की मदद के मैंने यह काम कर लिया है और करोड़ों लोगों के मुख अखबार बन गये हैं। हमारी एक पत्रिका लखनऊ से शाकाहारी सदाचारी बालसंघ निकलती है उसमें कोई विज्ञापन नहीं। पैसा नहीं कमाना है। केवल दस पैसा मूल्य है जो कागज और छपाई का ही हो जाता है। कितनी प्रतियां फ्री दे दी जाती हैं।
एक दूसरा अखबार मानव सुधार एवं आध्यात्मिक सन्देश इंदौर से निकलने लगी है। राजस्थान से एक और अखबार निकलने जा रहा है। चार चार जिलों का एक जोन बन जायेगा फिर हम देखतें हैं कि कैसे लोगों का सुधार नहीं होता है, लोगों का चरित्र ठीक नहीं होता है, कैसे लोग धर्म शिक्षा को नहीं अपनाते हैं, कैसें नहीं लोग सत्य खबरों को पढ़ना पसन्द करते हैं। जनता की आंखों में कब तक धूल झोंकते रहोगे ? यह जनतंत्र है और सच्ची आवाज नहीं दब सकती है।
जयगुरुदेव
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