युग महापुरुष बाबा जयगुरुदेव जी महाराज (12.)

✧ स्वामी जी की भूली बिसरी यादें 

एक बार स्वामी जी के साथ में कश्मीर गया साथ में कुछ और भी लोग थे। ब्रह्मदत्त जी साथ थे। लकड़ी बीन कर खाना बनाता था। यात्रा हमारी अच्छी रही। बातें बहुत सी हैं लेकिन मुझे याद नहीं रहतीं।

चौधरी नैत्रभान सिंह जी फारेस्ट रेंज ऑफिसर जाट परिवार के हैं। जयपुर में खातीपुरा रोड पर उनका निवास स्थान है जो रतन काटेज के नाम से विख्यात है। ये उन्होंने अपना संस्मरण सुनातू हुए कहा कि मैं 1966 मैं सीकर में रेंज ऑफिसर था। मैं बड़ा कर्मकांडी था और ऋद्धियां सिद्धियां प्राप्त थीं। मैं देवताओं से बात करता था जिसको चाहता था बुलाकर बात कर लेता। 

वैसे ऋद्धि सिद्धि प्राप्त करने का मैंने कोई प्रयास नहीं किया था। कर्मकांडी होने का मेरा मतलब यह है कि नियम से दो तीन घण्टे प्रातः तथा सायं अपना समय रामायण गीता भागवत पढ़ने में तथा गायत्री मंत्र के जाप में लगाता था। अखण्ड कीर्तन, दान पुण्य, व्रत आदि हर प्रकार का नियम हर वक्त चलता रहता था। 

अब तक के जीवन काल में जहां कहीं भी सुनता था कि महात्मा या साधु आये हुए हैं तो उनसे जाकर मिलता था और प्रभु प्राप्ति के मार्ग हेतु प्रार्थना करता था। मैं उनसे अनेक प्रकार के परमार्थी प्रश्न किया करता था। कई महात्माओं ने मुझे बताया कि तुम प्रभु के द्वार तक पहुँच चुके हो और हमने अभी शुरुआत की है आप पर भगवान कृष्ण की और देवी की अनन्य कृपा है और वो आपको कभी नहीं छोड़ते हैं।

सन् 1965 में श्रीधर जी से मेरा परिचय सबसे पहले हुआ मेरे कर्मकांड को देखकर वो हंसते थे। चूंकि मैं अफसर भी था इससे उनको भय भी था अतः साफ नहीं कह सकते थे। श्रीधर जी के वृद्ध होने के कारण इनके अच्छे विचारों की मान्यता बढ़ती चली गई। उस समय मेरे मन में भय हुआ जैसे कि कोई चोरी करके आता है उसी प्रकार का इसके लिए सप्ताह परायण करना उचित समझाा। पैसे मेरे पास अधिक नहीं थे। किसी ने कहा कि रुपया और नारियल दे देना। पैसे से ही भाव होता है। 1966 के भण्डारे के बाद श्रीधर जी मेरे पास आये। 

मैंने कहा कि सप्ताह परायण के अन्दर मदद करना। उन्होंने मुझको डाटा और कहा कि रेंजर साहब आप सतगुरु को कर लो वो सब अपने आप ही पूरे हो जायेंगी यह कहकर वो अपने घर वापस चले गये। मैं अपने पूजा स्थान को प्रवेश कर गया। मैं राधाकृष्ण का उपासक था। मैंने सत्य पथ के के बारे में प्रार्थना की । 

तो अन्तःकरण से प्रेरणा मिली कि तुमको कुछ मिलने वाला है मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। दूसरे दिन श्रीधर जी ने सत्य सन्देश लाकर मुझको दिया और कहा कि इसको पढ़ो। रात्रि को मैंने, स्त्री ने, भतीजी की लड़की ने बैठकर उसको पूरा पढ़ा। उसको पढ़ने मात्र से मुझको रुपये में 12 आने शांति महसूस होने लगी और जिस मार्ग की तलाश में था उसके प्रति आशा बंधी।

दूसरे दिन अमर सन्देश की पूरी जिल्द श्रीधर जी ने मुझे दी। उसके पढ़ने से स्वामीजी का बहुत अनुभव हमें हुआ और दफ्तर का काम भी छूट गया। स्वामी जी का पत्र श्रीधर जी के पास मिला। मुझे उन दिनों बुखार था। 

श्रीधर जी ने मुझे एक स्वामी जी का कैलेण्डर भी दिया। स्वामी जी सीकर आ पहंचे और श्रीधर जी ने अपने बच्चों को भेजकर मुझे बुलाया बुखार में होने से मैंने जाने से इंकार कर दिया परन्तु चिन्ता लगी रही। रात्रि आठ बजे मेरी स्त्री मेरे एक रिश्तेदार के यहां सादी के सिलसिले में गई थी वो उस वक्त आ गई मैंने कहा कि स्वामी जी आये हैं पर कैसे जाऊं ? स्त्री ने कहा कि आपको दो दफे तो मरना नहीं। सतगुरु के सामने ऐसा भी हो जाये तो हर्ज नहीं। इन शब्दों से मुझे चेतना आई और फिर से मैंने उन शब्दों को रिपीट करने को कहा।

तब मेरी स्त्री ने कहा कि सतगुरु के सामने तुरन्त चले जाइये। उनको 20 दिन पहले स्वप्न में स्वामी जी का साक्षात्कार हो चुका था। मैं फौरन बिस्तर छोड़कर उनके कहने पर फूलचन्द जी बियाणी की हवेली के बाहर पहुंचा, तो श्रीधर जी मिले। सन् 66 के फरवरी का महीना था रात का समय था स्वामी जी भोजन के पश्चात विश्राम करने चले गये थे। श्रीधर जी लौटे और उन्होंने फाटक खुलवाया। अर्ज करने पर स्वामी जी ने तुरन्त मुझे बुलवा लिया। शयन अवस्था में बाल बिखरे हुए थे।  

उस समय सिर पर कपड़ा नहीं रखते थे। उस झांकी का वर्णन नहीं कर सकता हूं। सुन्दर चेहरा था। मैंने प्रणाम किया। स्वामी जी ने कहा कि अच्छा आ गये। थोड़ी देर चुप रहने के बाद मैंने प्रार्थना की कि दुनिया वाले मुझको महात्मा समझते हैं। बड़ी इज्जत करते हैं परन्तु सच पूछा जाय तो मेरे जैसा गन्दा कोई नहीं। अगर आप मुझे भवसागर पार कर सकें तो वर्ना मैं जहां हू वहीं ठीक हूं।

प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी होली का निर्विघ्न कार्यक्रम जयपुर में सम्पन्न हुआ। लगभग सभी प्रान्तों के प्रेमियों ने इसमें भाग लिया। राजस्थान के सत्संगियों की तो बात ही क्या थी। अधिक से अधिक संख्या में सत्संगियों का समूह उमड़ा हुआ था। 

इस वर्ष सत्संग समारोह की व्यवस्था म्यूजियम के पीछे रामनिवास पार्क मे की गई थी। वहीं पर पूज्य स्वामी जी महाराज के रहने तथा सभी प्रेमियों के रहने की व्यवस्था की गई थी कुछ धर्मशालाएं भी लिए गये थे प्रेमियों के ठहरने के लिए। सत्संग पण्डाल पार्क में बना था। राजस्थान संगत की व्यवस्था प्रशंशनीय है। उन्होंने हर प्रकार की सुविधायें जितनी भी प्रेमियों को दी जा सकती थीं दी थी।

पूज्य स्वामी जी महाराज तो जयपुर 22 मार्च की रात्रि में ही पधारें थे। 24 मार्च को अखिल भारतीय वैचारिक नवयुवक लोकप्रिय सेवा समूह का अधिवेशन था। स्वामी जी महाराज ने वीर नवयुवकों को आशीर्वाद दिया एवं आवश्यक निर्देश दिया जैसा की वे देश के समस्त छात्रों से निवेदन कर रहे हैं 25 तारीख को छोटी चौपड़ पर नवयुवकों ने अपना मंच बनाया और अपने हृदयोद्गार जनता के सामने व्यक्त किये। 

वीर छात्रों ने देश के समस्त छात्र नवयुवकों से अपील की कि देश के उत्थान के लिए, लोकतंत्र की रक्षा के लिए तैयार हो जायें और हर प्रकार के आन्दोलन हड़ताल तोड़फोड़ से अलग होकर एक नया आदर्श स्थापित  कर दें और जो कलंक गुण्डागर्दी का, उदण्डता का, या और प्रकार का उनके सिर पर लगाया गया है उसे धोने के लिए कटिबद्ध हो जायें। 

राजस्थान के वीरों की कुर्बानी की कहानी दुहराते हुए छात्रों ने प्रतिज्ञा की कि वे जो कुछ भी जनता के सामने प्रतिज्ञा करेंगे वे पूरा करके दिखायेंगे। सायं 7 बजे के बाद स्वामी जी महाराज छोटी चौपड़ पर पधारे। उन्होंने नवयुवकों को दो शब्द सुनाते हुए कहा कि देश का परिवर्तन इन वीरों के द्वारा ही होगा। ये नवयुवक मंच से जो प्रतिज्ञा कर लेंगे उसे पूरा करके दिखायेंगे।

26 से 28 मार्च तक सत्संग समारोह था। रोजाना 3 सत्संग होता था सुबह 8 बजे से 10, जिसमें स्वामी जी महाराज थोड़ी देर प्रवचन करते थे उसके बाद नवयुवक बच्चे बच्चियां अपने उद्गार, आवाहन जनता के सामने प्रकट करते थे। दोपहर 2 से 4  बजे तक तथा शाम को 7 से 9 बजे तक स्वामी जी का धर्म कर्म का सन्देश होता था। आध्यात्मवाद की ऊंची से ऊंची व्याख्या स्वामी जी ने की तथा कर्म वाद की सरल और ऊंची व्याख्या सरल भाषा में सामने रखी।

छात्रों का समय स्वामी जी महाराज से मिलने वाला रहता था। 23 जनवरी की चर्चा सब कर रहे थे। स्वामी जी ने कहा कि मैं निमंत्रण पर गया था और जो लोग भी मुझे निमंत्रित करते हैं वे चाहे जिस कौम के हों, संस्था पार्टी के हों, मैं जाता हूं और जाता रहूंगा। मेरा सन्देश सबके लिए एक ही है। छात्रों ने वारंट और गिरफ्तारी की चर्चा भी की। 

स्वामी जी ने हंसते हुए कहा कि यदि अखवार वाले वारंट और गिरफ्तारी की चर्चा कर सकते हैं तो उन्हें यह भी लिखना चाहिए था कि जयपुर में बाबा जी होली का सत्संग करेंगे। छात्रों ने कहा कि ये बात तो ठीक है यह कहीं अखवार वालों ने नहीं लिखा और लड़कों ने एक स्वर से कहा कि सब अखवार वाले झूठे हैं और जनता को बर्गलाने वाले हैं।

 होली का सत्संग समारोह तो सन् 65 से ही जयपुर में हो रहा है। प्रेमी जन तो हर वर्ष की तरह मस्ती ले रहे और अपने साधन भजन में लगे रहे किन्तु इस बार जयपुर की जनता में तथा छात्रों में बड़ा कौतुहल था । स्वामी जी को लेकर । 

23 जनवरी के बाबा को देखने के लिए लोग आते रहते।  कुछ नवयुवक मैदान के फाटक पर परेश करते हुए बातें कर रहे थे कि अबकी कोई नकली जयगुरुदेव आये होंगे असली वाले तो गिरफ्तार हो गये। बातें करते हुए वे पण्डाल में पहुंचे। स्वामी जी महाराज मंच पर विराजमान थे। स्वामी जी को देखते ही एक लड़का बोला अरे, ये तो वहीं जयगुरुदेव हैं जो हर साल आते रहते हैं नकली थोड़े ही हैं।

जिन लोगों ने समझने का लक्ष्य सामने रखकर स्वामी जी महाराज का प्रवचन सुना उसकी समझ में आई और उन्होंने यह स्वीकार किया कि बाबा जी शुद्ध आध्यात्वाद का प्रचार करना चाहते हैं वे एक सन्त हैं जो मानवमात्र का कल्याण करना चाहते हैं। 
राजनीति की, समाज नीति की, परिवार नीति की बात वहीं तक करते हैं जिससे देश की, समाज, परिवार की मर्यादा लौट आये। व्यवस्था ठीक हो जाये। द्वन्द और हाहाकार भरे वातावरण में कोई आत्मकल्याण की बात समझ नहीं सकता है। तरह तरह से लोगों ने अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त कीं।

स्थानीय विद्यालयों तथा मेडिकल काॅलेज के छात्रों का आना मैदान में लगा रहता था। वे स्वामी जी का दर्शन करते थे। जो कुछ पूछते थे स्वामी जी उनको समझाते थे। वे बड़े प्रसन्न संतुष्ट होकर लौटते थे। स्वामी जी ने कहा कि मेरे कोई बच्चा है ही नहीं। मैं तो आप ही लोगों के लिए आवाज लगा रहा हूं। 
आपको बदनाम किया गया जिससे मुझे बड़ा दुख हुआ। कितने बच्चों की जानें गईं, इसका मुझे भी धक्का लगा पर आप लोगों को मिला क्या ? बच्चे बड़े प्रभावित हुए और उन्होंने कहा कि युवावर्ग आपके साथ है और आपके निर्देश में काम करेगा। हम आपका सन्देश जन जन में फैलायेंगे। जयपुर के अतिरिक्त जोधपुर, सीकर, बीकानेर आदि अनेक स्थानों के भी छात्र आये थे।

28 मार्च को सत्संग के बाद 23 जनवरी 1975 की फिल्म दिखाई गई। मैदान सत्संगियों छात्रों एवं नागरिकों से खचाखच भरा हुआ था। कानपुर की जन उपस्थिति देखकर सबके होश उड़ गये। मैदान में बैठै नर नारी खड़े लोग पेडा़ें पर चढ़े, मकान की छतों पर भरे हुए लोग, सड़क पर नारियों का मजमा सबके बीच बोलते हुए बाबा जी 30 लाख की उपस्थिति जड़ बनी सुनती रही। 
यह दृश्य देखकर लोग स्तब्ध थे। सत्संग का टेप चल रहा था। मेरे आगे कुछ लोग खड़े थे। उन लोगों ने फिल्म समाप्त होने पर अपनी प्रतिक्रिया करते हुए कहा कि इतनी भीड़ और इतनी शांत मुद्रा में बैठी है। जो कुछ बाबा जी ने कहा उसमें कोई ऐसी बात नहीं कहीहै  कि कोई उग्रता हो सके। इतना झूठा प्रचार हद कर दी इन अखवार वालों ने । 

दूसरा बोला कि पैसे की क्या माया है जो चाहो सो लिखवा लो। किसी ने कमेंट किया कि भाई ये शांत वातावरण तो आज किसी को अच्छा नहीं लगता है। सब जगह तो जूते चप्पल चलते हैं इसीलिए सोचा होगा लोगों ने बाबा जी को अखवार पर ही बदनाम कर दो।

जयगुरुदेव
शेष क्रमशः अगली पोस्ट  no. 13 में...

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sabhar, yug mahapurush baba jaigurudev ji maharaj bhag 5

बाबा जयगुरुदेव जी महाराज की गूँजती वाणियाँ 

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