✵ स्वामी जी की भूली बिसरी बातें ✵
स्वामी जी ने सत्संगियों को आदेश दिया कि धर्म प्रचार में लगे रहो। कठिनाईयों को पार करना ही है। आने वाली मुसीबतों को भगवान की सौगात समझकर अपने लक्ष्य पर बढ़े चलें। विजय तो उसी की होगी जिधर सत्य और धर्म रहेगा उधर ही भगवान रहेगा। नवयुवकों को स्वामी जी ने आदेश दिया कि वे देश के उत्थान में लग जायें, हर प्रकार के अनैतिक कार्यों से अलग हो जायें, राजनीतिक पार्टियों से अपना सम्बन्ध विच्छेद कर लें, परिवर्तन होगा नवयुवकों के ही द्वारा। वे जनता को विश्वास दिला दें कि सेवा का मौका मिलने पर वे जन जन को संतुष्ट कर देंगे।
स्वामी जी बोले हम तो सेवा करने आये हैं और सेवा करना ही पड़ेगी। मैं इस बात को समझ नहीं पाया और अपने पिछले शब्दों को फिर से दुहराया। स्वामी जी ने फिर उसी बात को कहा। मैंने उनके चरण छूकर यह कह दिया कि मेरा जीवन आपके हाथों में हैं। स्वामी जी ने पूछा कल कहीं आप जा रहे हैं ? मैंने कहा नीम के गिरने का दौरा है। स्वामी जी ने पूछा कब आओगे ? मैंने कहा कि आपके हाथों में है मैं कुछ नहीं जानता।
स्वामीजी ने कहा कि बीकानेर जाकर वापस आ जाइये। दूसरे दिन मैं नीम के थाने (सीकर से 60 मील ) जाकर रात्रि तक वापस आ गया दिन भर मैं मस्ती में था और दर्शन के बिना चैन नहीं था। स्वामी जी दो दिन बाद फूलचन्द्र जी की हवेली पर आ गये। यह इत्तला पाकर मैं अपने परिवार सहित वहां जा पहुंचा मैं सुख साफा बांधा करता था। स्वामी जी सत्संग कर रहे थे। मुझे महसूस हो रहा था कि स्वामी जी ने मुझे और मेरे परिवार को बहुत प्यार किया और मोती ड्राइवर को आदेश दिया कि इनको बंगले पर छोड़ आओ।
दूसरे दिन सुबह स्वामी जी सत्संगियों को लेकर मेरे निवास स्थान पर पहुंचे। मैं उस वक्त भगवान का पाठ पढ़ रहा था। अध्याय समाप्त होने में चार लाइन बाकी थी और आवाज आने लगी कि गुरुदेव जी आ गये हैं चार लाइन पढ़ना दुस्वार हो गया। बड़ी मुश्किल से मैं बाहर निकला।
स्वामी जी बंगले के अन्दर सड़क पर आ चुके थे। स्वामी जी को देखने के बाद मैं बड़े जोर से रोने लगा। पांच मिनट तक ऐसे ही स्थिति रही। आस पास के आफिसर बाहर निकल कर मेरी स्थिति को देखकर ताज्जुब में थे। स्वामी जी दिल्लान में कुर्सी पर बैठे और फर्माया कि जन्म जन्मांतर से बिछुड़ा हुआ जीवन इस दुनिया में कितना दुखी और परेशान है। यह अपने आपको भूल चुका मार्ग न मिलने से वह दुखी है रोता है चिल्लाता है।
स्वामी जी ने हमारा पूरा बंगला और नर्सरी पूरा घूम कर देखा और और वापस आये। दूसरे दिन नामदान हुआ। मैंने सारी पूजा-पाठ सब छोड़ दी किन्तु मंगलवार का व्रत करता रहा। मेरी स्त्री ने एक दिन कहा कि पूरा गुरु पाने के बाद भी इसमें फंसे पड़े हो फौरन छोड़ दीजिए।
1 माह के बाद मैंने मंगलवार का व्रत भी छोड़ दिया। एक दिन मैंने हनुमान जी से प्रार्थना किया कि मुझे कृपा करके यह बताइये कि जो रास्ता मैंने लिया है वह सच है या गलत। स्वप्न में पहली बार हनुमान जी का दर्शन हुआ और स्वामी जी एक तरफ जाते दिखाई पड़े। हनुमान जी ने मुझको बड़े जोर से हाथ के झटके से स्वामी जी की तरफ इशारा करते हुए कहा कि चला जा सतगुरु के साथ कभी फिर लौटकर मत देखना। उस दिन से बराबर गुरु महाराज के साथ लगा हुआ हूं और अब तो यही है कि- मैं हूं गुरु का, गुरु हैं मेरे, बीच न आओ कोई।
एक बार चुरु जिले के घांघू ग्राम में गुरु महाराज जी के साथ चार पांच वर्ष पूर्व एकांत विचरण में भोजन के पश्चात मैं खड़ा विचार कर रहा था कि गुरु महाराज आपके बिना हमारा कौन है ? मेरे कोई सन्तान नहीं है। इसी बीच गुरु महाराज लपक कर मेरे पास आये कि उनकी दाढ़ी मेरे मुंह को छूने लगी और पूछा कि क्या बात है ? मैंने कहा कि गुरु महाराज आप बताइये कि आपके सिवा हमारा कौन है, क्योंकि घर वाले तो भारी विरोध हमारा करते हैं। हमारी कौन सम्हाल करेगा कोई बच्चा भी नही है।
गुरु महाराज ने बड़े प्यार से कहा कि मैं तुम्हारा बच्चा हूं। तुम्हारी सब देखभाल मेरे हाथ में है। चिन्ता क्यों करते हो ? मैं गदगद होकर रोने लगा फिर साथ लेकर घूमने लगे। एक बात और याद आ गई कि मेरे नामदान के दूसरे दिन काला कोटा ग्राम का गोविन्द गूजर, जो मेरा फारेस्ट गार्ड था, नामदान लिया। उसके लिए नामदान के बाद सायंकाल गुरु महाराज ने सत्संग में कहा कि मैं तीन साल से आप लोगों को संकेत दे रहा था कि यहां पर एक विभूति प्रकट होने वाली है और वो विभूति आज प्रकट हो गई।
कुछ महीने साधना के बाद सीकर आने पर गुरु महाराज ने बताया कि यह व्यक्ति इतनी पावर प्राप्त कर चुका है कि अगर चाहे तो सृष्टि की रचना कर सकता है। अगर मैं इसको यह महसूस होने दूं तब।
एक दिन स्वामी जी के साथ घाय की धानी गांव में गया। यह जाटों का इलाका है। यहां कहावत है जाट की पकड़ ऊंट की पकड़। ऊंट जिसको पकड़ लेता है छोड़ता नहीं है। जाट जिस रास्ते को पकड़ लेता है उसे पूरा करके ही छोड़ता है चाहे मर क्यों न जाये। रामप्रताप जी जो मामा के नाम से प्रसिद्ध हैं 80 वर्ष की अवस्था के हैें। 1966 में इनहोंने स्वामी जी महाराज से अनुरोध किया था कि महाराज घाय की धानी नाम बदलकर खीचड़ों का वास कर दिया जाये। स्वामी जी बोले कि यह नाम ऊपर रजिस्टर करवा दिया गया है। और अब बदल नहीं सकता। खीचड़ गोत्र है जाटों की।
राजस्थान की गाथा सुनाते हुए मलूकदास जी ने बताया कि उत्तर प्रदेश में ही रात्रि में चोरी होती है, रात्रि में डकैती होती है मगर इधर की तरफ सूचना देकर डाका डालने आते हैं। स्त्रियां जेबर पहनकर बाहर निकलें कोई नहीं बोलेगा बाहर लौटा रखा है शौच गये और लाकर वहीं रख दिया। चोरी नहीं होती है। खाने में बाजरा की रोटी मिल जाये, छाछ मिल जाये, घी मिल जाये फिर इसके आगे सब भोजन फीका है।
हमारी राजधानी में इसे बहुत पसन्द करते हैं। इधर का बाजरा बहुत हल्का होता है। उन्होंने गर्व से गर्दन हिलाते हुये बताया कि आप दो महीने खा लीजिए लाल हो जाइयेगा। राजे भी अपने भोजन में बाजरा जरूर रखवाते हैं।
पत्थर की मोटी मोटी दीवारें हैं। कई घर पास पास ही हैं। चारों तरफ खेत, बालू ही बालू है, जाड़े के दिनों में भी बालू दिन में गर्म हो जाती है तो गर्मी में तो नंगे पैर चलना मुश्किल है जबकि रेगिस्तानी आंधी चलती रहती है। मैंने एक पानी का कुआ देखा जिसमें बरसात का पानी इकट्ठा करते हैं। इस कुवें को ढक कर रखते हैं और यह पानी शादी ब्याहों में काम में आता है। इसको पीने के काम में भी लाते हैं।
राजस्थान के जैसलमेर, बीकानेर ऐसे क्षैत्र हैं जहां पर दूध दे देंगे मगर पानी न देंगे । अतिथि को तो पानी दे देते हैं या दवा के लिए देते हैं। वहां कोई जल्दी पानी नहीं मांगता है। वैसे बीकानेर और चुरु में भी पानी की कमी है। किन्तु उतनी नहीं जितनी जैसलमेर और बाड़मेर में।
स्वामी जी 1960 में पहली बार इधर आये थे। सूरजमल जी पहले नामदानी हैं। 1962 तक सभी नामदानी हो गये। स्वामी जी शुरु से ही रामप्रताप जी को मामा जी कहते हैं। इस वृद्धावस्था में भी वो 12 बजे रात्रि में सोते हैं और 4 बजे प्रातःकाल उठ जाते हैं। 4, 5 घण्टे नित्य साधना में समय देते हैं। स्वामी जी ने अपने पहले सन्देश में सन् 60 में कहा था कि तुम्हें अपनी आत्मा को जगा लेना है और यही मनुष्य धर्म का नियम है कि अतिथि को भोजन कराना चाहिए ।
मामा जी को नामदान लेने के बाद जब ऊपर के लोकों का अनुभव हुआ तो स्वामी जी पर उन्हें पूरा विश्वास हो गया। आज भी जब सीकर में सत्संग होता है तो चार मील पैदल चलकर वो सत्संग सुनने जाते हैं।
सेठ जी की हवेली का खाली भाग दिखाते हुए श्रीधर जी ने अनेक संस्मरण सुनाये। कुछ दिन तक श्री गजानन्द जी उस हवेली में किरायेदार रह चुके थे वे भी सत्संगी थे। कहां स्वामी जी साधना पर बैठाते थे, कहां सत्संग होता था, कहां बैठकर स्वामी जी ने चाय पानी किया।
वियाणी जी के उस एतिहासिक हवेली को श्रीधर जी के उस ऐतिहासिक हवेली को श्रीधर जी ने बड़े ही स्नेह पूर्वक दिखाया। वियाणी परिवार के साथ हम लोगों ने 3, 4 दिन बड़ी ही प्रसन्नता में व्यतीत किये। उन लोगों ने बहुत अपनत्व दिया।
जयगुरुदेव
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