जयगुरुदेव : कल्याणकारी संदेश

 ●  शाकाहारी रहो। 

ऐ मनुष्य इंसानों ! शाकाहारी हो जाओ, शाकाहारी। 
शाकाहारी का मतलब समझ लो। 
जितने मोटे महीन अनाज, और मोटी महीन सब्जी, मोटे महीन फल। 
आप घी दूध दिन में सौ बार खाओ। 

आप नर नारी बच्चे बच्चियों को मना किया जाय  तब ये कहना।
आप इसको खूब खाइए, कौन मना कर रहा। 
लेकिन अशुद्ध आहार नही।
हे बच्चे बच्चियों अशुद्ध आहार नहीं। 

अशुद्ध आहार मत करना। 
किसी आदमी को, किसी बच्चे को, किसी जानवर को, किसी पंछी को किसी को अरे अशुद्ध आहार नही।
अशुद्ध आहार से अशुद्ध बुद्धि...

फिर बीड़ी तम्बाकू हुक्का पिओ
मैनें तो कभी पिया नहीं। 

ऐ बच्चों!
ऐसा कोई नशा मत करो जिससे तुम्हारी बुद्धि पागल हो जाये, 
तुम घर में किसी बहु बेटी को मां को नही पहचान सकते अगल बगल में, 
बुद्धि पागल हो जाएगी। 
उस पागलपन में चले जा रहे हो गड्डा मिलेगा। 
पैर पड़ेगा और टांग टूट जाएगी

टांग टूट जाएगी, और सिर लड़ जाएगा, फट जाएगा।। 
मर जाओगे। बताओ पैसा कहाँ से आएगा। ऐसा नशा है। 
ना रामायण कहती, ना महात्मा कहते, ना कुरान कहती है,
फिर आप क्यों ऐसा करते हो ।  

बीड़ी तम्बाकू हुक्का पिओ। लेकिन जो बच्चे अट्ठारह बीस साल के हो गए बीड़ी तम्बाकू हुक्का नही पीते, अरे बच्चों तुम कभी भूलकर मत पीना, ये बुरी आदत है, जो पीते हैं उन्हीं को पी लेने दो। तुम मत पीना। अगर जीवन अपना चाहते हो निरोग। ये देखो स्कूल है, ये बच्चे पढ़ते हैं।

तुलसी, नीम का पौधा डालो, हर्रा, बहेर्रा, आवंला पालो।
मिर्च, पिप्पल और सोंठ का रखना, हींग, चिरैता, हल्दी चखना।।

सौंफ औ जीरा, अरु मंगरैल, घी, सरसो, और नीम का तेल।
गौ, गोबर, गोमूत्र, व दूध, इनका रखो घर मे वजूद।। 

आगे आने की बीमारी, दवा न ढूंढ मिले पंसारी।
ताते इन्हें घर ही में राखो, विधी अनुसार ताहि को चाखो।।

#परमसंत_बाबा_उमाकान्त_जी_महाराज
(आश्रम उज्जैन)






एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ