*यहां बाबा जयगुरुदेव जी का दरबार लगा है, यहां से कोई खाली हाथ नहीं जाएगा -सन्त बाबा उमाकान्त जी*

जयगुरुदेव

12.10.2023
प्रेस नोट
बावल (हरियाणा)

*यहां बाबा जयगुरुदेव जी का दरबार लगा है, यहां से कोई खाली हाथ नहीं जाएगा -सन्त बाबा उमाकान्त जी*

*बाहरी जड़ पूजा से अंदर की असली आध्यात्मिक चीज नहीं मिलेगी, वो रास्ता तो वक़्त के सन्त ही बताते हैं*


निजधाम वासी परम सन्त बाबा जयगुरुदेव जी के मासिक त्रियोदशी भंडारा कार्यक्रम में उनके आध्यात्मिक उत्तराधिकारी वक़्त के सन्त सतगुरु बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 12 अक्टूबर 2023 प्रातः दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि 

इस समय पर गुरु का याद आना बडा मुकिल है तो रास्ता, तरीका निकाला जात है। जब आप त्रयोदशी पर कार्यक्रम, ध्यान, भजन, सुमिरन करते हो तो गुरु याद आते हैं। पहले लोगों का खान पान चरित्र ठीक था तब इतने प्रचार-प्रसार की, लोगों को शाकाहारी नशामुक्त बनाने की जरूरत नहीं थी। जब प्रभावशाली लोग सन्तमत में जुड़े तक लोगों पर प्रभाव पड़ा, लोग विवश हो गए सन्तमत में जुड़ने के लिए। 

जैसे जब क्षत्राणी रानी मीरा अन्दर की बात बताने, गुरु की महिमा गाने लगी तब लोग मजबूर हो गए। गुरु नानक जी ने भी उसी रास्ते को बढ़ाया जो कबीर जी ने बताया था। लेकिन अब लोग असली अंदर की आध्यात्मिक चीज छोड़ कर मत चलाने लग गए। किताबों, जमीन, जायदाद, मठ, बाहरी जड़ पूजा-पाठ में फंसने लग गए। वाल्मीकी जी ने मरा-मरा नहीं जपा था बल्कि बल्कि बाहरमुखी की बजाय अन्दरमुखी साधना की थी तब वो ब्रह्मा के समान हो गए थे, ब्रह्मा की ताकत उनमें आ गई थी।


*बाहरी जड़ पूजा से अंदर की असली चीज नहीं मिलेगी*

मूर्तियों की आखों में देख कर ध्यान एकाग्र करने के अभ्यास के लिए व्यास जी ने जगह-जगह (बड़ी आंखों वाली मूर्तियों के) मंदिर बनवाये। पहले मंदिर ज्यादातर गांव के बाहर बनवाये थे। शोर-शराबा कम होता था, लोग जाते, एकाग्रता लाने का अभ्यास करते, दृष्टि की साधना करते थे तब अंदर का किवाड़ खुलता था। अब तो बाहरी जुड़ पूजा में फंसते जा रहे। मंदिरों का महत्व अब कम होता जा रहा। 

सन्त आये तब बताया कि ये मनुष्य शरीर रूपी मंदिर है। इसके अंदर ही, जीते जी ही भगवान मिलते हैं और मिलेंगे। रामलीला आदि में इंसान भगवान का रूप बनाता है और उसी को लोग असली भगवान कहने लगते हैं। ये भगवान नहीं, वो तो अंदर में मिलते हैं। आंखों के नीचे का भेद, चक्रों पर पड़ने वाली देवी-देवताओं की परछाई को बहुतों ने देखा, बताया, लोगों का छोटा-मोटा दुःख दूर किया लेकिन इससे आत्मा को फायदा नहीं होता। वो रास्ता तो आखों के बीच में से होकर गया है। बाबा जयगुरुदेव जी ने ही बताया इस समय आटा-दाल का मिलना मुश्किल लेकिन भगवान का मिलना आसान है।


*बच्चों पर ध्यान दो*

मांसाहारी, नशे की गोलियों की आदतों से नौजवानों को पहले न सुनी गई असाध्य बीमारीयां आ रही। नशे की वजह से मातृ भक्ति, पितृ भक्ति, देश भक्ति, गुरु भक्ति कुछ नहीं हो पा रही है। जैसे कांटे का पौधा लगते ही उसे तुरंत उखाड़ दोगे तो उससे छुट्टी पा गए। बाद में ज्यादा तकलीफ होगी। बच्चे, बच्चियां कम कपड़े पहन कर बजार, बाहर जा रहे, बिगड़ रहे, ध्यान दो। गलत संगत मिल जाती है। जवानी में नहीं पता चलता, लेकिन बाद में नशे की वजह से आई बीमारीयां उभरती है।


*मन को थोड़ा रस देने की बजाय तुरंत मारो*

प्रचार प्रसार से जान-अनजान में बने कर्म कटते हैं। जयगुरुदेव मत को लोग मिटा नहीं पाएंगे। ये बढ़ेगा, बहुत बढ़ेगा। लोग ताज्जुब करेंगे कि जो काम के सौ सालों में नहीं हुआ वो इतना जल्दी इतना ज्यादा कैसे बढ़ा। मन जहाँ (विषयों की तरफ) जाए उधर देखे ही नहीं तो मन उधर नहीं जाएगा। तुरंत मन को मारो नहीं तो बढ़ता चला जाता है। थोड़ा रस मिलेगा तो आगे और बढ़ता चला जाता है। आग को घी से नहीं बुझा सकते है।


*कोई खाली हाथ हाथ नहीं जाएगा*

ये बाबा जयगुरुदेव जी का का दरबार लगा है। यहां से कोई खाली हाथ नहीं जाएगा। जो जैसी श्रद्धा भाव से (बताई गई साधना) करता है उसे वैसा ही फल मिलता है। सन्तों को कर्म काटने का तरीका मालूम होता है। त्रियोदशी व पूर्णिमा को आश्रम पर आते रहो। अन्य कार्यक्रमों में भी आते-जाते रहो। इससे जान-अनजान में बने कर्म कटते हैं।



अंदर और बाहर दोनों तरफ से अपने अपनाए हुए जीवों की संभाल करने वाले बाबा जी 

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