जयगुरुदेव
10.10.2023
प्रेस नोट
उज्जैन (म.प्र.)
*साधना में जो भी (दिव्य) दिखाई सुनाई दे, किसी को भी, चाहे कितना भी नजदीकी हो, कुछ भी बताना नहीं है*
*जीवात्मा ऊपर लोकों में से हो करके सतलोक पहुंच जाती है -सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज*
*जो पा जाता है उसी को तो पागल कहते हैं*
जीते जी जीवात्मा को उपरी दिव्य लोकों में भ्रमण कराते हुए अपने निज घर सतखंड जयगुरुदेव धाम ले चलने वाले, अंतर की दौलत देने वाले, गोपनीय पांच नाम का नामदान देने के लिए एकमात्र अधिकृत, वक़्त के मसीहा, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त महाराज जी ने 19 मार्च 2019 प्रातः उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि
परमात्मा की अंश जीवात्मा है। जीवात्मा ऊपरी लोकों में भी है और यहां मृत्यु लोक में भी है। यहां पर आप रहते हो। यहां के सभी जीवों को मिला करके उससे कहीं ज्यादा जीव वहां (उपरी लोकों में) हैं। वहां पर पेड़-पौधे, क्यारीयां भी दिखाई पड़ती है लेकिन इस तरह के पेड़ जमीन में लगे तो नहीं रहते हैं। झरने भी बहते हैं। मणि-मोतियों के चबूतरे भी दिखाई पड़ते हैं। बरसात भी होती है। लेकिन यह पानी वहां पर नहीं है। वहां की बूंदें बहुत चमकीली, अच्छी, मनमोहक होती है। जो भी चीज ऊपरी लोकों की है, वो, उसकी सुन्दरता, यहां इस मृत्युलोक से अच्छी है, ज्यादा है। क्योंकि उधर से ही सुंदरता, सारी चीजें इधर लोगों को मिली, उतरी है।
जैसे किसी को भोजन बनाने के लिए दे दिया जाए। जिसे भोजन बनाना नहीं आता वो मिर्च-मसाला, नमक, तेल आदि किसी चीज को ज्यादा डाल देगा फिर उसी का स्वाद आएगा। और जिसे भोजन बनाना मालूम है वो सब सही मात्रा, अनुपात में डालेगा, बढ़िया बनेगा, हर चीज का स्वाद उसमें आता है। ऐसे ही ऊपर से यह कला,चीजें उतरी है। ऊपर की जो कला, चीजें हैं, यहां जैसी तो वहां पर नहीं है। खुशबू और ये सारी चीजें वहीं से आई है। अब आप कल्पना करो कि जहां से कलायें उतरी है, वहां की चीजें कितनी अच्छी होंगी। लेकिन आप अगर चाहो तो वहां (जाकर) देख सकते हो, वहां की खुशबू ले सकते हो, वहां की मीठी आवाज सुन सकते हो। हर लोकों का अलग-अलग हिसाब है। तो इनका (धनियों का) सुमिरन कराया जाता है।
*जीवात्मा उपरी लोकों में से हो करके सतलोक पहुंच जाती है*
अगर बीच वालों को खुश कर लो, नीचे से ही खुश करते चले जाओ तो आपके लिए आगे रास्ता साफ हो जाएगा। एक के बाद दूसरे, दूसरे के बाद तीसरे, चौथे लोकों में से जीवात्मा को जाना होता है। ये जीवात्मा इन दोनों आंखों के बीच में बैठी हुई है। जब मां के पेट में बच्चा पांच महीने दस दिन का हो जाता है तब उस पिंड में जीवात्मा डाल दी जाती है। तो वह पिंडी दसवां द्वार, नुक्ता ए सफेदा, तीसरा तिल में बैठी हुई है।
तो वहां से ऊपरी लोकों में से हो करके यह (जीवात्मा) ऊपर निकलती है। साधक जिस तरह से मेहनत करता है उस हिसाब से आगे बढ़ता जाता है और अपने वतन, अपने मालिक के पास सतलोक पहुंच जाता है। शरीर किस काम के लिए मिला? कि इस शरीर के रहते-रहते अपनी जीवात्मा का कल्याण कर लो, इसको अपने वतन मालिक के पास पहुंचा दो, वापस मृत्युलोक में, दु:ख के संसार में न आना पड़े। अगर इस काम में लग जाता है तो दुनिया में शरीर के रहते-रहते बराबर अपने घर आता-जाता रहता है। फिर उसको मौत का इंतजार नहीं करना पड़ता है कि मौत आने पर शरीर छूटेगा तब अपने घर, वतन जाएंगे।
*जो पा जाता है, उसी को तो पागल कहते हैं*
जब आप आंख बंद करोगे, ध्यान लगाओगे, ऊपरी लोकों में जाओगे, स्वर्ग बैकुंठ देवलोक सूर्य चन्द लोकों में जाओगे, वहां का नजारा दृश्य देखोगे तो देख कर के खुश हो जाओगे। और खुश हो करके दूसरों को बताने लगोगे। और जैसे ही बताओगे वैसे ही वह बंद कर देगा। फिर वह चीज दिखाई नहीं पड़ेगी और न कुछ सुनाई पड़ेगा।
इसीलिए किसी को भी नहीं बताना है। कोई कितना भी नजदीकी हो, नहीं बताना है। औरत को पुरुष की अर्धांगिनी कहते हैं। औरत को भी नहीं बताना है। औरत पुरुष को भी नहीं बताएगी। किसी को नहीं। जिस तरह से जो अपने मुंह में डालता है, स्वाद उसी को मिलता है, उसी के पेट में जाता है, दूसरे को नहीं पता चलता है, ऐसे ही आप को इस आनंद को छुपा के रखना है। (बताने पर) दूसरा तो जान (समझ) नहीं पायेगा, हंसी ठिठोली और करेगा।
(साधक) जब देखते हैं कि क्या बढ़िया दृश्य है, क्या बढ़िया नाच गाना हो रहा है, कहते हैं कि अभी तुम क्या इस नकली टीवी में फंसे हुए हो? यह देखो (उपर वाला) टीवी तो दूसरा सुनेगा तो कहेगा देखो ये पागल हो गया है। अरे जो पा जाता है उसी को तो पागल कहते हैं। लेकिन अब उस (साधक) को क्या मिल रहा है, तुमको क्या पता है। लोग कहेंगे, ये तो ऐसे ही बोलते रहते हैं।
मजा तो इधर नाच-गाने, टीवी मोबाइल में आ रहा है लेकिन ये कह रहे हैं कि वहां मजा आ रहा है, यह देखो कितना बढ़िया दृश्य है। कहा गया है- रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय, सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय। तो मन में जो बात आवे, अच्छाई, बुराई मन में ही रखो। और कहने लग जाओगे तो बांट तो कोई पाओगे नहीं और हंसी-ठिठोली अलग करेंगे। तो आपको कुछ भी (अंतर साधना में) दिखाई, सुनाई पड़े तो किसी को बताना नहीं है।
*दम-दम पर होते हैं सिजदे, सिर उठाने की फुर्सत नहीं है*
महाराज जी ने 17 जून 2023 सायं करनाल (हरियाणा) बताया कि नामदान देना कोई आसान काम नहीं है, बहुत कठिन काम है। दुनिया का सबसे कठिन काम हमको नामदान देना ही लगा। लेकिन गुरु का आदेश चाहे रैन में हो, चाहे बैन में हो, चाहे सैन में हो, वही सर्वोपरि होता है। क्योंकि जो गुरु को, गुरु की पावर शक्ति को, गुरु के महत्व को समझ जाते हैं, वो गुरु के एक-एक आदेश पर कुर्बान होने के लिए, गुरु की सेवा करने के लिए तैयार हो जाते हैं। गुरु से प्रेम कर लेते हैं। गुरु से जब इश्क़ हो जाता है तब गुरु ही उनके मस्तक पर रहते हैं। फिर तो दम-दम पर होते हैं सिजदे, सिर उठाने की फुर्सत नहीं है, इश्क वालों ने कब वक्त देखा, तेरे सिजदे में पाबंदियां है। तो आदेश का पालन तो करना ही करना है।
 |
अपने असला काम को प्राथमिकता से करने की शिक्षा देने वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज |
एक टिप्पणी भेजें
0 टिप्पणियाँ
Jaigurudev