परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने सतसंग सुनाते हुए कहा.
उज्जैन, 5 मार्च 2023 प्रातःकाल की बेला में परम पूज्य बाबा उमाकान्त जी महाराज ने होली के पावन पर्व में आये हुए श्रद्धालुओं को सतसंग सुनाते हुए कहा-
देखो इतने लोग हैं एक जगह पर इकट्ठा हैं। एक दूसरे से मिल-जुल रहे है। मेल-मिलाप कर रहे हैं। जितने भी लोग आप बैठे हुए हो और जो आपके शरीर को चलाने वाली शक्ति है। हाथ पैर को हिलाने वाली मुँह को चलाने वाली, आँख से दिखाने वाली ये जो शक्ति है, जिससे ये हाथ-पैर आँख, कान काम कर रहे हैं, सभी लोगों की ये शक्ति जिसको जीवात्मा कहा जाता है ये एक दिन सब लोग इकट्ठा थे। लेकिन ऐसा संयोग बना, ऐसा समझ लो कि मौज बनी कि सब बिछड़ गए। देखो आपके कुछ उज्जैन शहर में हैं, इंदौर में हैं, भोपाल में हैं। कोई मध्य प्रदेश में है। कोई महाराष्ट्र में है।
वही जीव, वही जीवात्माएं दूसरे देशों में भी हैं। इनका इकट्ठा हो पाना बड़ा मुश्किल हो रहा है। लेकिन एक समय ऐसा था कि सब एक जगह पर थीं। प्रेमियों, जब सन्त मत का सतसंग मिलता है तब ये जानकारी होती है, ज्ञान मिलता है और जब सतसंग नहीं मिलता है तो आदमी जिस एरिया में, जहाँ जिस क्षेत्र में, जिस घर में पैदा होता है उसी के अनुसार खाता, रहता, काम-धंधा करता है और जहां जिस नाम का प्रचलन देवी-देवता, भगवान का हो जाता है उन्हीं का नाम लेकर के और दुनिया-संसार से चला जाता है।
रचना का विस्तार
ये जो जीवात्मा उतारी गई, नीचे आई और ये मनुष्य शरीर मिला, इस मनुष्य शरीर के रहते-रहते अपनी आत्मा को वहाँ पहुंचा दो, वह काम नहीं हो पाता है। लेकिन जब सतसंग मिलता है, सन्त मिलते हैं, तब हर तरह की जानकारी होती है। तो सतसंग कहते किसको हैं ? कथा-भागवत, प्रवचन अलग होता है और सतसंग अलग होता है।
"सतसंग किसको कहत हैं, सो भी तुम सुन लेय।
सतनाम सतपुरुष का, जहां कीर्तन होय। "
सतनाम क्या है? सतपुरुष कौन है? कीर्तन क्या है? कीर्तन का मतलब होता है कीर्ति । कीर्ति किसको कहते हैं? जो अच्छा काम करके लोग चले गए इसी धरती पर। देखो आज उनका नाम है। आज उनकी कीर्ति है, उनकी पूजा है। वो चीज नहीं खतम होती है। बाकी चीजें खतम हो जाती हैं। देखो कहा है-
"का न अबला करि सकै, का न सिंधु समाय ।
का न पावक जरि सकै, केहि जग काल न खाय।"
तो जो कीर्ति होती है, ये इसको काल नहीं खा सकता। ये खतम नहीं होती। कहा गया-
"पुत्र न अबला करि सकै, पाप न सिंधु समाय,
कीर्ति न पावक जरि सकै, नाम काल नहिं खाय" ।
ये जो कीर्ति होती है, जो किया हुआ काम होता है, उसको आग जला नहीं 'सकती, हवा उड़ा नहीं सकती, उसको धरती अपने अंदर समा नहीं सकती, कीर्ति एक ऐसी चीज होती है। तो वो कीर्ति, वो लीला कहाँ हो रही है? तन में। तन का मतलब ये शरीर। शरीर के अंदर वो लीला दिखाई पड़ती है, शरीर के अंदर लीला 24 घंटे दिखाई पड़ती है। जहाँ पर इसका वर्णन हो।
सतलोक किसको कहते हैं ? सतपुरुष किसको कहते है ? लोक बनाने को, जैसे आपका ये जिला है, जिले के मालिक हैं सूबा, प्रांत हैं उसके मालिक हैं, देश के मालिक हैं ऐसे ही समझो, लोक हैं, तो लोकों के मालिक होते हैं, तो वो सतलोक है, सतलोक के मालिक हैं वो क्या कहलाते हैं? सतपुरुष। उसके ऊपर भी लोक हैं। अलख लोक, अगम लोक, अनामी लोक। इन लोकों के भी मालिक हैं।
सबसे पहले अनामी लोक ही था और अनामी लोक में ही, ये जितनी भी जीवात्माएं हैं, चाहे वो पिंड लोक हो, चाहे वो अण्ड लोक की हों, चाहे ब्रम्हांड लोक की हों, चाहे सतलोक, अगम लोक, अलख लोक की हों, ये सब वहीं समाई हुई थीं। सबके सब वहीं पर थे। इतना बड़ा वो लोक है कि न तो लिखा जा सकता है और न तो मुँह से वर्णन किया जा सकता है वहाँ का। वहाँ तो सब एक ही जैसा है।
कोई भी रोना-धोना नहीं, कोई दुख नहीं, कोई गंदगी नहीं, कोई दिन-रात का चक्कर नहीं, कुछ नहीं। वहाँ के आनंद का वर्णन संतों ने किया ही नहीं। कैसे करें? क्या करें? सवाल तो ये है । वाणी नहीं है, विद्या नहीं है, शब्द नहीं हैं वहीं के वर्णन का। तो वहीं सब के सब समाई हुई है।
इसलिए ये सन्त मत जो है ये नीरस लगता है। जब तक आदमी समझता नहीं है, कुछ करता नहीं है तब तक सरसता नहीं आती है, आनंद नहीं आता है, मस्ती नहीं आती है, रस नहीं मिलता है इसलिए इसको नीरस समझकर लोग छोड़ देते हैं। लेकिन जो समझ जाते हैं, करते हैं, उनको सब कुछ मिलता है। यहाँ तो मिलता ही है "चार पदारथ करतल ताके" अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष सब मिलता है। यहाँ तो मिलता ही है और ऊपर प्रभु की शरण मिल जाती है। सायुज्य मुक्ति मिल जाती है।
तो आपको बताऊँगा कि जब ये दुनिया संसार कुछ नहीं था तो उसकी मौज हुई तो मौज से क्या हुआ कि हिलोर पैदा हुई। जैसे कोई बैठा हो। मान लो ये तख्त (लकड़ी की चौकी) पर मैं बैठा हूँ, अब मैं जोर से हिला दूँ, तो समझो इसमें जो हल्की-फुल्की चीज है इधर किनारे में, वो नीचे गिर जाएगी। ऐसे उसमें एक हिलोर पैदा हुई। जैसे आप लोग बैठे हो। सतसंग मैदान है, कुछ लोग आगे बैठे हो, कुछ बीच में बैठे हो, कुछ लोग किनारे बैठे हो।
तो वो जो किनारे जीवात्माएं थीं तो हिलोर जब पैदा हुए तो वो नीचे गिर गई। जैसे पानी परात में भरा हुआ है, टब में भरा हुआ है और उसको हिलाओगे तो जो नजदीक में पानी होगा जहाँ से पानी गिराया जाता है, वो पानी गिर जाता है। ऐसे ही ये नीचे की तरफ यानी गिर गई आत्माएं। ये किसके द्वारा गिरीं, कैसे गिरीं, ये समझो कि हवा जैसे होती है, हवा से ये गिरती हैं। हवा अगर बंद कर दी जाए तो ये गिरना, पड़ना ये कुछ नहीं रह जाएगा। एक दम शून्य हो जाएगा।
जो इस धरती पर पाँच तत्त्व हैं ये समझो कि अगर ये खतम कर दिए जाएं तो सब यथावत हो जाएगा। जो जहां है वहीं खड़ा रह जाएगा। खतम हो जाएगा। शरीर गिर जाएगा कुछ नहीं रह जाएगा। तो इसी तरह से वो नीचे गिर गई। | ये गिरीं तो घबराई लेकिन अब ऊपर जा नहीं सकतीं। जैसे यहाँ से कोई चीज नीचे फेंक दिया जाए, तो नीचे से ऊपर आ नहीं सकता है।
युक्ति के द्वारा, उपाय के द्वारा कोई बताये कि इसको कोई उठा करके, चढ़ करके तुम वहाँ पकड़ाओ, वहाँ पहुंचाओ, तब तो पहुँच सकता है। अब जा तो नहीं सकती थीं, देखती तो थीं उस प्रभु को लेकिन प्रभु की मौज से ही ये नीचे उतरी थीं। तो वो वहाँ ठहर गई। काफी समय तक रहीं। ये सतयुग, त्रेता, द्वापर, ये कलयुग ये कुछ नहीं। बहुत समय तक रहीं। यानी जिसको अगम लोक कहा गया और वहीं पर उसी तरह से एक व्यवस्था बन गई वहाँ पर हालांकि कोई खाने-पीने, खेती-पाती का, बिजनेस व्यापार का कोई काम नहीं था।
वो तो शब्द रूप में थीं वहाँ पर वहाँ तो कोई आवश्यकता नहीं थी लेकिन उसमें वहाँ के एक मालिक बन गए। जो अलख लोक के मालिक बन गए। अगम लोक के, अलख-अगम लोक के। फिर वहाँ से ये नीचे उसी तरह से उतरीं या उतारी गईं। अलख लोक, अगम लोक बना। अलख लोक से फिर सतलोक बना। तो समझो सतलोक एक मुख्य केंद्र बन गया। सतलोक से ही फिर इधर विस्तार हुआ।
कहां तक का हुआ विस्तार? संहसदल कमल तक का विस्तार हुआ। एक केंद्र यह बना। संहस दल कमल का स्थान यह बना । जिनको काल भगवान कहा गया, वह उस स्थान के मालिक हैं, उस देश के मालिक हैं। तो एक केंद्र यह बना। सतलोक में बहुत समय तक ये जीवात्माएँ वहां रहीं। वहां से ये सीढ़ी-सीढ़ी उतारी गईं। उस केंद्र से फिर इस केंद्र में उतारी गईं।
अब यहां से इन्होंने तपस्या किया। बहुत समय तक तपस्या किया। पिता का दर्शन हुआ तो उन्होंने वरदान मांग लिया कि आप अपने जैसा राज्य मुझे दे दीजिए। उन्होंने मसाला दे दिया, राज्य बनाने का । जैसे जिले की घोषणा कोई प्रदेश करता है कि यहां जिला बनेगा तो उसका साजो सामान व सारी चीजें मुहैया कराता है तो जिला बन जाता है।
ऐसे ही सामान मिल गया इनको तो इन्होंने इधर रचना किया। किसके संपर्क से ? आद्या महाशक्ति जिनको कहा गया, किसी ने महामाया कहा है। तो उनके संपर्क से उन्होंने तीन बच्चों को पैदा किया- ब्रह्मा, विष्णु और महेश । यह इनके 3 पुत्र हैं। आद्या को काम सौंप करके, इनके द्वारा कराने के लिए कह कर के वह अपने ध्यान में फिर मगन हो गए।
अब भी बराबर ध्यान लगाए रहते हैं। 24 घंटा ध्यान में मगन रहते हैं। लेकिन उनसे जुड़ी हुई ये सारी जीवात्माएँ, जितनी भी हैं चाहे अंडज हों, चाहे पिंडज हों, चाहे उखमज हो. चाहे स्थावर हो, चाहे ये अंड लोक की हों, चाहे ये पिंड लोक की हों। वह सारी की सारी वहाँ से जुड़ी हुई हैं और पूरा उनका ध्यान इस पर रहता है। ऐसा नहीं है कि ध्यान उनका न रहे, ध्यान रखते हैं वो।
जैसे मान लो कहीं कोई दफ्तर में बैठ गया। कौन बैठ गया? उस कारखाने का मालिक आकर बैठ गया। अब कौन आ रहा? कौन जा रहा ? कौन क्या कर रहा है ? उसकी जानकारी में ये चीज रहती है। देखो आदमी इस तरह काम करता रहता है। लेकिन अगर कोई जा रहा हो उधर, तो ऐसे नजर डाल देता है, कौन जा रहा। इसी तरह से यानी समझो पिण्ड लोक, अण्ड लोक की सारी खबर उनके पास रहती है। इनको काल भगवान कहा गया। तो आद्या के माध्यम से उन्होंने तीन बच्चों को पैदा किया और इन्होंने इधर सृष्टि की रचना किया। सृष्टि की रचना में अण्डज, पिण्डज, उखमज, स्थावर ये बनाए।
तो ये क्या है? पेड़-पौधे को स्थावर कहते हैं। खटमल, जूँ, पतिंगे होते हैं, गंदे स्थानों के कीड़े, मनुष्य जहां रहता है उससे जो कीड़े पैदा हो जाते हैं। वो उखमज कहलाते हैं। जल में जो जीव रहते हैं वो जल के जीव कहलाते हैं। अब अण्डज किसको कहते हैं ? जो अंडे से पैदा होते हैं । पिण्डज किसको कहते हैं ? जो पिण्ड से पैदा होते हैं। तो पिण्ड से जो पैदा होने वाले होते हैं, वो कौन होते हैं ? वो मनुष्य होते हैं और मनुष्य की योनी में आने से पहले की जो योनी होती है वो होती हैं।
जैसे- घोड़ा है यानी घोड़ी से जो बच्चा पैदा होता है, वो भी झिल्ली में लिपटकर पैदा होता है पिण्ड बनता है। गाय का जो बच्चा होता है वो भी पिण्ड से ही पैदा होता है पिण्ड उसका भी बनता है गाय के पेट में। तो ये झिल्ली में जो लिपटे हुए होते हैं, वो पिण्डज कहलाते हैं। लेकिन उनमें ये पांचों तत्व नहीं होते हैं।
पांचों तत्व किसको कहते हैं? जमीन को, आकाश को, पानी को, आग को, हवा को। ये हैं पाँच तत्व । जिनको जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु और आकाश कहा गया। तो ये पांचों तत्त्व उनमें नहीं होते हैं। ये जितने भी हैं- अण्डज, पिण्डज, उखमज और स्थावर इनमें पूरे पांचों तत्त्व नहीं होते हैं। किसी में एक तत्त्व, किसी में दो तत्त्व, ये पेड़-पौधा है इसमें केवल एक तत्त्व होता है।
उखमज में दो तत्त्व होते जैसे फिर उसके बाद तीन तत्त्व, फिर चार तत्त्व होते हैं। इसलिए इनकी जो बनावट होती हैं। मनुष्य के शरीर जैसी नहीं होती है। एक जैसी सबकी बनावट नहीं होती है। इनकी जो योनियाँ होती हैं, चाहे आसमान में उड़ने वाले हों, चाहे जमीन पर चलने वाले हों, चाहे ये साँप, गोजर, बिच्छू हों, इनकी जो योनियाँ होती हैं ये सजा पाई हुई योनी होती हैं।
जैसे मनुष्य ही अपने शरीर को पाने का मतलब जब नहीं समझ पाता है। खाने-पीने के लिए सुख-सुविधा के लिए, मोह-माया के लिए, मोह-माया में फँसकर जो काम कर बैठता हैं तो उन योनियों में डाल दिया जाता है। आप ये समझो कि बहुत तकलीफ होती है । उन योनियों में बहुत तकलीफ होती हैं। तो उनमें ये पांचों तत्त्व मौजूद नहीं हैं। इन तत्त्वों का अलग-अलग काम है। इन तत्त्वों से ही शरीर की रचना हुई है। किस तत्त्व से क्या बनता है ? ये सब बातें सतसंग सुनते रहने से पता चल जाता है।
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