जयगुरुदेव
उज्जैन वाले परम पूज्य बाबा उमाकान्त जी महाराज ने कहा-
अनमोल मनुष्य शरीर की वास्तविक कीमत और असली उद्देश्य को बताने वाले, त्योहारों के असली मतलब को बताने-समझाने वाले इस समय के पूरे महापुरुष उज्जैन वाले परम पूज्य बाबा जी महाराज ने अपने रातसंग में बताया कि तीज त्योहार किसने बनाया? सन्त, महात्माओं, ऋषि मुनियों ने बनाया। किसलिए बनाया? लोगों को समझाने, बताने, लाभ दिलाने के लिए। लेकिन जब से सतसंग से अलग हो गए, महात्माओं से दूर हो गए तो त्योहार मनाने का तरीका बदल गया।
होली के दिन कोई पुआ, मिठाई, गुजिया बना खा रहा है, कोई मांग, कोई शराब पी रहा है, तरह-तरह से होली के त्योहार को हुड़दंग बना दिए। होली का मतलब न समझ पाने की वजह से शराब, भांग पी करके हुड़दंग करते हैं। जहां 24 घंटे गुलाल और अमीर उड़ रहा है, जिसकी नकल यहां पर (इस दुनिया में) की गई है कि ऊपर इस तरह से गुलाल-अबीर होता है, वहां होली हमेशा होती रहती है।
खुशी का यह देश है। खुशी हमेशा वहां रहती है। रोना-धोना नहीं है उसी तरह से त्योहार के दिन खुशी मनाओ लेकिन अब उसको छोड़ करके कीचड़, गोवर, मिट्टी की होली लोग खेलने लग गए। कपड़े गंदे बदन गर्द, बीमारियां पैदा करने लग गए शराब पी कर भांग पी कर लोहार की रूपरेखा ही बदल गई। आज होली के दिन आपके अंदर कोई बुराई है तो उसको छोड़ने का मौका है।
त्योहार के दिन बुराइयां छोड़नी चाहिए।
आज होली के दिन यह संकल्प बनाओ कि जीवात्मा का कल्याण सच्चे सन्त की खोज करके इसको नरक चौरासी से छुटकारा दिलायेंगे। आज होली के दिन संकल्प बनाओ कि दुख के संसार में रोने-धोने के लिये नहीं आयेंगे। जो गुरु ने रास्ता बताया उसको विश्वास के साथ करेंगे।
होली के दिन आपके अंदर कोई बुराई है तो उसको छोड़ने का मौका है। आप लोगों को भी अपने अंदर अगर कोई कमी महसूस होती है तो उसको आज ही छोड़, अच्छाई को ग्रहण कर लीजिए। सबसे बड़ी अच्छाई है कि जीवात्मा का कल्याण किया जाए, इसको नरको चौरासी से छुटकारा दिलाया जाय।
बच्चे को मां के पेट में 24 घंटे प्रभु का दर्शन होता रहता है। जन्मते वक्त देखो कितनी पीड़ा होती है। बच्च हुए ही पैदा होता है। आज तक कोई बच्चा हंसता हुआ पैदा नहीं हुआ। चुपचाप अगर पैदा हुआ, रोगा नहीं तो बचा नहीं। रोते क्यों है? तकलीफ कष्ट होता है क्योंकि गंगा पैदा होता है।
गर्म और ठंडी हवा बच्चे के कोमल बदन में सैकड़ों सुइयों की तरह घुमती है। मां के पेट में जब रहता है तो 24 घंटे प्रभु का दर्शन होता रहता है। जब बाहर निकलता है तो माया का पर्या पड़ जाता है। प्रभु का दर्शन होना बंद हो जाता है तो रो पड़ता है अपनी औकात से तेज ऐता है। जन्म लेते और मरते समय बहुत तकलीफ होती है।
जन्मते वक्त और मरते वक्त भी तकलीफ होती है। जो पापी कुकर्मी जीव होते है उनकी जीवात्मा को यमराज के दूत मार-मार करके जब निकालते है तो हड्डीहड़ी पटकती है। उस वक्त पर आंख की रोशनी खत्म, कान से सुनाई नहीं पड़ता. जुबान तुतली हो जाती है। कितना भी आवाज लगाए काका, चाया, दादा, माना, मामा लेकिन कोई मददगार होता है? कोई नहीं होता। बहुत तकलीफ जन्मते और मरते चत्ता होती है।
आज संकल्प बनाओ कि दुख के संसार में दुबारा रोने धोने के लिये 'नही आयेंगे, जो गुरु ने रास्ता बताया उसको विश्वास के साथ करेंगे। इस समय पर पूरी जिंदगी रोने में ही लोगों की निकलती जा रही है। अब इस दुख के रोने-धोने के संसार में दुबारा आना पड़े, यह संकल्प आज बनाने की जरूरत है। यह कम होगा? कैसे होगा? यह संभव होगा कि नहीं होगा? संभव होगा, विश्वास की बात होती है। मजबूती विश्वास में लानी चाहिए। विश्वास डगमगाना नहीं चाहिए।
जो रास्ता बताने वाले होते हैं. गुरु कहलाते हैं। चाहे क ख गच, एमी सीडी पढ़ावें, चाहे आध्यात्मिक विद्या का ज्ञान करावें जहां सारी विद्या खत्म हो जाती है यहां से आध्यात्मिक विद्या की शुरुआत होती है जो उस विद्या का ज्ञान कराते हैं उनको गुरु कहते हैं, उन पर भरोसा और विश्वास करना चाहिए। उनके वचनों के अनुसार चलना चाहिए तो कामयाबी मिल जाती है।
आध्यात्मिक होली
होनी थी सो हो-ली
होनी थी सो हो-ली सखी री होनी थी सो हो- ली।
आओ सहेली अबके फागुन, हम खेलें सतगुरु संग होली।
कितने फागुन ऐसे ही बीते, पिया बिना सब कुछ रीते।
पाँच दुष्ट मेरे पीछे पड़े हैं, सतगुरु बिन कोई कैसे जीते।
लूटत रहे मेरा सब कुछ, मन इंद्रियन की टोली।
युग युग भटक भटक भटकाया काल ने करम जाल बिछाया।
मन वैरी को साधी समझा, बावरी अति भोली ।
यह मन मेरा जग में झूले, खा विषय भांग की गोली।
चंचल मनुआ कभी न माने करे माया संग ठिठोली।
अबकी फागुन आया सुहावन, सतगुरु दीन्ही मोहि सिखायन।
नाम की जड़ी बताई सतगुरु, खेलत हूँ अगम की होली।
तन मन शीतल भया अब मेरा, सुन वाणी अमृत घोली ।
शब्द भेद अगम का सतगुरु, दीन्हा भेद वो खोली।
भाव उमगा मन भीतर मेरे, चरण शीश घर में रोली।
पचरंगी पिया की चुनरिया, शब्द गुरु संग धो ली ।
पहला छोड़ दूसरा पाया, जहां लाल ही लाल रंगोली।
कर्म जगत के भस्म हुए सब, गुरु पद शरण की हो ली।
आगे पिया पद पाया मैंने, बैठ शब्द की डोली।
मानसरोवर सुंदर निर्मल, जहां हँसन की टोली ।
नित नई राग रागनियाँ बाजे जाए न शब्द में बोली।
महासुन्न के पार द्वार, जहां सतगुरु संग सुरत सम हो ली।
सतगरु अनाम निज घर पहुंचाया, अब क्या बोलूँ बोली।
अनंत अपार अथाह सिंधु में, मिल बूंद अब सिंधु हो ली।
होनी थी सो हो-ली सखी री होनी थी सो हो-ली।
फागुन के दिन चार
फागुन के दिन चार, होली खेल मना रे,
बिन करताल पखावज बाजे, अनहद की झंकार .....
दिन सुर राग छत्तीस गावे, रोम रोम रंग सार ।
शील संतोष की केसर घोली, प्रेम गीत पिचकार 1....
उड़त गुलाल लाल भए बादल, बरसत रंग अपार ।
घट के पट सब खोल दिए हैं. लोक लाज सब डार 1...
होली खेल प्यारी पिया घर आए. सोई प्यारी पिय प्यार ।
मीरा के प्रभु गिरधारनागर, चरण कँवल बलिहार ।...
अब सुरत खेलत सतगुरु संग होली ।
अब सुरत खेलत सतगुरु संग होली ।
धरन् गगन विच शोर मचोरी ||
चांद सूरज तारागण मंडल,
उतर उतर आए घर छोड़ी।
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण,
चारों दिशा सब भई एक ठोरी ।।
अगम खजाना मिला शब्द का.
त्याग दिया धन लाख करोड़ी।
धन्य सतगुरु ऐसा खेल खिलाया,
अनेक रूप जहाँ एक भयो री ।।
अब सुरत खेलत सतगुरु संग होली ।
साभार, (पुस्तक) होली 2023
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