जयगुरुदेव
28.04.2023
प्रेस नोट
उज्जैन (म. प्र.)
*गुरु का आदेश शिरोधार्य होना चाहिए*
*निराशा में मालिक महात्मा मदद करते हैं -बाबा उमाकान्त जी महाराज*
निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय नामदान के एकमात्र अधिकारी, मन को वश में करने का चिमटा जिनके पास है, निराशा में मदद करने वाले, वक़्त के पूरे समरथ सन्त सतगुरु, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी ने नव वर्ष कार्यक्रम में 31 दिसम्बर 2022 दोपहर उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि
गुरु आदेश से नाम दान देता हूं। आखरी वक्त तक, जब तक यह शरीर चलता रहेगा तब तक नाम दान देना है क्योंकि गुरु का आदेश ही सर्वोत्तम भक्ति होती है। गुरु का आदेश चाहे रैन में, बैन में या सैन में हो, उसको करना चाहिए, शिरोधार्य होना चाहिए। नामदान आपको दिया जाएगा। कुछ लोग तो नयों को समझा कर लाते हैं। वहीं से समझा पक्का करके, नामदान के बारे में बता करके ही लाना चाहिए। नाम दान क्या होता है? नामदान के फायदे, नाम का सुमिरन, ध्यान भजन कैसे करते हैं? यह सब पहले ही संकेत में बता करके लाना चाहिए। नाम को तो नहीं बताना चाहिए लेकिन नाम के बारे में बता देना चाहिए।
*सेवा भजन में लगे रहने पर भी मन मोटा क्यों होता है*
महाराज जी ने 7 जनवरी 2023 प्रातः सूरत (गुजरात) में बताया कि अक्सर प्रेमी शिकायत करते हैं कि सुमिरन ध्यान नहीं बनता है। कुछ कहते हैं उचाट पैदा हो जाता है, कुछ करने की, प्रचार-प्रसार में भी जाने की इच्छा नहीं होती है, तरह-तरह की खाने, सोने, भोग वासना आदि की बातें दिमाग में आती रहती हैं। ऐसे भी लोग हैं जो लगातार सेवा में लगे रहते हैं, भजन भी करते रहते हैं लेकिन उनका भी मन मोटा हो जाता है। कारण है अन्न दोष, संग दोष और स्थान दोष लगना।
*आश्रमों पर मन किसका खराब होता है*
महाराज जी ने 3 जनवरी 2023 प्रात: उज्जैन आश्रम में बताया कि सेवा है। जो काम करते हो, मुस्तैदी से अपना समझ कर करना। देख-रेख हो, गौशाला, खेती का काम हो, जो भी हो अपना समझ कर करना। जो भी काम करो, मेहनत ईमानदारी से करो, चाहे रोजी-रोटी का काम हो, चाहे सेवा का काम हो। उसमें कोताही नहीं, ईमानदारी होनी चाहिए नहीं तो फिर कर्मों के बोझे से फिर लद जाना पड़ता है। फिर मन खराब हो जाता है। वही लोग जो भजन सेवा नहीं करते, उन्हीं का, आश्रमों पर जो अन्न साधन सुविधा है, वह उनको नुकसान करता है, कर्म खराब होते हैं, इसलिए बराबर समय का उपयोग करना।
*निराशा में मालिक महात्मा मदद करते हैं*
महाराज जी ने 7 जून 2021 शाम उज्जैन आश्रम में बताया कि गुरु महाराज (बाबा जयगुरुदेव जी को) परिस्थितिवश ही बचपन में ही घर छोड़ना पड़ा। गुरु की तलाश में इधर-उधर भटकना पड़ा। समर्थ गुरु जब नहीं मिले, जगह-जगह धोखा ही मिला, निराश हो गए। जब निराशा आती है तब वह मालिक मदद करता है। जब हर तरफ से आदमी हार जाता है तो उसकी मदद महात्मा करते हैं। दादा गुरु जी (सन्त घूरे लाल जी) मिल गए। स्वामी जी ने नामदान लिया और बहुत मेहनत किया। लोग मेहनत के बाद मिली चीज की कीमत समझते हैं। ऐसे ही मिल जाती है, ऐसे ही धन मिल गया तो लोग लुटा देते हैं। मेहनत करके जब लाते हैं तो संभाल कर रखते हैं। ऐसे ही जब स्वामी जी ने मेहनत किया तो आध्यात्मिक दौलत उनको मिली और जब उन्हें आदेश मिला बांटो तो उन्होंने खूब नाम की दौलत को बांटा।
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वक्त के संत सतगुरु |
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