जयगुरुदेव चेतावनी 153.
★ Yaha tum soch samajhkar ★
यहाँ तुम समझ सोचकर चलना।
यह तो राह बड़ी अति टेढ़ी। मन के साथ न पड़ना।
भौजल धार बहे अति गहरी। बिन गुरु कैसे पार उतरना।
गुरु से प्रीत करो तुम ऐसी। जस कामी कामिन संग धरना।
संग करो चेटक चित राखो। मन से गुरु के चरन पकरना।
छल बल कपट छोड़कर बरतो। गुरु के वचन समझना।
डरते रहो काल के भय से। खबर नहीँ कब मरना।
स्वासोँ स्वास होश कर बौरे। पल पल नाम सुमिरना।
यहाँ की गफलत बहुत सतावे। फिर आगे कुछ नहिँ बन पड़ना।
जो कुछ बने सो अभी बनाओ। फिर का कुछ न भरोसा धरना।
जग सुख की कुछ चाह न राखो। दुःख मेँ इसके दुःखी न रहना।
दुःख की घड़ी गनीमत जानो। नाम गुरु का छिन छिन भजना।
सुख में गाफिल रहत सदा नर। मन तरंग में दम दम बहना।
ताते चेत करो सत संगत। दुःख सुख नदियां पार उतरना।
अपना रुप लखो घट भीतर। फिर आगे को सुरत भरना।
जयगुरुदेव स्वामी कहें बुझाई। शब्द गुरु से जाकर मिलना।।
जयगुरुदेव
जयगुरुदेव चेतावनी 154.
★ Man lago mero yar ★
मन लागो मेरो यार फकीरी में।
जो सुख पायो नाम भजन में, सो सुख नाहिं अमीरी में।
भला बुरा सबकी सुन लीजे, कर गुजरान गरीबी में।
प्रेम नगर में रहनि हमारी, भलि बनि आयी सबूरी में।
हाथ में कुन्डी बगल में सोटा, चारों दिशा जगीरी में।
आखिर यह तन खाक मिलेगा, कहां फिरत मगरूरी में।
कहे कबीर सुना भई साधो, साहब मिले सबूरी में।
जयगुरुदेव
जयगुरुदेव चेतावनी 155.
★ Meri lagi guru sang preet ★
मेरी लगी गुरु संग प्रीत, ये दुनिया क्या जाने,
क्या जाने भई क्या जाने, क्या जाने भई क्या जाने,
मुझे मिल गया मन का मीत, ये दुनिया क्या जाने,
मेरी लगी गुरु संग प्रित, ये दुनिया क्या जाने ।।
बाजी जब गुरुवर पे लगाई, पलट गया पासा मेरे भाई,
मेरी हार हो गई जीत, ये दुनिया क्या जाने।।
प्रीतम ने खुद प्रेम जताया, करके इशारा पास बुलाया,
है प्रेम की उलटी रीत, ये दुनिया क्या जाने।।
ताल अलग है राग अलग है, ये वैराग अनुराग अलग है,
मन गाए किसके गीत, ये दुनिया क्या जाने।।
सत्संगी होकर जो सीखा, काम क्रोध खोकर जो सीखा,
कैसा है ये संगीत, ये दुनिया क्या जाने।।
जयगुरुदेव चेतावनी 156.
★ Soya jagat gurudev mere ★
सोया जगत गुरुदेव मेरे ने आन जगाया है।
जाग उठो नर नार आज मुरली धर आया है ।।
भूले वचन की याद दिलाने, गीता वाला ज्ञान कराने।।
बली अर्जुन को महाभारत में जो समझाया है।।
सत्य वचन तुम मेरा सुन लो, आये हैं कन्हैया उनसे मिल लो।।
त्रेता वाला राम आज फिर सन्मुख आया है।।
जब जब धर्म उजड़ते देखा, भक्तों को अपने रोते देखा।
आन संत ने आज उन्हें फिर गले लगाया है।।
सतगुरु की तुम शरण लो प्यारे, सतगुरु रहें तुम्हें पुकारे।
कलियुग में नर रूप धार फिर छलिया आया है।।
जयगुरुदेव चेतावनी 157.
★ hamare guru ne dini hai nam jadi ★
हमारे गुरु ने दीनी है नाम जड़ी। टेक
काटे से कटत नाही, जारे से जरत नहिं निसदिन रहत हरी
काटे तो जड़ी मोहि प्यारी लागै रस अमृत से भरी
काया नगरी अधर है बंगला तामें गुप्त घरी
पांच नांग पच्चीस नागिनी, सूँघत तुरत मरी
जिस करुनी ने सब जग खाया, सतगुरु देख डरी
कहत कबीर सुनो भाई साधों, काहू विरले के हाथ परी
हमारे गुरु ने दीनी है नाम जड़ी।
जयगुरुदेव
शेष क्रमशः पोस्ट 29. में पढ़ें 🙏🏻👇🏼
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