गृहस्थी में सुख शांति का मूल मंत्र

जयगुरुदेव

01.11.2022
प्रेस नोट
उज्जैन (म.प्र.) 

बाबा उमाकान्त जी ने बताया गृहस्थी में सुख शांति का मूल मंत्र

 पूजा-पाठ कबूल क्यों नहीं हो रही है

शहंशाह के बेट़े हो, राजा जैसे रहो


बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 3 अक्टूबर 2022 प्रातः सीकर राजस्थान में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि घर बनाना है, बना लो। लेकिन प्लाट या घर जो खरीदना वो कोई झगड़े का न हो। पुराना घर न हो, नया ले लो। अरे राजा जैसे रहो। क्यों फिर उसी तरह से रहना चाहते हो? शहंशाह के बेटे हो। गुरु महाराज की दया आपके ऊपर हो रही है। यह सब बातें जरूर बता देता हूं।


गृहस्थी में सुख शांति का मूल मंत्र

कलंकित हो गई यह सास और बहू। सास और बहू का झगड़ा मशहूर हो गया। अब कोई-कोई यह भी कहती है कि बर्दाश्त से बाहर हो जाता है। क्या करें, बोलना ही पड़ता है। अरे तो सुनो क्यों? कपड़ा डाल लो ऊपर से, आंख बंद कर लो और कान में उंगली लगा लो। न सुनो और न देखो। यह जो क्रोध गुस्सा है, यह क्या है? यह आग है। आग जलती है तो बुझती है। थोड़ी देर के बाद गुस्सा शांत हो जाएगा, सब सही हो जायेगा। कोई बहू तेज रहती है तो कोई सास। किसी का लड़का तेज रहता है तो किसी का बाप। तो बस उसी समय यही करना चाहिए। यह है ग्रहस्थी में सुख शांति का मूल मंत्र कि कोई आग हो तो आप हो पानी । किसी में गर्मी है तो आप चुप हो जाओ, शांत हो जाओ। हाथ जोड़ लो, पैर छू लो तो उसके क्रोध का पारा डाउन हो जाएगा।

पूजा-पाठ कबूल क्यों नहीं हो रही है

जगह-जगह धार्मिक भावनाएं लोगों में जगी हुई है। पूजा, पाठ, हवन, जप-तप यह सब लोग कर रहे हैं लेकिन कोई फायदा नहीं हो रहा है। क्यों? क्योंकि मांसाहारी शरीर से कर रहे हैं। रग-रग में तो हत्या का पाप लगा हुआ है। तो पापी शरीर से जब कुछ करोगे तो वह कबूल होगा? नहीं होगा। पहले के समय में जब लोग समझ लेते थे कि ये हत्या वाला आदमी है, पापी आदमी है तो उसका मुंह नहीं देखते थे। किसी से गौ हत्या हो जाए तो मुंह छुपा कर के रात को आता था, कटोरा थाली रख देता था। लोग दूर से उसमें भोजन डालते थे। कोई कह दे मैं बहुत पापी हूं और चलो तुमको हम भोजन कराना चाहते हैं। तो सकपका जाओगे। ऐसे ही यह शरीर जब इस तरह का हो गया तो इससे की गयी पूजा देवता कहां से कबूल करेंगे? आदमी जब कबूल नहीं करता है तो देवता कहां से कबूल करेंगे? इसीलिए इस मनुष्य शरीर को पाक साफ रखना चाहिए। इसके अंदर मुर्दा मांस मत डालना। किसी भी पशु पक्षी का मांस आप इस शरीर के अंदर मत डालना। मछली, अंडा मत खाना। इसमें सब में मांस है। वैज्ञानिकों ने भी सिद्ध कर दिया है यह सब मांसाहारी है। वह तो स्वार्थ में लोग कह देते अंडा शाकाहारी है जिससे खाने वालों की संख्या बढ़ जाए तो धोखे में मत आना। नहीं तो- घिरी बदरिया पाप की, बरस रहे अंगार। अंगार बरसेगे। आपने अभी खराब समय कहा देखा? खराब समय आपने नहीं देखा। अभी तो ऐसा सूखा पड़ेगा कि एक-एक दाने के लिए लोग मोहताज हो जाएंगे। आदमी का मन करेगा कि नाली में पड़ी रोटी को ही उठा कर खा लें। तो बहुत खराब समय आएगा। जहरीली दूषित हवा में सांस लेना मुश्किल हो जाएगा। धरती की उपजाऊ शक्ति खत्म हो जाएगी। अगर इसी तरह से जानवरों का खून गिरता रहा, आदमी मारे जाते रहे तो देखो जमीन के ऊपर उसका असर आ जाता है। कुरुक्षेत्र में महाभारत के बाद बहुत दिन तक वह जमीन ऐसे ही लाल-लाल ही दिखाई पड़ती रही जहां खून गिरा था। तो समझो यह सब दूषित हो जाएगा जिसकी जरूरत आदमी के लिए रोज है तो बड़ा मुश्किल हो जायेगा।

काफिला निकालकर भी प्रचार कर सकते हैं


मान लो कोई घर नहीं छोड़ पा रहा है, बहुत कह रहे हो, 10 दिन का काफिला निकाल दो पूरे जिले में, आसपास के जिले में, अपने तहसील में। घर-घर, गांव-गांव जाएंगे। जहां रात हो जाएगी, पड़ाव डाल देंगे। समझाएंगे बताएंगे लोगों को। पुरानों को नामदान समझाएंगे, ध्यान भजन के लिये कहेंगे, साप्ताहिक सत्संग वहां स्थापित कर देंगे, प्रचार करेंगे। अब नया आदमी उसमें जाएगा तो आपसे ज्यादा काम करने लगेगा क्योंकि आप पुराने लोग तो करते-करते थक रहे हो। और सोच रहे हो कि हम तो पुराने हैं, गुरु महाराज तो मदद करेंगे ही; सुन लिया कि गुरु महाराज जिसको पकड़ लेते हैं समरथ गुरु पकड़ते हैं छोड़ते नहीं है। तो यह तो आपने सुन लिया ले लेकिन नये को ज्यादा लगन होती है। हमने यह भी देखा, पुराने नामदानी से ज्यादा अंदर में दया नए नामदानी को मिल रही है। तो समझो जो जिसके लायक है उसको उस काम में लगाओ। फिर उसको माला पकड़ा दो। माला भी पकड़ लेगा, ध्यान भजन भी कर लेगा। मान लो आप के साथ 10 दिन के लिए प्रचार में गया तो सुबह-शाम तो आपके साथ (साधना में) बैठेगा जब यह नियम बना दोगे कि इतने टाइम ध्यान भजन होगा, प्रार्थना होगी, शाम को फिर प्रार्थना, नामध्वनी, थोड़ी देर ध्यान भजन होगा फिर भोजन खाया जाएगा। (अब वो नया प्रेमी) घर में तो है नहीं कि लाओ लाओ ले आओ, औरत बोल रही कि नाम ध्वनी बोलो, नहीं बोल रहा है, डांट रहा है कि हमको नहीं बोलना है, तू जल्दी खाना ले आ तो समझो ऐसा तो वहां नहीं रहेगा। वहां तो बोलना ही पड़ेगा तब (भोजन) बंटेगा तब तो कम से कम नामध्वनी बोलने की आदत तो बन जाएगी।

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बाबा उमाकान्त जी महाराज


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