ये हठयोग का मार्ग नही है। एक बार जब मैं साधना करता था तो चित्रकूट गया। भूख लगी लेकिन मैं चित्रकूट की घास पर डट कर बैठ गया और मन में सोचा कि किसी से मांगूगा नही तुम्हें देना पड़ेगा। इतने में एक श्रद्धालु आया और उसने मेरे सामने खाने का सामान रख दिया। उसके बाद जब मैं गुरु महाराज के पास गया तो उन्होंने कहा कि इस तरह का हठ क्यों किया ?
मुझे अपनी गल्ती का अहसास हो गया। मैंने मन ही मन यह तय कर लिया कि अब इस तरह की गलती नही करूंगा। कभी इस तरह हठ योग करके नहीं बैठूंगा। चाहे काम हो या ना हो पर वह मालिक भूखा नही सोने देगा।
आगे समय आ रहा है
धार्मिक मुल्क मे सदा अहिंसात्मक उपदेश होता रहा है। सब दया का आधार लेते रहे। धर्म के मुल्क में मांस, शराब, जुआ, जब बढ़ जाता है उस वक्त अनाचार व्यभिचार अधिक हो जाता है। और अन्त में राज्य का पतन हो जाता है। परमात्मा फिर अपनी दैविक शक्तियों को भेज कर, नवीन भाव पैदा करके लोगों में शान्ति पैदा करता है।
हमारी दैवियों ने तो अपना जामा उतारकर लाखों कोस दूर रख दिया। जो शरमिन्दगी का जामा देवियां पहना करती थीं उसके अन्दर उनका तेज छिपा रहता था लेकिन जिस दिन से हया शर्म चली गई उसी दिन से उनके तेज पर काली सिकुड़ी धारियां चमकने लगीं। शरीर के अंगों को खोलना और आधा शरीर कपड़े से ढकना केवल यह जाहिर करता है कि सतीत्व जा रहा है और आगे अंधकार आ रहा है।
लोकतंत्र की सेवा धर्म नीति अपनाने से कर सकोगे, अधर्म नीति पर चलने वाले लोकतंत्र की सेवा नही कर सकेंगे। हमारे देश में अधर्म पथ वह है जो ऋषियों ने अपने धर्म शास्त्रों में दिए हैं। हमारे देश की सरकार धर्म ग्रन्थों के विपरीत जब जब चलेगी उसका कुछ ही दिन में अवश्य पतन हो जाएगा।
प्रजा के पतन का पूरा पूरा दायित्व राजा के ऊपर है अन्त में राजा को प्रजा मार सहना होगा। शासकों तुम याद रक्खो कि अगर आजादी पाकर तुमने भारतीय महात्माओं विद्धानों की अवहेलना करके भारत को पेरिस, इंग्लैण्ड और अमेरिका बनाने का असफल प्रयास किया और अपने अमूल्य मानव जीवन को भोगों में बिताने लगे तो इसका दुष्परिणाम सबको भोगना होगा। आगे समय आ रहा है जब आप के सभी ख्याली पोलाव विनाश की अवस्था में दिखाई देंगे।
1963
नवीन निर्माण होगा
दुनियां का रवैया इस प्रकार का चल रहा है कि कोई भी प्राणी परमार्थ को सुनना नही चाहता । परमार्थ की चर्चा लोग लेशरूप् में समझते हैं। ऐसे लोगों को परमार्थ की चर्चा सुनाई जाय तो लोग कहते हैं कि पाप लगता है। जिनका जीवन पवित्र और साफ होता है वही जीव परमार्थ सुनने का अधिकारी होता है। साफ मनुष्य ही संकट की घड़ी में खड़ा रह सकेगा।
जब त्रास का सामना होता है तो आदमी अपना प्राण छोड़ देता है वही दशा मनुष्यों की आगे भविष्य में आएगी। जो सुरतें जीवात्मायें पाक साफ होंगी। उनकी रक्षा ऐसे संकट की घड़ी में महात्मा करेंगे। ऐसे महात्मा जो मालिक से मिले हुए हैं उनका दर्शन दीदार करते हैं वही महात्मा जीवों की रक्षा करते हैं। पहले भी रक्षा करते रहे। आज दुनिया के लोगों के ऊपर कर्मों का ऐसा आवरण आ गया है जिसकी बजह से लोगों के अन्दर सोच विचार नही है विवेक विचार नही है ।
समाज के लोग समाज बन्धन तोड़ चुके हैं, धर्म बन्धन तोड़ चुके हैं। यही दो चीजें संसार में मनुष्य को उठाने की थी। आज जिस जाति में लोग हैं उस जाति के बन्धन को तोड़ चुके हैं। जहां जाति बन्धन टूटा और आजादी आई वहीं व्यभिचार।
आज लोगों को न जाति के बन्धन का भय है, न धर्म के बन्धन का भय है और स्वतंत्र होकर मन इन्द्रियों के भोगों में बरतने लगे हैं कि महात्माओं की आंखों में आंसू वह रहे हैं। आज का मनुष्य अपनी इन्द्रियों के वशीभूत हो गया है कि उसे पाप पुण्य का कुछ भी ज्ञान नही रहा। अब तो आग जल रही है और ऐसी नही जल रही कि इसकी ज्वाला शान्त हो जाय जब प्रकृति का प्रकोप होगा दैविक प्रकोप होगा तभी यह शान्त होगी।
सुधार दो तरीके से होता है। या तो प्रकृति स्वयं सुधार का जिम्मा ले ले या कोई महापुरुष खड़े हो जायं और जीवों का सुधार कर दें समझा बुझाकर। मैंने घूम घूम कर देखा और यह अनुभव किया और यही पाया कि व्यक्ति का स्वतः सुधार नही हो सकता । मनुष्य इतना असहाय और कमजोर हो चुका है, मन इन्द्रियां बुद्धि इतनी कमजोर हो चुकी हैं कि अपने को रोक नही सकता । दुनियां के जो शब्द हैं वो शस्त्र के समान हैं। शस्त्र शस्त्र हैं और बोली भी शस्त्र है। उस बोली और शस्त्र से दूषित प्रकृति वालों का संहार होगा इसमें कोई सन्देह नही।
एक समय आ रहा है उस संहार करने का प्रकृति ने स्वतः ही जिम्मा ले लिया है। उसने कहा है कि एक समय मैं ऐसा ले आ रही हूं कि उस समय चारों तरफ कशमाकश और विद्रोह होगा कि संसार में समष्टि रूप से बहुत बड़ा संघर्ष हो जाएगा। उस समय पर मनुष्यों की दुष्ट प्रवृत्ति का दुष्ट प्रवृति से दमन होगा। उसके बाद में तब जाकर महात्माओं का उपदेश लोग ग्रहण करेंगे। सब उस आग में जलेंगे और जलने पर भी बचने का मौका नही मिलेगा। उस समय पर चिल्लायेंगे कि अब मुझको बचाने वाला कोई महापुरुष मिले जिससे उनकी शीतल छाया में बैठकर बच जाऊँ।
यह चीज आएगी इसमे कोई सन्देह की बात नही है। यह सबके लिए आएगी। हर कोम, हर मजहब, हर धर्म के लिए आएगी। तो यह चीज जरूर आप के सामने प्रगट होगी कि बचना और भागना मुश्किल हो जागा। अच्छे लोग उसी तरह बचेंगे जैसे अग्नि में प्रहलाद बच गया था। महात्माओ की क्षत्रछाया में जो होंगे वही बचेंगे।
फिर एक नई सृष्टि का निर्माण होगा महात्माओं के द्वारा उसी तरह से मर्यादा का निर्माण् समाज का निर्माण होगा, जाति का निर्माण होगा। नवीन निर्माण भक्तों के हाथ में होगा तब सब लोग अपनी अपनी जगह पर होंगे।
महात्मा भाव देखते हैं
एक बार एक आदमी गुरु महाराज को अपने घर भोजन के लिए ले गया। गांव में अक्सर चीजें हांडी में रक्खी जाती हैं। उसके यहां भी एक हांडी में नमक भरा था और दूसरी हांडी में बूरा चीनी । उसने ध्यान नही दिया और नमक की हांडी को भूल से बूरा चीनी समझकर भोजन में मिला दिया। स्वामी जी महाराज को पहले उसने भोजन कराया और स्वामी जी ने चुपचाप खा लिया और कुछ नहीं बोले।
जब लोगों के सामने खाना रक्खा तो इतना तेज नमक किसी को बर्दाश्त नही हुआ और एक ने कटोरी फेंककर उसके मुंह पर दे मारा। वह सकते में आ गया कि स्वामी जी ने खाया तो कुछ नहीं बोले और इसके क्या हो गया। उसे मालूम हुआ कि बूरे के धोखे में उसने नमक डाल दिया था तो उसको बहुत अफसोस हुआ।
मतलब यह है कि महापुरुष तो सबका भाव देखते हैं, स्वाद नहीं। वो चुपचाप ग्रहण कर लेते हैं यदि भाव से खिलाये लेकिन लोगों को भाव नही स्वाद चाहिए।
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