स्वामीजी का स्मरणीय सन्देश

जयगुरुदेव आध्यात्मिक सन्देश 
◉ कर्म 

इस जगत मे रहकर स्त्री पुरुष पांच वर्ष की अवस्था के ऊपर जो भी शुभ अशुभ कर्म करेंगे वह सब स्त्री पुरुषों को भोगना  पड़ेगा। पाप और पुण्य दो कर्म हैें इससे कम और बड़े पाप होते हैं सबकी सजायें अलग अलग हैं और उन कर्मों की यातना अवश्य भोगनी पड़ेगी। कर्मों के पर्दे आंखों के ऊपरी भाग पर जमा होते हैं जहां दरिया का जल तथा अग्नि ही नहीं पहुंच सकती जो उसे जलावे।

मनुष्य हो या स्त्री हो ज्यों ज्यों संसार की तरफ तरक्की करते है जैसे धन पाना मकान पाना, अच्छे कपड़े पहनना और अच्छा खाना खाना जैसी इच्छा चाहे वैसा धन खर्च करना पुत्र पाना चाहे जैसे कर्मों से पाया जावे इसी को सब लोग तरक्की समझते हैं।

स्त्री पुरुषों तुम भूलकर फूल को मत तोड़ो। यह फूल मुरझा जायेगा तुम्हारे काम धन, मकान, कपड़े पुत्र पुत्री पति पत्नि कोई न आवेगा। तुम समय खतम होने पर इच्छा न होते हुए रवाना किये जावोगे । और मुफ्त में तुम इनमें फंसकर अपना समझते हो कोई न होगा।

एक आदमी अपनी ग्रहस्थी में रात दिन लगा रहता था मैंने उससे कहा कि तुम कुछ भगवान का भजन क्यों नहीं करते हो तो वह आदमी मुझसे कहता है कि जो मैं बच्चों की सेवा करता हूं यही ईश्वर का भजन है.  काम भगवान ने करने को यही सौपा है। मैंने कहा कि बच्चों की सेवा करते हुए इसी से समय निकालों परन्तु उसकी समझ में न आया तीन साल के बाद पहुंचा देखता हूँ की वह अपने मे बीमार है। और रोता है कि बच्चों मैंने तुम्हें ऐसे पाला था जैसे लोग ईश्वर का भजन करते हैं और आज तुम हमारे काम नहीं आते हो।

महात्मा जी ठीक कहते थे कि ईश्वर का भजन ही मुसीबत मे साथ देता है जगत के लोग स्वार्थी हैं.  उसने मुझे बुलाया और कहा कि आप भजन करने की जुगती बताते मैंने कहा कि मरने पर भजन काम नहीं देता है, जैसे नया तैरने वाला अचानक डूबने लगे और कहे कि मुझे तैरना सिखा दो नहीं सीख सकता। पहिले सीखो इसलिए भजन शुरु से करो

◉ जयगुरुदेव  

Yug mahapurush baba jaigurudev


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