मैंने शिवनेत्र पाने पर गुरु कृपा से यह अनुभव किया कि जरा भी गुरु आज्ञा का उल्लंघन साधक ने किया कि वह वहां से गिरा सिद्धियां रिद्धियां जो खड़ी हैं वह इसीलिये खड़ी हैं कि साधक गुरु आज्ञा का उल्लंघन करे कि मैं इसे गिरा दूं।
दीनता पूरी धारण तथा गुरु चरनों का आशिक उबरेगा और किसी की गुंजाइश नही है जो वहां एक मिनिट ठहरे।
मैंने खुद जब यह दृश्य देखे कि मेरा मन खराब होने को होता था कि गुरु संभाल करते थे। क्योंकि साधक कैसे रुक सकता है वहां के दृश्य इस प्रकार लुभाने तथा अपनी ओर खींचने वाले हैं कैसे नहीं खिंचेगा। गुरु का बल ले तब और गुरु वचनों को पूरा याद करता रहे।
ऐसे परदे उतरते हैं कि गुरु सामने आकर खड़ा हो जाये उस समय गुरु की तरफ कौन ध्यान देता है गुरु यदि स्वर्ग में बुलावे भी पर कौन गुरु की सुनता है। ऐसी भीषण आकर्षण परिस्थिति में गुरु ही दया करे वर्ना साधक के सामर्थ के बाहर है। साधक गुरु को चिल्लाकर याद करे गुरु वही अवश्य मिलेंगे।
स्वर्ग लोक में ओर भी तमाशे होते हैं उसी चरण कमलों मे होकर डरावनी शक्लें दिखाई देती हैं । मैं जब उधर गया तो मुझे इतनी घोर बदबू आयी उसकी पीड़ा असहनीय है वही जमदूत किसी को पकड़ते हुये लिये जा रहे हैं साथ मारपीट पटकते हुये डांट फटकार लगाते हुये ले जाते हैं जीव डरता हुआ रोता चीखता हुआ जाता और थर थर कांपता जो शिवनेत्र से दिखाई देता है।
यह तो मैं इशारे में हाल वर्णन करता हूं। वहां बहुत कुछ बुरा हाल है जो कहते बनता नही है। लोग अज्ञानी सुन कर हंसेंगे। उन खौफनाक दृश्यों को देखकर अत्यंत डर लगता है। मन और बुद्धि चाहती है कि साधन न करूं, कृष्ण भगवान ने शिवनेत्र अर्जुन का खोला था और लिंग शरीर वैराट की रचना में दोनों आंखों के ऊपरी भाग पर दिखाया था।
जिसको देखकर अर्जुन भयभीत हुआ था और कृष्ण भगवान से नम्र भाव से प्रार्थना करते हुये कहा कि भगवान आप यह कौतुक बन्द कर दें और अपना स्वरूप वही दिखावें।
कितने दिनों के लगातार अभ्यास करते करते एकाएक भारी चक्कर लगाता हुआ गोलाकार आया उसमें देखने पर एक सुन्दर मूर्ति है जो मुझे मालूम होता है कि विष्णु भगवान हैं परन्तु वह गोलाकार जो प्रथम में मिला था जिस को चरण कंवल कहते हैं साथ है उन्हीं में देखने पर मुझे मालूम हुआ कि एक आकाश हेै जो कि सितारों से पूर्ण खिला है कड़े सुन्दर चमकते हुए सितारे नजर आते हैं और यह दृश्य बंद नहीं होता है।
एक दिन रात्रि मे साधन के समय जमुना के किनारे मालूम हुआ कि कहीं गाने की मधुर ध्वनि एक साथ हो रही है मालूम यह होता है कि सब स्त्रियां एक स्वर से बोल रही हैं मेरा मन उस आवाज की तरफ खिंच गया। जब मैं उस ध्वनि की तरफ एक तरफा हुआ और लय होने लगा मुझे एक विशाल फाटक जो पूर्ण कारीगरियों से पूर्ण है स्त्रियों के स्वरूपों का फाटक बना हुआ है उस फाटक पर सुन्दर से सुन्दर नृत्य हो रहा है।
जब दृष्टि अचानक सामने गई तो क्या देखता हूं कि एक कतार में हजारों मीलों की दूरी में एक रूप से नाचती हुई स्त्रियां आ रही हैं नाना भांति की कला का विकास करती हुई ऐसा मालूम होता है कि एक सैकण्ड के अन्दर चली जाती है यह दृश्य बैकुण्ठ में नित्य होता रहता है।
और बहुत से खेल बैकुण्ठ में नित्य लुभाने वाले होते हैं साधक अपने पथ से गिरने के लिये पूर्ण तैयार रहता है, अप्सराओं का नाच विशाल आकर्षण रूप में होता है जिसे देख साधक जब पूर्ण आशिक हो जाता है तब वह अप्सराओं का बन्द होता है। साधक उसके देखने के लिये तड़पता है जिस तरह बच्चे के जाने पर मां तड़पती है। हर वक्त इच्छा रहती है साधक का मन माया नृत्य सामानों में जब लगता है जब वह नृत्य अप्सराओं का देखने का नहीं मिलता हैं।
मैंने अपने मन माया नृत्य देखकर गुरु से प्रार्थना की और कहा कि गुरुजी आप अपनी दया करें।
मुझे आगे चलकर साधना में बहुत विघ्न आये जिन विघ्नों को गुरु द्वारा ही तय किया जा सकता है पूरी गुरु कृपा का सहारा साधक को लेना होगा और हर वक्त गुरु शरण होगा। यह दृश्य विघ्न के आपको स्वर्ग लोक के सुनाये हैं जो कि शिवनेत्र खुलने पर अक्सर साधक को दिखाई देते हैं।
स्वर्ग लोक की अपसरायें बहुत सुंदर हैं जिनकी सुन्दरता की उपमा का यहां कुछ भी प्रमाण सूचक शब्द नहीं है स्वर्गलोक में शरीर अप्सराओं का लिंग है, जो 17 तत्वों का है दस इन्द्रियां चार अन्तः करन यानि मन बुद्धि चित्त अहंकार और तीन गुण रजोगुण सतोगण तमोगुण।
स्वर्ग लोक और बैकुण्ठ धाम में सुन्दर मकान मन्दिर मस्जिद पहाड़ वन पर्वत नाले दरिया समुद्र मृग पक्षी सिद्ध सिद्धियां निधियां। स्वर्ग लोक बैकुण्ठ में चौदह भवन का नाम बहिस्त है।
नर और नारियां लिंग शरीर में सदा नृत्य करते रहते हैं इसी स्थान पर बच्चे भी हैं। स्वर्ग लोक और बैकुण्ठ लोक में आहार सुगन्धी का है और यहां की भोग सृष्टि दृष्टि की है भोग लोक दृष्टि से भोगते हैं और बच्चे भी पैदा होते हैं।
लोग ऐसा न समझ बैठें कि स्वर्ग और बैकुण्ठ के जाने के लिये कोई राॅकेट होगा, तुम्हारे अन्दर शब्द है जिसको नाम और अंग्रेजी मे साउण्ड कहते हैं। आवाज आंखों के ऊपरी हिस्से में हर वक्त होती रहती है।
संसार के शोरगुल होने से तुम उस आवाज को सुन नहीं पाते हो किसी एकान्त स्थान पर जाओ और सुनने का तरीका गुरु से सीख लो। तुम उस आवाज पर सवार होना वह खुदा की कुदरती आवाज है यानी भगवान की वह सच्ची वाणी है वह खींचने का काम करती है। सुरत उसी का एक तत्व है।
स्वर्ग बैकुण्ठ के ऊपर केवल स्त्रियों के लोक हैं जिसको हिन्दी में माया लोक कहते हैं। इसी आद्या महाशक्ति ने रोकने के वास्ते पूरा जाल बिछा रक्खा है निरंजन भगवान ने अपना पूरा आधिपत्य माया को दे रक्खा है जीवों को फंसाने के लिये। सुर, नर, मुनि, ऋषि और योगी इसी सहसदल कंवल के नीचे जोती माया के अद्भुत चमत्कारों को देख कर मोहित हो गये। इसी स्थान पर माया का सच्चा हिंडोला पड़ा है यहां पहुंच कर कितने भूल गये और इसी माया ने अपने मसालों को देकर वापस भेज दिया गले का हार बनकर सब के साथ झूल जाती हैं। जिसे छोड़ना साधक के लिये असंभव है। जो वहां मोहित हुआ कि माया गले बंधी।
यह लोक बैकुण्ठ के ऊपर है यहां पर सर्वस्व दायें-बाये, ऊपर नीचे स्त्रियां ही स्त्रियां हैं। गुरु बिना कौन बचेगा किसमें हिम्मत है जो अपने बल से बच जावे। जैसे राज्य पाकर मद आ जाता है उसी तरह माया का कृत्य देखकर सब भूल जाता है यहां पर सब स्त्रियां पूरा श्रृंगार करके सजी धजी हैं जिनके लिबास देखकर साधक सब कुछ भूलकर अपने आपको उनके बीच में पहुच कर खो जाता है और उनके आव भाव से यह समझ जाता है कि यह हमारी हैं मुझे पूर्ण रूप से चाहती हैं। यहीं रहूं इनको छोड़ कर कहीं न जाऊं और गुरु की अब जरूरत नहीं है यह भय लगा रहता है कि गुरु हमारे खेल को बिगाड़ न दें। वहां पर यह भाव उत्पन्न रहता है कि गुरु की क्या जरूरत है मुझे गुरु से कोई मतलब नहीं और जब हमने उनसे कोई मतलब नहीं रक्खा तो फिर क्यों आयेंगे।
मैं एक रात्रि में यह दृश्य देख रहा था देखते देखते सब कुछ भूला और ऊपर आंखे उठाकर देखता हूं असंख्यों कतारे स्त्रियों की लगी हैं और विचित्र कलाओं का नृत्य हो रहा है। अद्भुत कतारे बन जाती हैं मैं क्या कहूं कुछ कहते बनता नहीं है। शक्ति लोक में यह नृत्य क्षण क्षण पर होता रहता है। साधक अपने भागों की सराहना करता रहता है परन्तु गुरु इसे बतायेगा कि शक्ति लोक का नृत्य लाभकारी है या नुकसानदेह है परन्तु साधक का अनुभव मन पसन्द सुखकारी मालूम होता है।
इस शक्ति लोक के नाके पर जोती माया विराजमान है जिसको जगत मातेश्वरी कहते हैं। निरंजन देव भगवान की अर्धांगिनी हैं इसी का नाम शिवशक्ति माया और पुरुष के नीचे शिव पार्वती विष्णु लक्ष्मी ब्रह्म सावित्री यह अलग है। सब लोक एक न समझ लें।
मुझे यह दृश्य देखकर वह अनुभव हुआ कि गुरु की जरूरत नही एकाएक गुरु उसी स्थान पर आ गये खेल जो हो रहा था वह सैकिन्डों में खतम हो गया यह नृत्य खतम होते ही गुरु के प्रति नाराजगी पैदा हुई एक अवाज उसी स्थान पर आई कि गुरु से नाराज मत हो गुरु सदा तुम्हारी रक्षा करते है।। जब गुरु के पास गया तो गुरु ने चेहरा देखकर कहा कि जो तुम वहां देखते हो और खेल के बिगड़ने पर नाराज से हो शिवनेत्र खुलने पर दिखाई देता है।
बेटा तुम्हें मालूम नहीं है कि माया ठग लेती है और साधक के प्रेम को खतम कर देती है।
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