सतगुरु के दो शब्द

जयगुरुदेव 
सतगुरु के दो शब्द 

 एक महात्मा जी के पास एक आदमी आया और बोला कि हमको चेला बना लीजिए । उन्होंने कहा कि बच्चा। चेला कौन बनता है तुम जानते हो? चेला बनने के लिए शिक्षा लेनी पड़ती है। चेला का मतलब कि चेत जाय, जाग जाय, होश में आ जाय। चेला का मतलब कि जो गुरु कहे उसकी आज्ञा का पालन करे अपनी बुद्धि न लगाए वह चेला है। उसे ही नानक जी ने सिख कहा। पहले किसी का हो गया उससे सीख ली उसकी बातें मानने लगा। बाद में वहीं सिख बन गया।

 सत्य, प्रेम, दया, सेवा, आदर मानव के मूल गुण हैं। इन्हीं पर मानव का मानव धर्म आएगा। सतयुग की रूप रेखा आने वाले समय में देखने को मिलेगी। सन्तों फकीरों के वचन असत्य नहीं होते। कलयुग की समाप्ति के आसार आगे देखने को मिलेंगे।

 सन्तों महापुरुषों की इतनी सारी वाणियां हैं कि इसके आगे वेद, शास्त्र, पुराण कुछ नहीं है। महापुरुषों ने आदि से अन्त और अन्त से आदि तक का सारा वर्णन किया है। वेद शास्त्र ये सब तो नीचे की वाणी है।

 हमने कब कहा कि मैं महात्मा हूं। मैं तो कहता हूं कि मैं सेवक हूं। तुम्हारी श्रद्धा है। तुम चाहो जो कहो ये तो तुम्हारी बात है। चन्टई चालाकी से तुम निकल नहीं पाओगे। इशारा समझो। इशारा न समझोगे तो महात्मा चुप हो जाते हैं।

 कोई कहता है कि बाबा जी के नाम जमीन होगी। मेरे नाम एक इंच जमीन नहीं है जो कुछ है सब संस्था की है। तुम अपना लाभ लो, असली काम करो। इसी में तुम्हारा लाभ होगा। बेकार के पचड़ो में पड़ोगे तो कुछ नहीं मिलेगा।

 आज से पचास साल पहले इतने लड़ाई झगडे़ लूट पाट हिन्सा चोरी डकैती नही थी। शहरों में इतनी आबादी नहीं थी। लोग सीधे सीधे सरल थे और गांवों में रहना पसन्द करते थे। क्योंकि वहां शांति रहती थी। अब ऐसा क्यों हो गया ? क्योंकि सबने महात्माओं की शिक्षा छोड़ दी।

 ऐसी बहुत सी बीमारियां फैलने वाली हैं जिनकी दवा नहीं मिलेगी। ऐसा क्यों ? क्योंकि इतनी हत्यायें होने लगीं उसका प्रायश्चित और पाप सबको लग गया। जो वाणी मे कहा गया है कि- तिल भर मछली खाय कर, कोटि गऊ दे दान। काशी करवट ले मरे,निश्चय नरक निदान।।  यह बिल्कुल सत्य है।

 चाय में जब मांस का रस मिलाने की खबरें आने लगीं है तो चाय पीना छोड़ देना चाहिए। मैंने तो पहले ही कहा था कि चाय कोई अच्छी चीज नहीं है? मत पियो। 

 फिजूल के कामों मे अपना समय बर्बाद मत करो। थोड़ा समय रह गया है भजन कर लो। अन्तिम समय में केवल भजन ही तुम्हारे काम आएगा बाकी सब लोग तुम्हारा साथ छोड़ देंगे।

 जान बूझकर गलती करोगे तो अपराध लग जाएगा। जो नहीं जानते हैं और गलती करते हैं वो कोई बात नहीं। ये कितना उल्टा हो गया कि तुम सत्संग मे बैठते हुए समझते हुए भी गल्ती करते हो तो तुम्हारा सुधार कैसे होगा ?

 सुरत पर कर्मों का दबाव है। जैसे सुबह उठते हो और बाहर निकलकर प्रकाश में चल देते हो उसी प्रकार जब सुरत के ऊपर से कर्मों का भार हट जाता है तो प्रकाश मे सुरत चल देती है।

 भजन का अभ्यास करना चाहिए। रोज रोज अभ्यास करते रहोगे तो आदत बन जाएगी। एक दिन किया फिर दो चार दिन छोड़ दिया कि अब कर लेंगे तब कर लेंगे तब मन मोटा हो जाता है और मन पर मैल आ जाता है। इसीलिए भजन में रोज रोज समय दो।

 टाट हमने क्यों पहनाया यह तो हम समझते हैं। यह तो हम कभी भी उतरवा सकते हैं पर यह समझों कि इसमें ऋद्धि सिद्धी है तो यह तुम्हारी भूल हो गई । यह सादगी है। ऋद्धि सिद्धि तो सुरत में है। बहुत से लोग इसका पालन करते हैं। और बहुत से लोग चले गए।

 जैसे जैसे तकलीफ बढ़ेगी वैसे वैसे बाबा जी की एक एक बात सबकी समझ में आएगी। मैंने हर तरह की बातें समझाई हैं और हर जगह नामदान दिया है। अभी हम कहीं जाएंगे नहीं न तो अंदर से कोई संकल्प उठ रहा है। मैने बहुत मेहनत की है। अब लोगों को यहां आकर बैठकर सत्संग सुनना होगा।

 परेशानियां सेवा से कम होती हैं इसीलिए खुशी से सेवा करो। जो लोग खुशी से आते हैं वो लोग खुशी और उमंग से सेवा करते हैं। जो लोग सिखा पढ़ाकर भेजे जाते हैं वे ढीले रहते हैं। जिस तरह की सेवा मिले वैसी ही सेवा करो। आध्यात्मिक विद्या सिर मौर है और भारत में ही मिलती है और किसी देश में नहीं मिलती। भारत कर्म भूमि है इसी में मिलती है भोग भूमि में नहीं।

 गन्दगी जमा करोगे तो भजन नहीं कर सकते। भजन ध्यान के द्वारा ही जीवात्मा पर चढ़ी कर्मों की गन्दगी साफ होती है। काल हिसाब मांगता है फिर कुटाई करता है और कहता है कि तुमने दिए शरीर को गन्दा क्यों किया।

 जन्म मरण से छुटकारा और मुक्ति बिना सन्तों के नहीं मिलेगी। अन्तर में गुरु के प्रकाशमय चरण कंवल के जब दर्शन होते हैं तब होश आती है और आत्मा अपने स्वरूप को पहचानती है।

 जब प्रलय यानी कयामत आती है तो सारे कर्मों को भुगताया जाता है और इतनी तकलीफ होती है कि भूख भाग जाती है, पति अपनी पत्नी को मारकर खा जाता है। सारे जीव पृथ्वी के जल के, वायु के तड़प तड़प कर प्राण त्यागते हैं।

 लोग प्रार्थना करते हैं, और उन्हें प्रार्थना करना नहीं आता। प्रार्थना करो तो जहां से शुरु करो वहीं ले जाकर खतम करो। बीच में कोई काम हुआ या किसी ने आवाज दी तो छोड़कर उठ गये और फिर आकर शुरु किया तो ये प्रार्थना खण्डित हो गई। संसार की तरफ तुम्हारा ध्यान ज्यादा है और प्रार्थना की तरफ कम है। इसी तरह से सुमिरन है। सम्पुट पूरा करो। जहां से शुरु करो वहीं पर माला पूरा करो यानी इसी नाम के सुमिरन से समाप्त करो। बीच में उठ गए सुमिरन छोड़ दिया तो सुमिरन खण्डित हो गया। ये सब बातें सत्संग में मालूम होती हैं।

 जो टी.वी. देखते हैं वो भजन नहीं कर सकते। टी.वी. से मन की चंचलता बढ़ती है। मन की चंचलता में अनेक विकार है। भजन के लिए मन की स्थिरता चाहिए। जो दृश्य तुम पर्दे पर देखोगे भजन के वक्त मन भाग भाग कर वहीं जाएगा।

 माया का खेल कोई जान नहीं सकता । रोकर गाकर हंस खेल कर ऐसा दांव मारती है कि साधक गिर जाता है फिर बाद में पछताता है। तुम जड़ माया को नहीं छोड़ पाते हो तो चेतन माया से बचना तुम्हारे वश का नही वहां गुरु की हर कदम पर जरूरत पड़ती है और वे ही सम्हाल कर सकते हैं। 

 अगर तुमने विश्वास खतम कर दिया तो बरक्कत खतम हो गयी। सन्देह से विनाश होता है महात्मा कभी कोई ऐसा काम नहीं करते जिससे किसी का नुकसान हो। इसलिए आप लोग सन्देह मत करो।

जयगुरुदेव 



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