*⧭ जयगुरुदेव स्वामी जी ने कहा -- ⧭*
➥ इंसान के प्रत्येक साँस के साथ उसका प्रारब्ध जुड़ा रहता है।
➥ गुरु को अपने चित्त में ऐसे बसाये रक्खो जैसे कामी पुरुष कामिन को चित्त में बसाये रहता है। ऐस भाव हो जाय तो उस जीव की रक्षा बराबर होती रहती है, काल और माया उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकते।
➥ टेलीफोन आते है कि पति सता रहा, सास सता रही, बहू सता रही। कहती है कि मर जाओ। क्या आदेश दे दें ? जिस परिवार मे जिस जाति मे तुम रह रहे हो उसमे कोई तुम्हारा साथी नहीं है। सब अपने अपने मतलब के साथी हैं। कहा जाता है कि छुप कर भजन करो। ऐसा ताना मारेंगे कि तुम्हें घाव हो जाएगा। इसलिए छुप कर भजन करो। जितना दर्शाओगे कि मैं भजन करता हूं उतनी दिक्कते सामने आयेंगी।
➥ मैं बराबर कहता हूं कि शाकाहारी रहो। तुमने काटा है खाया है तो भूत बनकर तुम्हें सतायेगा। इस बात को तुम समझते नहीं हो। कितने लोग आते हैें जिन्हें भूत परेशान करते हैं। मैं तो यही कहता हूं कि सेवा करो फिर वो छोड़ भी देता है।
➥ महात्माओं ने अपने अपने समय काल में बहुत दया की । दया की वर्षा करने में कोई कमी कसर नहीं छोड़ा पर जीव अपने कर्म वश उनसे पूरा लाभ न ले सके।
➥ दीनता के बड़े फायदे हैं। जो बड़े बने तिन मार सही।
छोटे बनोगे, मन दीन होगा, बुद्धि आसानी से बातो को समझेगी, चित्त चिंतन नहीं करेगा, इसलिए सुमिरन ध्यान भजन सेवा सत्संग सब दीनता से करो। दीनता से करोगे तो परमार्थ में लाभ होगा। जो दीन भाव से आये, महापुरुषों ने उन पर दया की।
➥ मैं अपनी बात कहता हूं। आप सवेरे तीन बजे सेवा करने जाते हो मैं भी वहां पहुंचता हूं। आप बारह बजे जाते हो तब भी मैं वहां पहुंचता हूं। मैं कोई महात्मा थोड़े ही हूं। मैं तो कहता हूं कि मैं सेवक हूं। आप भी सेवा करते हो मैं भी सेवा करता हूं।
➥ जब कोई यह कहता है कि मुझे घर वाले भजन नहीं करने देते तो मैं इस बात को नहीं मानता। खाना बनाने का समय है और देवी कहे मैं भजन करूंगी तो झगड़ा तो होगा ही। वैसे ही काम के समय तुम भजन करो तो दूसरों को गुस्सा आयेगा।
➥ भजन करने वाले ऐसा समय निकालकर भजन करते हैं कि किसी आदमी को क्या पास से गुजरने वाली हवा भी नहीं जान सकती कि ये भजन कर रहा है। भजन दिखावा और आडम्बर नहीं है। इसी तरह से जो सेवा देने वाले होते हैं वो दिखावा नहीं करते। सेवा देने वालों के लिये कहा है कि अगर दाहिना हाथ कुछ सेवा देता है तो बाये हाथ को भी खबर नहीं होती।
➥ लोग ने ईश्वर को जानते हैं न ब्रह्म को और न पारब्रह्म, महाकाल और सत्तपुरुष को। बुद्धिज्ञान से सबको घसीट घसाट कर एक कर दिया जब कि सब अलग अलग है। सबका ज्ञान अलग है, सबका आनन्द अलग है, प्रकाश अलग है, सबकी अपनी अपनी सीमा है। केवल सत्तपुरुष की कोई सीमा नहीं। सब एक कैसे हो जायेेंगे ?
➥ आप अंधकार के समय में फंस गये हो अब महात्माओं के बिना निकालेगा कौन ? संसार के समान सुख दुख सबको एक तरह से नहीं मिलेंगे। वह तो जिसने जैसा किया है वैसा ही होगा। लेकिन भजन सब कोई कर सकते हैं। यह अधिकार हर मनुष्य के लिये समान है। भजन तो नंगा होकर भी कर सकता है।
➥ हमारे वकील साहब हैं। उन्होंने मुझसे कहा कि आप कुछ कहिए। मैंने कहा कि क्या कहूं। कायदे कानून आपके पास हैें आप समझिये। झूठ में झगड़ा है, सत्य में तो कोई झगड़ा है नहीं। हमारे स्वामी जी महाराज कहा करते थे कि देखो उधर मुंह मत करना, कोर्ट कचहरी मे कितना खर्चा है। खेत, जानवर, सामान सब कुछ बिक जायेगा।
➥ खुश करने की बात है। गुरु को अगर खुश करलो तो उनकी रुझान तुम्हारी तरफ होगी।
➥ सत्संग ध्यान से सुनो फिर गुनो फिर छांटकर अपने मतलब की बात निकाल लो। सत्संग सुना और कुछ याद न रहा तो लाभ क्या ?
➥ कर्मों की गन्दगी साफ करके अन्तर में चलो नही तो फिसल जाओगे। टी.वी. में जो तुम देखते हो वह मन में बैठ जाता है, निकलता नहीं है।
➥ सबसे मेहनत का काम महापुरुषों का है जो जीवों को समझा बुझाकर, उनके कर्मों की गन्दगी धोकर अन्तर में ले चलते हैें। उनका कोई भी जीव भटक कर नर्कों और चैरासी मे न चला जाये इस बात की बराबर निगरानी रखते हैं।
➥ गुरु के वचनो को प्रेम से सुनो। आज समझ मे नहीं आता है तो कल समझ में आ जाएगा, दो चार दस दिन में समझ में आ जाएगा। ध्यान से सुनते रहो अभी तुम जगत जाल में उलझे हुए हो इसलिए नहीं समझ पाते हो।
➥ अपनी तकलीफों को अपने पास रखोऔर भजन करो। तुम गुरु को याद नहीं करोगे, भजन पर बैठोगे तो भजन नहीं बनेगा। मन कहीं, चित्त कहीं घूमता रहेगा। बराबर उसकी याद करते रहोगे तो दस मिनट भी बैठोगे तो काम बनेगा। तुमको हरदम यही रहता है कि यह काम नहीं हुआ वह काम नहीं बना, यह तकलीफ वह तकलीफ। अपना काम नहीं करते हो। इसी में समय निकल जायेगा और चले जाओगे।
➥ पहले के लोग मेहनत करते थे, खेत से दाना बीन बीन कर खाते थे और तब होते थे भारत के प्रधानमंत्री। प्रजा का सच्चा काम करते थे। विदेशी उनको देखते के लिये आते थे। चाणक्य का ऐसा इतिहास है। अन्न देवता है इसकी लोग कद्र करते थे, एक दाना भी बर्बाद नहीं होने देते थे।
➥ विनती प्रार्थना भाव से करोगे तो सुनवाई हो जायेगी। बहुत से लोग यहां बैठते हैं, कमाई करते नहीं हैं। नामदान ले लिया, एक व्यवहार समझ लिया कि हमने गुरु कर लिया। वे यहां आते जाते रहते हैं उधर पूजा पाठ तीरथ व्रत में लगे रहते हैं। यह सब इन्द्रियों का खिलवाड़ है। वे नाम कमाई नही करेंगे।
➥ पहले चारों तरफ महात्माओं के सद् उपदेश होते रहते थे तो लोग अपनी जगह पर ठीक रहते थे। अब सब खतम हो गया तभी तो लोग तकलीफों से घिर गये। दवा भी नहीं लगती, एक दूसरे को मारने को तैयार खड़े हैं। महात्माओं का प्रचार होता रहता तो जनता अपनी जगह पर ठीक रहती।
➥ महात्मा देखते हैं तब कहते हैं। कोई कल्पना की बात नहीं। मौत के वक्त यमदूत आते हैं और कहते हैं कि मकान फौरन खाली करो। अगर तुमने हीला हवाली की तो पहले पटकेंगे तब तुम कितनी पटकनियां खाओगे।उसके बाद तुम धर्मराज के दरबार में पेश किए जाओगे और तुम्हारा फैसला होगा।
➥ चाहे तुम जितना पूजा पाठ करो, तीरथ व्रत दान पुण्य करेा अगर दया भाव नहीं है तो कुछ होने वाला नही है। अच्छे कर्म का भोग तो मिल जायेगा लेकिन मनुष्य शरीर नहीं मिलेगा। दया करने से, भूखे को भोजन कराने से, प्यासे को पानी पिलाने से मनुष्य शरीर पाने के कर्म बनते हैें।
➥ तड़प होती है कि संसार टूट जाये और बगैर तड़प के प्रेम नहीं बनेगा। जिन्होंने प्रेम किया उन्होंने परमात्मा को प्राप्त कर लिया। प्रेेम मार्ग ही भक्ति मार्ग है प्रेम होने पर आज्ञा का पालन होता है।
➥ मन की आदत को बदलना है। घाट पर बैठकर कभी ध्यान करो कभी भजन करो। घाट पर ही दया मिलेगी फिर तुम्हारी दिव्य आंख खुल जाएगी। सुरत का घाट दोनों आंखों के मध्य में अन्तर में हैं।
➥ शरीर को निरोग रखने के लिये हफ्ते मे एक दिन का व्रत रखना चाहिए। दिन कोई भी हो सुविधानुसार रख सकते हो।
➥ कर्ज तो तुमने ले लिया और कुछ सोचा समझा नहीं। अब अदा नहीं कर पा रहे हो तो रो रहे हो। जैसे तैसे अदा तो तुम्ही को करना है।
➥ प्रेमी खरे और सच्चे होते हैं इसलिए जब जहां मौका मिल जाये वहां ऐसी सेवा करो जिससे तुमको लोग सदा याद करें। पुराने लोगों से ही लोग सीख लेते हैं। वैसे यह कोई योग नहीं है पर दया हो रही है।हमेशा दया के भिखारी बने रहो।
➥ जो सेवा करायी जाती है इसलिए कि किसी तरह से तुम्हारा अंग पवित्र हो जाये। यहां गांव महोली में ढिढोरा पिटा है कि हमने कहीं ऐसे भक्त नहीं देखे कि रात को बारह बजे, एक बजे से सेवा में लग जाये। आश्रम पर कितने लोग आते हैं और देखकर बदल जाते हैं। तो गुण ग्राही होना चाहिए। गुण देखने से, करने से, समझने से आता है। बुरायी छूट जाती है। भावना आपकी अचल हो जाये शुद्ध हो जाये यह मामूली बात है ?
➥ सच्ची बात कह दी जाये तो किसी की समझ मे आती नहीं लेकिन ''सांची कहे बनाय, कै टूटे कै जुड़ रहे बिन कहे भरम न जाय।'' सच्ची कहना चाहिए चाहे कोई टूटे या जुड़े। । जो जुड़ेगा वह काम कर लेगा। सच कहने पर कोई न कोई जुड़ेगा ही।
➥ सत्संग सबको खींच रहा है दिल मे सबके असर हो रहा है और मन सबका महसूस करता है कि गल्ती के मार्ग पर है।
➥ स्वामी जी महाराज कहा करते थे कि बेटा! दाल की खुशबू रहे एक भी दाना न दिखे उसमें रोटी भिगोकर खाओ कि दो घण्टे में पेट खाली हो जाये। इससे बीमारी नहीं होगी और भजन बनेगा। कस कर खा लोगे तो विकार पैदा होंगे और भजन भी नहीं होगा।
➥ खानपान का ध्यान रखना चाहिए। मुझको स्वामी जी की एक एक बात याद है जो वो समझाया करते थे। कहा करते थे कि किसी का अपवित्र अन्न खा लिया तो मन खराब हो जाएगा, चित्त चंचल हो जाएगा, और भजन नहीं होगा।
➥ गुरु निष्कपट होते हैं। आप कपटी हो फिर कैसे आपका मेल होगा। आप छल कपट निकाल दो तो वह मिल जाएंगे। तुम कभी आए कभी चले गए, कभी चार कदम आगे बढ़ाया फिर पीछे लौट गए बस यही घामड़पना करते हो। पूछो कि भजन करते हो तो कहते हो कि भजन नहीं बनता इसमें भी कपट करते हैं। तुम भजन करते नहीं हो और कह दिया कि नहीं बनता।
➥ सत्संग रोज सुनो, संभल कर रहो, समझ बूझकर रहो। सब बातें सत्संग में आएंगी। अपने मन में बात लेकर आओ सबकी बात आएगी। आप अपनी अपनी पकड़ो। लोग तरह-तरह के प्रश्न लेकर आते हैं कि उत्तर दे देंगे तो हम भजन करेंगे। फिर उनको उत्तर दे दिया जाता है पर सत्संग में तुम्हारा ध्यान कहीं चला गया इसीलिए बात निकल गयी। इसलिए ध्यान से सुनो। यह सत्संग है|
जयगुरुदेव
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baba jaigurudev |
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Jaigurudev