☆ *जय गुरु देव वाणी* ☆
➤ फकीर और महात्मा किसी को धोखा नहीं देते। वो ऐसा काम कभी नहीं करते जिससे किसी को नुकसान हो।
➤ कर्म प्रधान है। कर्म न रहे तो काल कुछ नहीं कर सकता। अच्छे और बुरे दोनों कर्म दग्ध होंगे तभी जीवात्मा जनम मरण के चक्कर से छूट सकेगी। ब्रह्मपद यानी त्रिकुटी के पार जाकर जीवात्मायें जब मानसरोवर में स्नान करती हैं फिर वो शब्द रूप हो जाती हैं। उनमें इतनी शक्ति हो जाती हैं कि वे पलक मारते ब्रह्माण्डों की रचना कर दें।
➤ अगर तन मन गुरु को दे दिया जाये तो बोझा लदना बन्द हो जाता है पर तुम तन मन नहीं देते हो तभी तो बोझ लादते हो।
➤ कुछ ऐसे पेड़ होते हैं जो छांटे जाते हैं। अगर कांटे छांटे न जाये तो उनकी शोभा बिगड़ती है इसलिए छटनी भी जरूरी होती है। बात समझने की है।
➤ राजनीतिक बात मत करो। जो गलत काम करते हैं या खान-पान गलत है उनको समझाओ। जो समझा हुआ है उसे तुम क्या समझाओगे ?
➤ काम तो आप सब लोग करते हो मैं तो एक खम्भा हूं। मेरी इच्छा है कि आप सब लोग भजन करने लगो। तुम किसी तरह से मेरी बात को मान लो। महात्माओं को चिन्ता है कि यह शरीर दुबारा नहीं मिलेगा। तुम इस बात को समझते नही। तुम्हें क्या पता है कि जीवों का कहां फैसला होता है और कैसे जम पुलिस पकड़कर ले जाती है।
➤ सब इंतजाम आपको ही करना है और सेवा भी आपको ही करनी है। आमदनी का कुछ हिस्सा फेंकते चलो तो काम हो जाये। सब साथ हो जायेंगे तो सब काम हो जाएगा। जो यहां रहेगा उसको मेहनत करनी होगी।
जो बड़े बड़े पाप कर्म तुमने किया है उसकी छटाई यहां होती है।
➤ तुम भजन करो मन्दिर तो चिन्ह है। जो खजाना तुम्हारे अन्दर है उससे तुम अपरिचित हो। नाम का खजाना मिल जाये तो सब मिल गया।
➤ इतना सुलभ सन्देश तुमको दिया जा रहा है प्रेरित किया जा रहा है तो भागो मत। अन्धेरे में कुछ नहीं मिलेगा। यहां सब काल का मसाला है फक से टूट फूट जायेगा।
➤ अपने अपने विचारों मे रहो। जो करना है वो करो जो नहीं करना है वो मत करो। युग युग के कर्मों को निपटाना है वो ऐसे नहीं निपट सकता जब तक उसमें आग नहीं लगेगी।
➤ जर्जर वक्त आ रहा है। इस भाषा को समझो। हमारे स्वामी जी महाराज के पास एक कुर्ता था, जमीन मे रखते थे। उसे उठाकर दिखाया और कहा कि देखो ये जर्जर हो गया, झड़ रहा है। इस बात की गहराई को समझो।
➤ हम तुमको आदेश देते हैं कि जो तुम चाय पीते हो यह ठीक नहीं है वह अशुद्ध है। उसको पीना छोड़ दो। जड़ी बूटियों का काढ़ा पी लो।
➤ जो बाहर की मुसीबतें आयी हैं उसे तो तुमने बुलाया। इसमें न तो महात्माओं का दोष है न किसी देवी देवता का और ये बाहर की मुसीबते ऐसी नहीं टलेंगी। ये तो केवल भजन करने से ही टलेंगी।
➤ राजाओं और जमींदारों के समय में जंगल और मैदान बहुत थे कहीं भी बैठ जाइये कोई कुछ भी नहीं कहता था बल्कि अतिथी समझकर स्वागत सत्कार कर देते थे। अब तो ये है कि कहीं बैठ जाइये तो कहा जाएगा ऐ साधू यहां कहां बैठा है यह सरकारी जमीन है। अब भजन करने के लिए जमीन नहीं छूटी है।
➤ अब तो बारह महीने हुड़दंग मची हुयी है। क्रोध चढ़ा हुआ है। आज से पचास साल पहले जहां ऐसा उपदेश होता था तो लोग सुनते थे, खुश थे भाव भक्ति से अब तो ये कुछ नहीं रहा। अब यह है कि हटो इधर से। जब आप सबको दुत्कारते रहोगे तो अपनी आत्मा का भला कैसे करोगे ? बचाने वाला चुप हो जाएगा कि जाओ डूबो। महात्मा रास्ता निकालकर बचा लेते हैं वर्ना बचाने का भी वक्त नहीं रहा।
➤ आज से पचास साल पहले इतने झगड़े नहीं थे न गांवों मे न शहरों में, लोग तब भी काम करते थे। उस समय गांवों में रहना लोग ज्यादा पसन्द करते थे क्योंकि वहां शान्ति रहती थी। अब तो गांव गांव में झगड़े होने लगे शहरों की बात क्या। अब आप जाऐंगे कहां? महात्माओं की शिक्षा छोड़ दी इसीलिए तो ये हाल हो गया।
जय गुरु देव
Baba jaigurudev
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Jaigurudev