सतगुरु के वचन

जयगुरुदेव आध्यात्मिक सन्देश

 सादा भोजन करोगे तो इन्द्रियां चलायमान नहीं होंगी, आलस सुस्ती नहीं आएगी और मन भी भागदौड़ नहीं करेगा।

 जो कुछ भी तुम करते हो अच्छा बुरा वह सब लिखा जा रहा है। छोटा पुण्य बड़ा पुण्य, बड़ा पाप छोटा पाप सब कुछ वो बराबर लिखता रहता है। सारे कर्म छन करके जीवात्मा पर जमा होते रहते हैं और मरने के बाद उन्हीं के अनुसार सजा सुनायी जाती है।

 नाम का नशा जब चढ़ जाता है तब उसे कोई बदल नहीं सकता। नाम वह संगीत है जो हर घट में चौबीस घण्टे हो रहा है। उसमें मिठास है, शक्ति है, आनन्द है। जब नाम को सुनते सुनते जीवात्मा उसमें लय होती है तब नशा चढ़ता है। लय होने पर काम बन जाएगा और जीवात्मा होश मे आ जाएगी। बगैर नाम को पकड़े कोई भी ऊपरी मण्डलों स्वर्ग बैकुण्ठ आदि में नहीं जा सकता। 

 जो अन्धे हैं वो मरने के बाद की बात करते हैं। अंधे वे हैं जिनकी तीसरी आंख यानी जीवात्मा की आंख नहीं खुली। जिसकी दिव्य आंख खुली है वह जब चाहें तब परमात्मा से, खुदा से बात कर सकता है, दर्शन दीदार कर सकता है।

  तुम्हारा यह कहना ठीक नहीं है कि भजन के लिए समय नहीं मिलता। सबके पास समय है। तुम इधर उधर बैठकर गप्पे करते रहते हो और कहते रहते हो कि समय नहीं मिलता । यह बात मैं मानने के लिये तैयार नहीं। तुम आदत बना लो तब समय मिलने लगेगा।

 मैं जिसको प्रचार के लिए भेजूंगा वो मेरा पत्र लेकर जाएगा और मेरे सन्देश को सुनायेगा। अगर अन्य कोई व्यक्ति अपने मन से भाषण बाजी करता है तो उसकी सूचना मुझे दें। मेरे सन्देश में राजनीति की कोई बात नहीं होगी।

 यह कर्मों का देश है। अच्छा करो या बुरा दोनों भोगना पड़ेगा। कर्मो को माफ करने का अधिकार भगवान को भी नहीं है क्योंकि उनहेंने स्वयं कहा है कि- 
काल रूप में तिन्हकर भ्राता। शुभ और अशुभ कर्म फल दाता।।

 मैं पहले से कह रहा था कि बुरा समय आएगा। तुम यह सोचो कि समय अच्छा आएगा तो अभी आने वाला नही । बुरा समय तो चल ही रहा है और अभी इससे भी बुरा आएगा।

 महात्मा के सत्संग मे हर प्रकार के शब्द मिलेंगे। इसमें संसारियों परमार्थी चलने वालों साधकों सबके लिए शब्द रहते हैं। सब अपने अपने शब्द को पकड़कर अपना काम कर लेते हैं। जो अच्छे साधक होते हैं वो अपनी बात को पकड़ लेते हैं और उसे हर कोई नहीं समझ सकता। 

 जिस पर काल का कर्जा ज्यादा लदा है वह सत्संग में नहीं बैठ सकता। महात्मा अपनी चाल ढाल ऐसी कर लेते हैं जिससे लोग सत्संग छोड़ कर चले जाते हैं। महात्मा को मालूम रहता है कि यह भजन नहीं करेगा और भजन करने वालों को बाधा पहुचाएगा। काल को तो अपना कर्ज वसूल करना है इसीलिए वो ऐसी सुई लगा देते हैं कि ऐसे लोग सत्संग में टिक नही पाते।

 अभी देखा अमेरिका में क्या हो गया। ऊंची ऊंची इमारते एक सौ दस मंजिला वाली ऐसे भुर भुर कर गिरने लगीं। यह कुदरत है। वो नाराज बैठी है कब कहां क्या कर दे। कितने लाख लोग दब गये मर गये इसका अन्दाजा अभी नहीं लगाया जा सकता। वो तो थोड़ा थोडा करके बताते हैं नहीं तो पूरा राष्ट्र व्याकुल हो जाये।

 मैं पहले जब कहता था कि चण्डी घूम रही है तो कोई सुनने और मानने को तैयार नही था, मेरी बात को हंसी और मजाक समझते थे। मैंने कभी कोई मजाक नही किया। अब तो मैंने कहना छोड़ दिया और अब लोग चिल्ला रहे हैं, बड़े बड़े मुल्क चिल्ला रहे हैं कि धन कहां गायब हो गया, समझ में नहीं आ रहा है।

 हमारे पास समाचार आते हैं कि हमारा कारोबार ठप हो रहा है। ये भी समाचार आते हैं कि कारोबार ठीक है पर बढ़ नहीं रहा है दया कीजिए। जहां कहीं भी जाओ सबकी दुनिया की ख्वाहिशें हैं। अमीर हो, मध्यम वर्ग हो गरीब हो सब दुनिया ही मांगते हैं। सुख का काम करोगे तब सुख मिलेगा। सब दुःख सुख मे झूला झूल रहे हैं, परमार्थ की चाह किसी को नहीं।

 घाट पर बैठकर सब लोग प्रार्थना करो सच्चे मन से सच्चे भाव से। वह यहां है। तुम समझते हो कि वह यहां नहीं है वह तो वहां बैठा है इसीलिए विचलित होते हो। इसके लिए सत्संग की जरूरत है, साधन भजन की भी जरूरत है ताकि तुमको यह विश्वास रहे कि गुरु सब जगह है।

जयगुरुदेव 
Jaigurudev 🙏


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