सतगुरु की पाती

⧭ जयगुरुदेव वचनामृत ⧭ 

➔ हमारे स्वामी जी महाराज कहा करते थे कि हमेशा सच्चे रहो। सच्चा और ईमानदार होना चाहिए सच्चे नामदानी बनो। सच्चा नामदानी ध्यान भजन करता है।

➔ भजन करना है तो तरीका जानना चाहिए। तुम शिकायत करते हो कि समय नहीं मिलता या घर वाले नाराज होते हैं। समय सबको मिलता है पर बे टाइम भजन पर बैठोगे ये तो ठीक नही तो घर वाले भी नाराज होंगे। पहले भजन ऐसे समय पर करो जब कोई काम न हो। भजन की कोई बाधा हो तो कहो पर बेकार की शिकायत मत करो। 

➔ पराये अवगुणों को नहीं देखना। उससे अपने में गन्दगी बढ़ेगी। यह ठीक है कि उसको प्यार से समझा दो कि यह अवगुण है इससे बचो। मान ले तो ठीक नहीं चुप हो जाओ पर आलोचना मत करो। आलोचना करोगे तो बोझा लदेगा। तुम अपने गुणों को बढ़ाओ। किसी में कोई गुण दिखे तो उसे ले लो। अवगुणों को छोड़ दो।

➔ तुमसे कुछ कहा जाये तो तुम्हें मान लेना चाहिए और यह समझना चाहिए कि इसमें तुम्हारी भलाई है। एक आदमी आजमगढ़ से कार से आया था। रात में जाने के लिए पूछा, तो मैंने उससे कहा कि रात में मत जाना। मुझसे तो कहा कि नहीं जाऊंगा पर चुपचाप निकल गया। रास्ते में उसकी गाड़ी को घेर लिया, लूट लिया और मार डाला।

➔ समय को तुम बांट दो। समय को बांट दोगे तो धीरे धीरे सुमिरन ध्यान भजन बनने लगेगा फिर तुम यह देखने लगोगे कि मैंने कितनी बार मालिक को याद किया और ऐसे याद करते करते सो जाओगे। तो स्वप्न भी अच्छे होंगे। यह सब छोटी छोटी बातें हैं पर बड़े काम की हैं। सत्संग में ये सब सुनाई जाती हैं।

➔ अपनी आदत बदलो, अपना स्वभाव बदलो। सत्संग इसीलिए होता है। भजन करना इतना मुश्किल नहीं है जितना आदत और स्वभाव को बदलना मुश्किल है। परमार्थ में आदत और स्वभाव बदलना जरूरी है।

➔ तुम लाइन में बैठते हो अपनी तकलीफ कहते हो। मैंने जो बताया उस पर ध्यान नहीं। यहां से उठे और आगे जाकर बैठ गये फिर कहने लगे। एक बार जो कहा जाये उसे पकड़ो। एक ही समझे नहीं दूसरी कहने लगे और घर जाकर सब भूल गये।

➔ जब यहां आओ तो यह भावना लेकर आओ कि वहां जायेंगे तो सत्संग सुनेंगे, सेवा करेंगे और भजन करेंगे। आप ऐसा कभी मत समझना कि तुम यहां नही आओगे तो यहां कुछ नहीं होगा। यहां कार्यक्रम तो चलता रहेगा। तुम अपनी देखो, अपना काम कर लो। वह मालिक सब को देखता है। उसका विश्वास करना चाहिए।

➔ ग्रहस्थ आश्रम में आप सबकी बच्चे बच्चियां बड़े हो जाये तो उनकी फिकर होती है कि पढ़ाई लिखाई ठीक हो जाये, बच्चों की नौकरी लग जाये, बच्चियों की शादी ब्याह हो जायें  तो होशियारी और समझदारी से अपने घर में उनको रखो जो कुछ भी करो, दो या लो, ऐसा दो कि मन शुद्ध और साफ रहे, कोई विकार न आने पावे। बच्चियां 12 साल की हो जाये तो उनको धीरे धीरे घर के काम काज में लगाओ।

➔ हमारे स्वामी जी महाराज कहा करते थे कि वक्त वक्त की बात होती है, अच्छा बुरा वक्त तो आता ही रहता है, उसको काटना ही पड़ता है। वक्त बुरा आ जाये तो धीरज से समझदारी से उसको काट लो। वक्त निकल जाएगा तो सब ठीक हो जाएगा।

➔ मेहनत करने में जाति पाति का सवाल नहीं होता है। मेहनत ईमानदारी से कोई भी काम करो वह छोटा काम नहीं। चोरी ठगी तो नहीं की न?  मेहनत करके खाया। अपने प्रारब्ध पर अपने समय पर विश्वास करना चाहिए। वक्त का परिवर्तन तो होता ही रहता है। याद रखो यह हमारे गुरु महाराज की अकाट्य वाणी है।

➔ जो भी सेवा तुम यहां करते हो, मिट्टी डालते हो , खाना बनाते हो मन्दिर की सेवा करते हो, ध्यान भजन करते हो यह सब सतगुरु की सेवा है। एक दफे समझ लो चाल तुम्हारी बदल जाये तो वहां घर में दुकान दफ्तर खेती का काम जो भी करते हो यह सब उन्हीं की सेवा है। तुमने सब कुछ उन्हीं को अर्पण कर दिया है।

➔ हम छुपकर देखते हैं आपके काम को। अगर तुम यहां नहीं काम करोगे तो वहां जाकर क्या करोगे। गुरु महाराज सब देख रहे हैं सब जान रहे हैं पर चुप रहते हैं। एक दफे अगर कह दें कि तुम यह नहीं करते हो तो तुम सोचोगे कि हमारी पोल पट्टी खोल दी और भाग जाओगे।

➔ तत्वों की कमी से बीमारी लग जाती है। इसमे किसी का दोष नहीं है। आपने शिक्षा लेना बन्द कर दिया। जो चाहो खाओ, जैसा चाहे खाओ, जो चाहो पियो। अब तुम दवा खाते हो मेरे पास चले आते हो कहते हो बहुत दवा खाया। जब मैं कहता हूं कि ये दवा खाओ तो तुम्हें सोचना चाहिए कि उसमे दुआ भी मिली हुई है। जब पूछता हूं कि दवा खायी तो ऐसे ही कह देते हो कि खाई थी। विश्वास से कहो कि मैंने खायी। जब तुम्हें विश्वास ही नहीं होगा तो लाभ क्या होगा ?

➔ मैं बराबर कह रहा हूं कि इस समय पर हिंसा बहुत हो रही है। सुअर को दौड़ाकर पकड़ते हैं और उसे उल्टा टांगकर नीचे से आग लगा देते हैं। इतनी क्रूर हत्या ? तुम ऐसी जगह पर खाओगे तो तुम्हें भी पाप लग जायेगा। नहीं मानोगे तो ऐसा समय आ रहा है कि तुम्हारे चिथड़े उड़ जायेंगे। इसलिए कहता हूं कि शाकाहारी हो जाओ।

➔ जो नामदान लेने के बाद शाकाहारी नहीं रहते और खाने पीने लगते हैं उनकी माफी नहीं होती है। कुदरत उन्हें सख्त सजा देती है।

➔ अन्न का बड़ा असर होता है। कोई कुछ देता है तो तुम बिना सोचे समझे खा लेते हो इसलिए तुम्हारा भजन नहीं बनता है, विचार गन्दे हो जाते हैं और तुम गिर जाते हो।

➔ भव सागर से पार जाने के लिये महापुरुष से प्रेम करना होगा। महापुरुष वहीं जो गुरु हैं, जिसकी तीसरी आंख खुली है और परमात्मा से मिलता हो। उनसे प्रेम कर लोगे तो तुम्हारा काम बन जायेगा। अगर नहीं करोगे तो परमार्थ का रास्ता साफ नहीं होगा।

➔ सत्संग में पड़े रहो और आते जाते रहो। सत्संग में पड़े रहोगे तो संसारियों से लाख दर्जा अच्छे हो। जैसे पहाड़ का पत्थर गर्म होता है और पानी का पत्थर ठण्डा रहता है।

➔ अबकी बार भण्डारे में आना तो शीशी में, डिब्बे में, किसी छोटे बर्तन में ढाई सौ ग्राम घी ले आना। वो तुम्हारे ही काम आयेगा। तुम यह समझो कि इसमें कुछ राज है।

➔ तुम कहते हो कि हमसे बात नहीं करते। दो घण्टे तुमको समझाया जाता है ये बात ही तो हम करते हैं। और अलग से क्या बात करोगे ? वही अपना रोना रोओगे। एक बात समझ लो तो बात बन जाये। तुम अपनी हजार बात सुनाते रहते हो मेरी एक नही सुनते। एक बात यही तुमको समझाया जाता है कि अपने मन को समझाते रहो। दुकेली बात कहां है। 

साधन में बैठते हो, मन गुनावन करता रहता है, खोल लेकर बैठे रहते हो तो क्या होगा। मन को समझाओ मनाओ तब मानेगा। अपने साथी से नहीं कहोगे तो कैसे मानेगा। उसके ऊपर तो संसार के विषय विकार का नशा चढ़ा हुआ है। उसको समझाना पड़ेगा, मनाना पड़ेगा। धीरे धीरे वो मानेगा। यह बड़ा प्रबल है जब मन उखड़ता है तो कहता है बस यह कुछ नहीं मुझसे भजन नहीं हो सकता। फिर उसको समझाना पड़ता है। धीरे धीरे वो मान जाएगा

जयगुरुदेव 



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