साधक के प्रति सतगुरु के वचन

⧭ जयगुरुदेव अमृतवाणी ⧭ 

➔ भिखारी बन कर दया लेते हैं। भिखारी को कितना भी बुरा भला कहें, गाली गलौज दें तब भी वो हटता नहीं है जब तक उसे कुछ दे न दिया जाये। इसी प्रकार दरवाजे पर बैठकर दया की भीख मांगते रहो तो वो मालिक दया करेगा।

➔ जो सुबह तुम तीन बजे सेवा करते हो वो पेट के लिए नहीं, दूसरों के लिए है। इससे तुम्हारा गरूर गुमान बनावट चतुराई सब झड़ जाएगी। महात्माओं ने जो अंग रखें हैं सत्संग सेवा के तो उसका कुछ मतलब है। तुम्हें धोने का तरीका है। वो देखते हैं कि तुम्हारी किस तरह से सफाई हो सकती है। कर्मों को धोने का उनका अपना तरीका है। 

➔ खान पान का बहुत असर होता है। एक बार मुझे एक आदमी ने अपने घर रोटी खिलाया। रोटी खाते ही मेरा मन खराब हो गया। तरह तरह के संकल्प विकल्प मन में उठने लगे। मैंने उससे पूछा कि सच बताना कि आटा कहां से लाया। उसने सच बताया और कहा कि यह आटा चोरी का है। मैंने पन्द्रह दिन तक रगड़ की तब कहीं जाकर रोटी का असर गया। लोग इस बात को समझते नहीं है कि खान पान का इतना असर होता है।

नामदान लेकर लोग चले जाते हैं सत्संग नहीं सुना तो कमाई क्या करोगे। दुनिया दारों का रंग चढ़ गया फिर तो पीछे रोना पड़ेगा। फिर कहते हो कि दया कर दीजिए। किस बात की दया की जाए ? तुम्हारे पास कुछ रहा ही नहीं। नापाक दिलों पर दया की जाए तो वो बेकार जाती है।

➔ जो साधक साधन करते हैं, हर वक्त सत्संग सुनते हैं उनके मन में यहीं के गुनावन होते रहते हैं ऐसा क्यों, वैसा क्यों, ऐसा कह दिया वैसा कह दिया तो जो यहां आते नहीं हैं उनका क्या हाल होगा ?

➔ तुम्हारा साधन भजन छूट गया । दूसरों की बातों को तुमने गांठ बांधा और अकारण सबसे बैर हो गया। ऐसा फरक डाल दिया। सत्संगियों को हमेशा सावधान रहना चाहिए। साधन के समय मन वही शक्ल खड़ा करके उसी में उलझ जाता है।

➔ अपने धाम चलने की तैयारी करो। वहां कोई लड़ाई झगड़ा नहीं यहां पराये धाम में तुम सारे दिन मेहनत करते हो दूसरों के लिए।  शाम को तुम्हारी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया जाता है कि तुमने हमारे लिए कुछ नहीं किया। इसीलिए सत्संग में लगे रहो। सत्संग नहीं सुनोगे तो यह संसार तुमको नीचे खीचेगा। तुम बच नहीं सकते हो।

 हमारे  स्वामी जी महाराज कहा करते थे कि जब लड़ाई झगड़ा हो तो चुप हो जाओ। देखो चुप होने का फल कितना मीठा होता है। घटना हो जाती थी तो वो समझा दिया करते थे। जो समझते थे वो बच जाते थे।

➔ यहां नये पुराने सब लोग आते हैं तो क्या सब देवता हैं ? यहां तो सब लोग आयेंगे लेकिन सब महात्मा के लिए नही आते। तुम्हारो लिए आते हैं। तुमसे सटकर बैठेंगे और धीरे से टटोलेंगे और जेब से निकाल लेंगे। तुमको सावधान रहना चाहिए। जब चला जाता है तब चिल्लाते हैं। यह तो एक ऐसा प्लेटफार्म है जहां सब आऐंगे, गंगा जी में चोर डाकू सब स्नान करने जाते हैं।

➔ महात्मा अगर न होते तो उस काल का काम हो गया होता। वो तो महात्मा हैं कि रोके हुए हैं नही तो सारा सामान तैयार रखा है। अगर वो जरा सा मस्तक किसी का घुमा दें तो फटाफट सब खतम। देर क्या लगती है। महात्मा तो सबको मौका देते हैं कि लोग बच जाएं। नहीं मानोगे तो वो तो अपना काम करेगा ही। आबादी कम हो जाएगी तो लोग अपने आप धर्म को मानने लगेंगे। 

➔ इस दुनिया में तुम्हें केवल उदासी ही मिलेगी। यह उदासी की दुनिया ही है। पति, पत्नि, बहू, सास, लड़के, बाप, दोस्त-मित्र सबमें उदासी मिलेगी। इस बात को तुम खूब विचार करके देखो तब पता चलेगा।

➔ पाप कर्म करना तो पाप है ही किन्तु जो पाप कर्मों में किसी का साथ देता है उसे भी सजा मिलती है। उसके यहां तुम्हारी एक एक बात हर क्षण लिखी जाती है और उसी के अनुसार फैसला होता है। इधर इस शरीर से निकाला उधर सजा सुनाई गयी फिर तुरन्त कर्म वासना के अनुसार पशु पक्षियों के शरीर में आत्मा को प्रवेश कर दिया।

➔ लोग अनर्गल दया मांगते हैं। मेरे पास एक फोन आया कि मेरी एक शादी हुई है दया हो जाये दूसरी शादी करना चाहता हूं। अब बताओ तुम कोई बादशाह हो जो शादी करते जाओगे सबको खिलाते जाओगे। एक का तो खर्च उठाना मुश्किल हो रहा है दूसरी शादी की बात करते हो।

➔ आदत छोड़ना चाहते हो तो यहां पर रहो यहां पर ताकत मिलेगी। जो भी सेवा तुमको दी जाये उसको करो। उसमें आलस मत करो। आलस से बड़ा नुकसान हो जाता है। मन का ही सारा खेल है और कुछ नहीं।

➔ यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि खराब आदमी कभी अच्छा नहीं बन सकता। कितने उदाहरण हैं कि खराब से खराब आदमी महात्माओं के साथ जुड़े, अपनी बुराइयां छोड़ी, अपने गुनाहों के लिए इतना रोये कि उनके पाप धुल गये और वो मालिक के भजन में लग गये, प्रभु को प्राप्त कर लिया।

➔ हर एक चीज की अपनी अपनी जगह होती है। अपनी अपनी जगह पर उसकी महत्ता होती  है, सबका आधार होता है। इसीलिए सेवा करो फिर सत्संग करो और फिर भजन में लग जाओ। अब तुम यहां से अलग हो जाओ तो यह बात तुम्हारी है, फंसे रहो संसार के पचड़े में हमारा क्या नुकसान है।

➔ महात्मा बहुत भोले भाले होते हैं। तुम उनका दर्शन करो, उनकी सेवा करो, उनको प्रसन्न कर लो, निश्चल मन से उनको रिझा लो, वो तुम पर प्रसन्न हो जायेंगे, उनकी दया हो जाएगी। उनमें दुनिया की चालाकी नहीं होती। 

–साभार, स्वामी जी ने कहा नामक पुस्तक से
शेष क्रमशः, जय गुरु देव ।


Baba Jaigurudev


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