सही तरीके से किये गए नवरात्रि के व्रत से ही मिलता है स्वास्थ्य लाभ, भौतिक व आध्यात्मिक लाभ...

*जयगुरुदेव*
*प्रेस नोट / दिनांक 07.10.2021*

*सतसंग स्थलः आश्रम उज्जैन, मध्यप्रदेश / दिनांक: 09.अक्टूबर.2018*

*सही तरीके से किये गए नवरात्रि के व्रत से ही मिलता है स्वास्थ्य लाभ, भौतिक व आध्यात्मिक लाभ...*
*- बाबा उमाकान्त जी महाराज*

नवरात्रि एवं उपवास का महत्व, क्यों करें?, कैसे करें?
तथा नवरात्रि के उपवास से शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक लाभ बताने वाले, इस समय के मौजूदा पूरे पहुंचे हुए, भगवान से मिले हुए,
पूज्य संत उज्जैन वाले *बाबा उमाकान्त जी महाराज* ने 09 अक्टूबर 2018 को दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम *(jaigurudevukm)* पर प्रसारित संदेश में बताया कि,
दिल, दिमाग और बुद्धि के शुद्धिकरण के लिए समय-समय पर संत-महात्माओं ने नियम बनाये। ये नौ दिन का समय लोगों के लिए परिवर्तनकारी होता है, तत्वों की इसमें तबदीली होती है।

*शरीर के शुद्धिकरण, ओव्हर हाॅलिंग के लिए ये नवरात्रि का व्रत बना दिया गया है।*
मेहनत करने वाले को हजम हो जाता है क्योंकि उसकी अग्नि तेज रहती है। चालीस बयालीस रोटी तक का नाश्ता करने वाले अब भी मौजूद हैं।
मेहनत नहीं करने वाले को हजम नहीं होता। उनके लिए तो ज्यादा जरुरी है सफाई करना। पेट को साफ़ रखो नहीं तो आंतड़ियों में मल इकट्ठा हो जाता है, सड़ता है और भूख ख़तम हो जाती है। इसलिए शरीर के शुद्धिकरण, ओव्हर हाॅलिंग के लिए ये नवरात्रि का व्रत बना दिया।
लेकिन कुछ लोग फलाहारी को खुद ही मान्यता दे देते हैं और ज्यादा खाते हैं तो पेट और खराब हो जाता है। *ऐसों को कोई फायदा नहीं होता।*

*व्रत रखने का सबसे पहला तरीका क्या है?*
व्रत रखने का सबसे पहला तरीका ये है की नींबू को पानी में निचोड़ो और केवल उसी को पियो। नींबू का काम होता है सफाई करना। कपडे की धुलाई, चूल्हे के बरतन पर लगी चिकनाई, कालिख की सफाई आदि। नींबू में खारापन होता है।
नींबू मनुष्य के लिए अमृत है लेकिन उसका बीज पेट में नहीं जाना चाहिए। बीज जाने से उसके तत्व ख़तम हो जाते हैं। नींबू पानी यदि नौ दिन पी लिया जाए तो शरीर की ओव्हर हाॅलिंग हो जाती है।
जैसे सीजन से पहले बड़ी-बड़ी मशीनों की धुलाई होती है, उनके पार्ट-पुर्जे बदल लिए जाते हैं।

*अमरूद खाने का सही तरीका क्या है?*
ऐसे तो अमरुद भी फायेदेमंद है। ये आंतों को, पेट को साफ़ करता है लेकिन अमरुद का बिना दांत से टूटा साबुत बीज पेट में जाना चाहिए। मल को लपेट कर के वो दाना बाहर निकल देता है।
तो कहा गया कि बीज यदि न हो तो अमरुद जहर होता है। अमरुद के छिलके को ही छील कर खाओ तो नुकसान करता है। उसकी तासीर ठंडी होती है और ऐसे ही खाओ तो फायदा करता है और भून के खाओ तो ज्यादा फायदा करता है।
*दमा के रोगी को खांसी आती है या जुकाम साथ नहीं छोड़ता है तो उसे भूना हुआ अमरुद खिलाओ तो फायदा करता है।*

*शरीर देखने मे भले ही दुबला-पतला लगे लेकिन स्टेमिना - ताकत बढ़ जाती है।*
उपवास से शरीर भले ही देखने में लगे दुबला और कमजोर लगे लेकिन स्टेमिना, ताकत बढ़ जाती है। एक दो दिन तो तकलीफ होती है, फिर सेट हो जाता है। सारा झंझट ख़तम, न खाने का और न लेट्रिन जाने का।

*यदि पूरा न कर पाओ तो ये करो_ _*
यदि न कर पाओ तो थोड़ा सा आलू खा लो। आलू में बड़ी ताकत होती है। वो भी न हो पावे तो खिचड़ी खा लो, एक ही टाइम भोजन कर लो। तो इस पेट को थोड़ा आराम मिल जाता है। ये सब तरीके निकाले जाते हैं।

*पहले के तरीके अलग थे जो अब संभव नहीं हैं।*
पहले लोग अष्टांग योग, हठ योग, प्राणायाम करते थे, कुण्डलिनी को जागते थे। उम्र उस समय ज्यादा होती थी।
पेड़ों पर लटके रह जाते थे, शरीर सूख जाता था लेकिन कामयाबी नहीं मिली तो ये सब करते थे। मई जून की गर्मी में चारों तरफ आग रख के, मटके में आग, सर पर रख के, शरीर को पंचाग्नि देते थे।
लेकिन अभी ये सब नहीं कर सकते। इसलिए संतों ने बहुत ज्यादा सरल किया और इसको ख़तम कर दिया।
*तो इन तरीकों में सब को कुछ न कुछ करना चाहिए।*

*तीन गुण, उनके दमन का तरीका और उससे होने वाला फायदा क्या है?*
दूसरा तत्वों की तबदीली का समय होता है जिसमें तमोगुण, रजोगुण और सतोगुण ख़तम होते हैं।
तमोगुण में आदमी को क्रोध ज्यादा आता है और रजो
गुण में आलस। कितना भी जगा लो, हाँ-हूँ करता रहता है और फिर नाक बोलने लगती है यानी आराम तलबी।
सतोगुण जैसे *“पुण्य पाप जब दोनों नाशे, तब पावे मम पुर वासे"।* तो जो इसमें फंसे रह जाते है कि देवी की पूजा करने हम भी चलें जाएँ, कुछ अपने घर में देवी-देवता बैठाते हैं, जानते ही नहीं की कौन हैं?

जो बाप - दादा, सास - ससुर करते रहे, वही करने में लग जाते हैं। तो जिसको लोगों ने सतोगुणी मान लिए उसी में समय निकल जाता है।
इसलिए इन सबको ख़तम करने की जरुरत है। तो तीन - तीन दिनों में ये तीनों गुण नष्ट होते हैं।
तमोगुण में क्रोध, काम वासना, लोभ - मोह कम होता है। रजोगुण में पेट खाली रहता है तो आलस ख़तम होता है तो भजन और शब्द के पकड़ने में मन लगता है। और ये पूजने वाले देवी - देवता जब अंतर में दिखाई देतें है तो विश्वास हो जाता है।
फिर जिसको उसने सतोगुण मान लिए, वो ख़तम और *जो मालिक के असली गुण पकड़ लेता है उसका काम बन जाता है।*

*अब इसका आध्यात्मिक लाभ क्या है?*
क्वाँर और फिर चैत्र में व्रत। इसका मतलब समझा जाए तो बड़ा ही महत्वपूर्ण है। स्वास्थ और पूजा उपासना, आध्यात्म की दृष्टि से भी।
जैसे दुनिया के लोग पूजा करते हैं, भूत - प्रेत छुडाते हैं, ऐसे ही सत्संगियों के लिए भी ये ध्यान भजन का एक अच्छा मौक़ा होता है, खाली पेट रहने से मन उधर लगता है।

*तो आप सभी जो इस सन्देश को सुनें, देखें, पढ़ें सबके लिए, समझ लो, उपयोगी समय है, फायदा उठाओ।*




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