नये जिज्ञासुओं के लिए [21.]
रुहानी सफर यानी आध्यात्मिक यात्रा में थोड़ा समय जरुर लगता है, क्योंकि मार्ग में आने वाले नजारे साधक को रोक लेते हैं या कुछ कारणों से उन्नति रुक जाती है या कर्मों के पर्दे चढ़ जाने से अनावश्यक बोझ लेकर चलने में रुकावट होती है।
यह उस दिन से दुखी हो गयी जिस दिन से इसने शब्द को भुला दिया उससे बिछुड़ गयी। अन्तर में उस शब्द को पकड़ने की साधना को अर्थात् अंतर्ध्वनि सुनने को ही भजन कहते हैं।
अगर साधना के वक्त उस आवाज को यह पकड़ ले और उसमें लीन रहे और इसे छोड़कर इधर उधर न देखे और संसार को बिल्कुल भुला दे तो फिर ऐसी कोई शक्ति नहीं जो जीवात्मा को क्षण भर के लिए भी यहां रोक रक्खे या रास्ते में रुकावट डाले।
इस संसार की याद इसे नीचे खींच लाती है और इसे नीचे दबाये रखती है तथा आन्तरिक मण्डलों के नजारे इसे शब्द धुन से अलग कर देते हैं।
मन को इस संकरी गली से ले जाने के लिए इस तंग दरवाजे के सामने लाना होगा और इसके द्वारा इस दरवाजे में घुसने के लिए संघर्ष कराना होगा।
अपने वास्तविक संघर्ष और अनुभव से बहुत शीघ्र पता चल जाएगा कि इसे अन्तर जाने में क्यों रुकावट होती है। तभी ये अपने साथ लिए हुए अनावश्यक बोझ की व्यर्थता को महसूस करेगा और उसे फेंकना आवश्यक समझकर उसे फेंक देगा।
तब ये हल्का यानी सूक्ष्म और विनम्र हो जाायेगा और बहुत आसानी से संकरी गली से पार हो जायेगा।
मन अभी इस संसार में काम कर रहा है और इन्द्रियों द्वारा इससे अपना सम्बन्ध बनाये हुए है।
महापुरुषों के सत्संग से समझ में आयेगी, चेतना आयेगी और फिर लगन के साथ अभ्यास में बैठने पर आन्तरिक जगत की यात्रा करना संभव हो सकेगा।
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1 टिप्पणियाँ
Jai guru dev सभी धर्म प्रमेयों को सादर जय गुरुदेव 🙏
जवाब देंहटाएंJaigurudev