परम् पुरुष पूरण धनी, गरीब साहब जी ने फरमाया [20.]

*अमृत वाणी*  

*121. स्वामी जी! सत्संग का क्या मतलब होता है ?*

उत्तर -  सत्त का साथ ही सत्संग है। संत सतगुरु के साथ तुुम बैठे हो यह सत्संग है। सत्त सतगुरु में प्रकट है और तुम्हारा मिलन हो रहा है। 
सतगुरु जहां उपदेश करते हैं, वह भी सत्संग है क्योंकि उनके मुख से जो वाणी या वचन निकलते हैं वो सत्य हैं और अटल हैं।

दूसरा मतलब यह भी है कि जहां सत्संगी मिल बैठकर पाठ प्रार्थना करें गुरु की याद, चर्चा करें,  भजन ध्यान करें वह भी सत्संग है।  गुरु का आदेश उससे जुड़ा हुुआ है ।  यद्दपि गुरु वहां विद्यमान शरीर से नही है किन्तु शब्द रूप में गुरु वहां मौजूद हैं और सब कुछ देखते रहते हैं।

यहां कोई कर्मकाण्ड नहीं।  *सत्संग में नेता बनने की भावना नही होनी चाहिए।  सत्संग में एक ही नेता होता है और वह है गुरु।  सत्संगी का मुख्य लक्ष्य भजन करनेे का होना चाहिए। यही उसकी आध्यात्मिक सफलता की कुुजी है।


*प्रश्न-122.  स्वामी जी जीविक करम कितने प्रकार के हैं और क्यों कर भुगताये जाते हैं। ?*

उत्तर-  जीविक करम के तीन हिस्से हैं, इनका भण्डार त्रिकुटी में है। यह करम सतगुरु अपनी दया से काट देते हैं।  
दोयम प्रारब्ध करम जिनको भुगतने के लिये देह मिलती है। यह करम सतगुरु भगत को भुगताये जाते हैं। शरीर छूटने पर यह भी खत्म हो जाते हैं।  इनका हिसाब सहसदल कंवल में रहता है। 

तीसरे क्रियामान कर्म जो इस देह में जीव और नये शुभ अशुभ करम कर बैठता है, इनमें से कुछ अब भुगताये जाते हैं कुछ अगली प्रारब्ध में शामिल होते हैं और बाकि संचित कर्मों में इन क्रियामान करमों का मैल अन्तःकरण पर रहता है।


*प्रश्न-123.  स्वामी जी सत्संगी को कैसे कर्म करने चाहिए?*

उत्तर-  संतमत के सतसंगी और अभ्यासी 
को निश कर्म बनना चाहिए क्योंकि करम भुगतने के लिये देह धरनी पड़ती है और बेड़ी सोने की भी बुरी और लोहे की भी बुरी।  
शुभ करम करे, मगर फल की आसा रख के न करें।


*प्रश्न 124. - स्वामी जी मौत के वक्त प्राणों के निकलने का रास्ता सब के वास्ते एक ही है या जुदा-जुदा ?*

उत्तर-  मौत के वक्त श्रेष्ठ पुरुषों के प्राण तीसरे तिल में से सुखमना 
फोड़कर निकलते हैं। 
दूसरे दरजे के जीवों के प्राण नेत्रों में से, तीसरे दर्जे के जीवों के प्राण कानों में से, चौथे दर्जे के नाक या मुंह के रास्ते।  जो मलीन जीव हैं उनके प्राण गुदा और इंद्री के द्वारों से और संत और पूरे साधु अपने प्राणों को खींचकर प्राण भण्डार त्रिकुटी में लय कर देते हैं,  पिंड के द्वारों से नहीं निकलने देते। 


*प्रश्न- 125.  स्वामी जी! अंतर में सब धनी सतगुरु की मौज में राजी हैं या नहीं ?*

उत्तर- अंतर के सब धनी सत पुरुष और सतगुरु के हुक्म और रजा में राजी हैं सिर्फ निरंजन अपने
देश 
में दूसरे का दखल पसन्द नहीं करते मगर हुक्म उनका वह भी नहीं टालते।


*प्रश्न-126.  स्वामी जी ! अन्तर के धनी जीव को मदद देते हैं या नहीं ?*

उत्तर- सतगुरु के अपनाये जीव को यह धनी ऊपर चढने की मदद देते हैं और जिस की डोर काल के हाथ है उस को कुछ अरसे विश्वास देकर काल उस को कुछ अरसे श्रिम देकर नीचे ही भेज देते हैं और बगैर महात्माओं के निचले मुकामों पर पहुंचना भी मुश्किल है।

-अंतर्ध्वनि नवम्बर 2012जय गुरु देव ---

शेष क्रमशः पोस्ट न. 21 में पढ़ें  👇🏽

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