*जयगुरुदेव : साधक विघन निरुपण 5*
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● ऐसी अवस्था में साधक को और तेजी के साथ साधन करना चाहिए ताकि अन्तर में शब्द की धारा जारी हो जावे।
● मनुष्य अपने स्वभाव के अनुसार कुत्ते की गति में चल रहा है।
● जो मनुष्य काम के वशीभूत है वह कामी कुत्ता है उसे हड्डी से मोह रहेगा और हड्डी में रस नहीं होगा।
● जब साधक गुरु कृपा से तीसरे तिल में पहुंच जाता है और तिल को विरह अंग लेकर फोड़ देता है तब साधक की सुरत लिंग देश में पहुंचना शुरु करती है।
● साधक की सुरत गुरु कृपा से तीसरे तिल पर टिकने लगे उस वक्त ऐसा मालूम होता है कि हमने गुरु से प्रश्न किया और तुरन्त उत्तर दे दिया।
● साधक की सुरत जब तिल फोड़ लेती है और स्वर्ग बैकुण्ठ धाम या शक्ति लोक की तरफ चढ़ना प्रारम्भ करती है उस समय साधक के गिरने के अनेक साधन बनना शुरु हो जाते हैं।
● एक तो साधक को सिद्धि प्राप्त होती है जो कि अनेकों प्रलोभन साधक को देती है। अनेक मन मोहनी सूरतें नजर आनी शुरु होती हैं। साधक ने इतना मन मोहक रूप नही देखा है।
19 *अन्तर की रचना*
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● एक सुन्दर स्त्री यहां पर यदि किसी साधक की निगाह में आ जावे तो साधक उसकी ओर बहुत देर तक देखता है और जो विकार पैदा हुआ है देखकर वह जल्दी नहीं जाता है।
● साधक कहता है कि मैं इनको देखता रहूं चाहे गुरु मुझसे छूट जावे पर हम इनको नहीं छोड़ेंगे।
● वह सुन्दर स्त्रियों के लोक हैं। गुरु को सदा के लिए साधक त्यागना पसन्द करता है परन्तु उनके पास से नहीं हटना चाहता है।
● दिल सदा चाहता है कि यहां से हटूं नहीं। इन्ही की छवि को देखता रहूं। जब वहां की मन मोहनी महामाया साधक के मन को खींच लेती है उस वक्त मण्डल पर बड़े बड़े दृश्य नजर आने लगते हैं जो कि माया के बने होते हैं।
● ब्रह्मा, विष्णु और शिव को हुक्म होता है कि तुम अपनी कला के द्वारा साधक को हमारी ओर मत आने देना।
● साधक को साधना में बड़े बड़े डान्स (नृत्य) नजर आते हैं। कभी-कभी ऐसा होता है कि आंखों के सामने स्त्रियां आ जाती हैं और उनके नाच होने शुरु होते हैं। साधक ऊपर नीचे दायें बायें देखता है तो उन्हीं मोहनी शक्लों को देखता है और उनके साथ बिहार करता है।
● आप किसी क्लब में जाओ जहां पर अंग्रेजी नृत्य होता हो वहां से आपका मन नहीं हटता और दौड़कर लोग रोज जाते हैं।
20 *बाधक माया*
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★ साधक के लिये बड़ी कठिनाई है जब कि चेतन माया अपना खेल दिखाकर अपना हाथ गले में डाल देती है। वहां स्त्रियों का हाथ अति मुलायम है।
★ साधक किसी हालत में माया से छुटकारा नहीं पा सकता है। जब माया ने साधक के मन पर अधिकार जमा लिया और माया ने समझ लिया कि गुरु इनके यहां से उठ गया उसी समय माया अनेक फुरना पैदा करके साधक को वहां से भी गिरा देती है।
21 *साधक की अवस्था*
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★ साधक की कैसी अवस्था होती है जैसे कामी कुत्ता क्वांर के महीने में पागल होकर चारों तरफ काम के वशीभूत होकर नाचता है।
22 *गुरु की जरुरत*
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◆ साधक को गुरु की इसलिए जरुरत है। जब सुरत गुरु कृपा से तीसरा तिल फोड़ेगी उस वक्त शक्तियां साधक के पास गिराने हेतु आवेंगी। यदि गुरु समरथ है तो साधक को बचा लेगा नहीं तो साधक अपनी साधना से गिर जायेगा।
◆ एक तो साधक बगैर गुरु के नाशवान संसार नहीं छोड़ता है। गुरु ने साधक के साथ बहुत जबरदस्त कृपा की और कुछ समय में जाकर संसार से बैराग कराकर साधना में लगाना चाहा तो साधक के लिए अनेक विघ्न अन्दर और बाहर हैं।
23 *जाति बिरादरी*
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◆ जब साधक गुरु के पास गया और सतसंग करना शुरु कर दिया और कुछ समझ परमार्थ की आनी शुरु हुई और संसार नाशवान मालूम पड़ने लगा और कुछ काम संसार का कम किया कि उसी वक्त घर वाले कुटुम्ब जाति बिरादरी वाले पहुंचने लगे।
◆ अनेक प्रकार के वचन सुनाना शुरु किया तुमने जाति छोड़ी, अपने बिरादरी से मुख मोड़ा। तुम्हे लज्जा अब समाज की नहीं है। तुमने बेधर्म रास्ता अपना लिया और महात्मा अच्छे नही हैं दूसरे गुरु कर लिया। अब अपनी जाति में तुमने कलंक लगा दिया तुम्हें शर्म आनी चाहिए। छोड़ दो वह रास्ता।
जयगुरुदेव ★
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1 टिप्पणियाँ
सतगुरु की महान कृपा हम सब पर हो, जय गुरुदेव।JAIGURUDEV
जवाब देंहटाएंJaigurudev