70. Meri naiya bhavar me fasi hai
जयगुरुदेव प्रार्थना
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मेरी नैया भंवर में फंसी है,
हाथ आता किनारा नहीं है |
सतगुरु पार कर दो दयाकर,
और कोई सहारा नहीं है ||
ईश्वर ने रचा दी है माया,
जन्म देकर जगत में फंसाया|
गुरु तुम ही निकलोगे इससे,
और कोई भी चारा नहीं है ||
ये सुना है अजामिल और सदना,
ऐसे पापी भी तो तर गये हैं |
कौन है जो शरण आ गया हो,
और गुरु ने उबारा नहीं है ||
मेरे मन में लगन है तुम्हारी,
मेरे ह्रदय में बस जाओ स्वामी |
ध्यान में रूप देखूं तुम्हारा,
और कोई रूप प्यारा नहीं है ||
दीन हूँ हीन हूं कोई शक्ति
और
सामर्थ्य मुझमे नहीं है|
हो सकेगा न साधन भजन कुछ,
जो सहारा तुम्हारा नहीं है ||
मैने ली है शरण अब तुम्हारी,
भीख दे दो मुझे अब दया की|
हाथ जिसका भी पकड़ा है तुमने,
पार किसको उतारा नहीं है ||
मेरी नैया भंवर में फंसी है,
हाथ आता किनारा नहीं है |
सतगुरु पार कर दो दयाकर,
और कोई सहारा नहीं है ||
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71. Mujhe gurudev charno me
जयगुरुदेव प्रार्थना
मुझे गुरुदेव चरणों में,
लगा लोगे तो क्या होगा।
भटकती सुरत को पावन,
बना दोगे तो क्या होगा।।
न समरथ तुम सदृश्य कोई,
है आया दृष्टि में मेरी।
शरण में इससे आया हूं,
बचा लोगे तो क्या होगा।।
तुम्हारे द्वार से कोई,
कभी खाली नहीं जाता।
मेरी झोली भी भर कर के,
उठा दोगे तो क्या होगा।।
दयालु दीन बन्धु नाम,
तेरे लोग कहते हैं।
दया कर तुच्छ सेवक यदि,
बना लोगे तो क्या होगा।।
जानता हूँ कि इसके योग्य भी,
मैं हूं नहीं स्वामी।
हो पारस लोहे को कंचन,
बना दोगे तो क्या होगा।।
बहुत बीती रही थोडी,
वो यह भी जाने वाली है।
उस अंतिम स्वांस लौ अपना,
बना दोगे तो क्या होगा।।
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72. Mujhe hai kam satguru se
जयगुरुदेव प्रार्थना
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मुझे है काम सतगुरु से,
जगत रूठे तो रूठन दे।।
कुटुम्ब परिवार सुत दारा,
मान धन लाज लोकन की।
गुरु का भजन करने में,
अगर छूटे तो छूटन दे।।
करूँ कल्याण मैं अपना,
बैठ सत्संग सन्तन के।
लोग दुनिया के भोगों में,
मौज लूटे तो लूटन दे।।
लगी मन में लगन मेरे,
गुरु का ध्यान करने की।
प्रीत संसार विधियों से,
अगर छूटे तो छूटन दे।।
धरी सिर पाप की मटकी,
मेरे गुरुदेव ने झटकी।
वो ब्रह्मानन्द ने पटकी,
अगर फूटे तो फूटन दे।।
मुझे है काम सतगुरु से,
जगत रूठे तो रूठन दे।।
जयगुरुदेव....
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73. Mujhe satguru jara apni
जयगुरुदेव प्रार्थना
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मुझे सतगुरु जरा अपनी,
मधुर बंशी सुना देते।
जिसे सुनकर के मस्ती में,
ये दुनिया हम भुला देते।।
यहां रहता न कुछ अपना,
समर्पण आपको करते।
ये बोझा मेरे तेरे का,
सभी अपना मिटा देते।।
जिधर भी कान जाते ये,
उधर ही धुन तेरे सुनते।
दुखी दुनिया के हाहाकार,
पीड़ायें न सुन पाते।।
कलह दुख से भरे संसार को,
आंखे न अब देखें।
तुम्हारी सत्य दुनिया की,
ये आखें सत्यता देखें।।
कुछ आकर्षण तुम्हारी तान में,
सतगुरु सुने ऐसे।
जिसे सुनते ही प्रेमी जन,
तेरे दरबार में पहुंचे।।
न गम उनको सताता है,
खुशी करती कदम पोशी।
तुम्ही में अपनी हस्ती को,
मिटाकर तुमही तुम होते।।
दयालू कर दया मुझ दीन की
विनती ये सुन लेते।
सुना करके मधुर वह तान
अपने में मिला लेते।।
मुझे सतगुुरु जरा अपनी
मधुर बंशी सुना देते।
जिसे सुनकर के मस्ती में
ये दुनिया हम भुला देते।।
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74. Mujhe charno ka das
जयगुरुदेव प्रार्थना
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मुझे चरणों का दास बना लो गुरु,
मुझे निज कर के अपना लो गुरु।
जुगन जुगन का सोया मनुआ,
वचन सुना के जगा दो गुरु।
मेहर होय मन लागे चरण में,
मेरे पूरण भाग बढ़ा दो गुरु।
दृढ़ प्रतीत प्रीति हिये लगे,
मोहि प्रेम का प्याला पिला दो गुरु।
रूप अनुपम लखु तुम्हारा,
मोहि अन्तर में दरसा दो गुरु।
औघट घाट अगम का द्वारा,
मेरा बज्र कपाट खुला दो गुरु।
बार बार वीनती मेरी,
आज शब्द से सुरति मिला दो गुरु।
पूरन दया करो मेरे दाता,
अब जाल से खूंट छुटा दो गुरु।
नैया पड़ी भंवर बीच मेरी,
अबके पार लगा दो गुरु।
भौ सागर की धार कठिन है,
मोई मेहर से पार करा दो गुरु।
कोटि जनम दुख पावत बीते,
दे दर्शन प्यास बुझा दो गुरु।
सरन-सरन मैं सरन पड़ा हूं,
मुझे शब्द का भेद बता दो गुरु।
काम क्रोध मद लोभ मोह से,
मेरी जल्दी फांस कटा दो गुरु।
माया काल ने अति भरमाया,
इनका जाल मिटा दो गुरु।
विषय भोग जग के दुखदाई,
मेरे मन को इनसे हटा दो गुरु।
इन्द्री पांच तीन गुन बौरी,
मेरे घट से जोर घटा दो गुरु।
मन रसिया को चाट विषय की,
इसे शब्द का चाट चटा दो गुरु।
जन्म-जन्म दुख पावत बीते,
मेरा आवागमन मिटा दो गुरु।
भूल भरम और करम हटाकर,
मेरी जड़ से गांठ खुला दो गुरु।
सहस कंवल दल जोति लखाकर,
मुझे घंटा शंख सुना दो गुरु।
बंकनाल होय त्रिकुटी गढ़ पर,
मुझे गुरु का रुप दिखा दो गुरु।
महा सुन्न हो भंवर गुफा पर,
मुझे बंशी की तान सुना दो गुरु।
सत्तलोक सतनाम निरख कर,
मुझे बीन की धुन दरसा दो गुरु।
अलख अगम का रूप दिखाकर,
मुझे जयगुरुदेव धाम वसा दो गुरु।।
मुझे चरणों का दास बना लो गुरु,
मुझे निज कर के अपना लो गुरु।
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