*【 अति_महत्वपूर्ण_शब्द 】* [16]

जयगुरुदेव

*प्रश्न -89  स्वामीजी! भजन- सुमिरन का सबसे अच्छा वक्त कौन सा है?*

उत्तर- भजन सुमिरन का वक्त सबसे अच्छा रात के दो बजे से सुबह के आठ बजे तक और दूसरा रात के सात बजे से ग्यारह बजे तक। इस वक्त में रस अन्तरी ज्यादा मिलता है क्योंकि यह सतोगुणी समय है।

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*प्रश्न -90  स्वामी जी  ! जिन जीवों को सतगुरु की शरण प्राप्त नहीं है उन बेचारों की क्या दशा होगी ?*

उत्तर- जिन जीवों को सतगुरु की शरण प्राप्त नहीं है, उनके सिर पर संचित कर्म कायम रहे और प्रारब्ध में कोई रक्षक नहीं। वह भी पूरे भोगने पड़ेंगे और जो मन मत से क्रियामान किये वह कुछ अब भोगेंगे, कुछ आयन्दा।

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*प्रश्न -91  स्वामी जी! सन्त सतगुरु के चरणों में कितने प्रकार के जीव लगते हैं और उनकी क्या पहचान है। और वह कौन से हैं जो नहीं लगते ?*

उत्तर- सन्त सतगुरु की सेवा में पांच किस्म के जीव आते हैं, वह यह हैं-

*1. अव्वल उत्तम जीव-*
यह प्रेम के साथ उपदेश के मुआफिक अन्तर मुख कमाई में लग जाते हैं, हमेशा ऊंच नीच सेवा में आशिक रहते हैं। इनकी प्रीत जल मछली के समान होती है। इनमें से गुरुमुख निकल आते हैं।

*2. दोयुम मधम जीव-*
यह सतगुरु सेवा में तो अच्छी तरह लग जाते हैं मगर भजन सुमिरन मौका मिला तो कर लिया, न मिला तो न किया।

*3.  सोयुम निकृष्ट जीव-*
यह कुछ भजन सुमिरन तो करते हैं मगर बाहरी सेवा की तरफ तवज्जह वेबजह अहंकार या शरम दुनियादारी या फजूल समझ कर नहीं करते।

*4. चहारुम नीच जीव-*
यह सतगुरु की टेक में पक्के हैं मगर भजन नहीं करते।

*5.  पाँचवे सठ जीव -*
यह सेवा मे रगबत नही रखते और न भजन करते हैं। सरन और विश्वास में भी डांवाडोल रहते है, सिर्फ देखा देखी करते है। बाकी तीन दरजे के जीवों को यानी खल, पामर और मूर्ख को संत चरणों में नहीं लगाते। बमूजिब अधिकार कायदा यह है कि उत्तम, मधम सतगुरु के अधिकारी हैं।  
निकृष्ट और नीच सिरोमन साधु के और सठ शब्द अभ्यासी प्रेमी सतसंगी के । उत्तम, मध्यम, निकृष्ट जीव का जब चोला छूटता है तो सतगुरु अन्तर में उसकी खुद सम्हाल करते हैं। नीच और सठ जीव की सम्हाल धनी से करवाते है। धनी सतगुरु को इत्तला दे देते हैं।


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*प्रश्न - 92.  स्वामीजी! संत अपने जीवों का अन्तः करण क्या सेवा लेकर साफ करते हैं।*

उत्तर- संत अपने जीवों का अन्तःकरण साफ करने के लिए उनके कर्मो के मुआफिक सेवा लेते हैं।
जिसने तन से पाप ज्यादा किये है, उससे तन की सेवा ज्यादा लेते हैं, जिसने धन से पाप ज्यादा किये हैं,  उससे धन कि सेवा ज्यादा लेते है, जिसने मन से पाप ज्यादा किये हैं,  उससे मन कि सेवा ज्यादा लेते हैं।
जिसने वचन से पाप ज्यादा किये हैं,  उससे वचन कि सेवा यानि वाणी का पाठ बगैरा करा कर और दीनता कराकर सेवा लेते हैं।

जब सतसंगी इन चारों कर्मों से साफ हो जाता है तब अधिकारी सुरत निरत कि सेवा का होता है, सुरत निरत कि सेवा लेकर अन्तर में चलाना शुरु कर देते हैं।


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*प्रश्न -93.  स्वामीजी! नरतन छोड़कर जीव को पूरी चौरासी भोगनी पड़ती है या जीव बीच में से भी लौट आता है ?*

उत्तर- नरतन छोड़कर कोई-कोई जीव पूरी चौरासी भुगतते हैं, अकसर तो बीच से ही शुभ कर्मों कि बदौलत गाय कि जून में आ जाते हैं  और नरतन मिल जाता है। दूसरा सबब यह होता है कि संत साध कि दया हो जाती है तो एकदम नरतन मिल जाता है।


जयगुरुदेव °★
शेष क्रमशः पोस्ट न. 17 में पढ़ें  👇🏽

सतगुरु शान्ति वाले तुमको लाखों प्रणाम 

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