जयगुरुदेव आरती
16
★ *Charan Sharan Ki Vandana* ★
चरण शरण की वन्दना, नित कोई और न काम।
गुरु बसो चित्त आय मेरे, बख्श दो निज नाम।।
तेरी शरणागत हुआ, फिर किस की राखूं आस।
आस तो तेरी दया की, जग से रहूं उदास।।
रूप ध्याऊं नाम गाऊं, शब्द राता मन।
आठों याम तेरा ही सुमिरन, भाग मेरा धन।।
सीस पर निज कर कमल धर, लिया चरण लगाय।
पतित पापी तर गया, गुरु शरण तेरी आय।।
मुक्ति की नहीं चाह मन में, भक्ति प्यारी लाग।
राधास्वामी की दया से, भाग पूरण जाग।।
17 आरती
★ *Aarti Aage Radha Swami Ki Keeje* ★
आरती आगे राधास्वामी की कीजै।
विमल प्रकाश अमी रस पीजे।।
चित्त कर चन्दन हित कर माला।
आन चढ़ाऊं स्वामी दीनदयाला।।
गगन का थाल सुरत की बाती।
शब्द की जोत जगे दिन राती।।
सहस कंवल दल घण्टा बाजे।
बंक नाल धुन शंख सुनीजे।।
औंकार धुन त्रिकुटी साजे।
सुन्न शिखर अक्षर धुन गाजे।।
भंवर गुफा ढ़िग सोहंग बासा।
सतलोक सतनाम निवासा।।
दास आपमी आरती गावें।
चरण कंवल में बासा पावें।।
दया करो मेरे साइयां, देओ प्रेम की दात।
दुःख सुख कुछ व्यापे नहीं, छूटे सब उत्पात।।
18. ★ *Jyoti se jyoti jalao* ★
जय गुरु देव आरती
अंतर तिमिर मिटाओ, सतगुरु ज्योत से ज्योत जलाओ।।
हे योगेश्वर हे परमेश्वर कृपा दृष्टि बरसाओ,
सतगुरु ज्योत से ज्योत जलाओ।।
हम बालक तेरे द्वार पे आये, मंगल दरश कराओ,
सतगुरु ज्योत से ज्योत जलाओ।।
अंतर मे युग युग से सोई, चितशक्ति को जगाओ,
सतगुरु ज्योत से ज्योत जलाओ।।
साची ज्योत जले हृदय मे, सोहं नाद जगाओ,
सतगुरु ज्योत से ज्योत जलाओ।।
शीष झुकायें करें तेरी आरती, प्रेम सुधा सरसाओं
सतगुरु ज्योत से ज्योत जलाओ।।
जीवन में परमात्मा अविनाशी, चरनन शरण लगाओ,
सतगुरु ज्योत से ज्योत जलाओ।।
19. ★ *Bhog dhare satguru swami* ★
भोग धरे सतगुरु स्वामी आगे।
लीन्हे व्यंजन भाव से पागे।।
नभ मण्डल में बजा है नगारा।
सात्विक भोजन है यह सारा।।
काल करम को हटाओ छिन में।
भक्ति शक्ति लाओ अब मुझ में।।
मुझ में अभाव आवे नहीं कबहीं।
गुरु जी भोग लगाओ अबहीं।।
भोग धरा जयगुरुदेव स्वामी आगे।
करो प्रसाद अमीय रस आके।।
20. ★ *Kaise me arti karu* ★
कैसे मैं आरती करूं तुम्हारी,
महा मलिन स्वामी देह हमारी।।
मैला धरती मैला अकाशा, मैला पांच तत्व के बासा।।
मैला से उपजा संसारा, मैं मैला गुण गाउं तुम्हारा।।
झरना जरे दशों दिशी द्वारे,
कैसे मैं आऊं स्वामी शरण तुम्हारे।
जो प्रभु देहु अग्र की देही,
तब हम पावे स्वामी नाम सनेही।।
मलिया गिरी पर बसत भुजंगा,
विष अमृत रहे एक ही संगा।
तिनुका तोड़ देहु परवाना,
तब हम पावे स्वामी पद निर्वाना।
धनी धर्मदास कबीर बल गाजे,
गुरु प्रताप से आरती साजे।।
। जयगुरुदेव ।
एक टिप्पणी भेजें
0 टिप्पणियाँ
Jaigurudev