◆ *जयगुरुदेव चेतावनी* ◆ 7.
*Anmol tera jeevan*
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किस ओर तेरी मंजिल, किस ओर जा रहा है।।
पल भर का क्या भरोसा कहीं जां निकल न जाय।।
किस ओर तेरी मंजिल, किस ओर जा रहा है।।
सुख में सभी हैं साथी, कोई नहीं है तेरा।
तेरा ही मोह तुझको कब से रुला रहा है।
किस ओर तेरी मंजिल, किस ओर जा रहा है।।
खोलो जो दिल का दर्पण, इस घर में ही खुदा है।।
सुख रूप होके भी तू, दुःख आज पा रहा है।
किस ओर तेरी मंजिल, किस ओर जा रहा है।।
इस हाथ जो दिया, उस हाथ जाके लेगा।
कर्मो की है खेती, फल आज पा रहा है।
किस ओर तेरी मंजिल, किस ओर जा रहा है।।
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गुरु का ध्यान कर वरना पछतायेगा।
जिन्दगानी का कोई भरोसा नही।।
चक्रवर्ती हरिश्चंद्र को देखिए।
जो थे राजा कभी रंक वो बन गए,
राजधानी का कोई भरोसा नहीं।।
आदमी बन रहा आज भगवान है।
ऐसी दुनिया से बचके ओ भक्तों चलो,
ऐसी दुनिया का कोई भरोसा नहीं।।
आगे पतझड़ खड़ा ये भी सोच ले।
खिलने वाला हर एक फूल मुरझायेगा,
फिर सुहानी का कोई भरोसा नहीं।।
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ता दिन तेरे तन तरुवर के,
सबै पात झड़ि जैहैं।।
जा दिन मन पंछी उड़ि जइहैं।।१
स्यार काग गिध खइहैं।।
जा दिन मन पंछी उड़ि जइहैं।।२
कहं रंग रुप दिखइहैं।।
जा दिन मन पंछी उड़ि जइहैं।।३
सो तेहि देखि डरइहैं।।
जा दिन मन पंछी उड़ि जइहैं।।४
देवी देव मनइहैं।।
जा दिन मन पंछी उड़ि जइहैं।।५
शीश फाड़ बिखरइहैं।।
जा दिन मन पंछी उड़ि जइहैं।।६
भूत भये घर खइहैं।।
जा दिन मन पंछी उड़ि जइहैं।।७
संतन में कछु पइहैं।।
जा दिन मन पंछी उड़ि जइहैं।।८
जम के मारग जइहैं।।
जा दिन मन पंछी उड़ि जइहैं।।९
जा दिन मन पंछी उड़ि जइहैं।।१०
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बिन मुहूरत के उठाली जाएगी।।
करते थे दावे किताबे खोलकर।
यह दवा हरगिज न खाली जायेगी।
बिन मुहूरत के उठा ली जाएगी।।
मरते दम लुकमान भी ये कह गया।
यह घड़ी हरगिज न टाली जायेगी।
बिन मुहूरत के उठाली जाएगी।।
पीछे है मालिक खड़ा वो होशियार।
मारकर गोली गिराली जाएगी-
बिन मुहूरत के उठाली जाएगी।।
यह किराए पर मिला तुझको मकां।
कोठरी खाली करा ली जाएगी,
बिन मुहूरत के उठाली जाएगी।।
कैसे मुकरोगे वहाँ पर तुम जनाब।
जब वही तेरी निकाली जाएगी।
बिन मुहूरत के उठाली जायेगी।।
बिन मुहूरत के उठाली जाएगी।।
जयगुरुदेव चेतावनी 34
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उठके भजनिया मे लाग री मेरी सुरत सुहागन ।।
जाग री मेरी सुरत सुहागन...२।।
उठत मधुर धुन राग री मेरी सुरत सुहागन ।।
जाग री मेरी सुरत सुहागन...३।।
भक्ति अचल वर मांग री मेरी सुरत सुहागन ।।
जाग री मेरी सुरत सुहागन...४।।
जगत पीठ दे भाग री मेरी सुरत सुहागन ।
जाग री मेरी सुरत सुहागन ।।५।।
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भली बताई बाता।
जग में गुरु समान नहीं दाता।।
लोभ को लीन्हों नाथा।
जग में गुरु समान नहीं दाता।।
फेरि मिले न यह साथा।
जग में गुरु समान नहीं दाता।।
भुगतो दिन औ राता।
जग में गुरु समान नहीं दाता।।
करि ले सन्तन साथा।
जग में गुरु समान नहीं दाता।।
काल नवावै माथा।
जग में गुरु समान नहीं दाता।।
परदा खोल मिलो सतगुरु से,
उतरो भव जल पारा।
जग में गुरु समान नहीं दाता।।
मानो बचन हमारा।
जग में गुरु समान नहीं दाता।।
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जगत प्रीत मत करिओ।।
हरि बाधा से डरिओ रे मनवा,
हरि बाधा से डरिओ।।
झूठी माया झूठी छाया।
या पीछे मत पड़िओ रे मनवा,
जगत प्रीत मत करिओ।।
इसके पीछे मत तू होना।
गुरु चरण चित्त धरिओ रे मनवा,
जगत प्रीत मत करिओ।।
पागल मन यहां न फंस जाना।
नहीं तो जिन्दा मरिओ रे मनवा,
जगत प्रीत मत करिओ।।
मत करिओ जग से मन मैला।
भव से पार उतरिओ रे मनवा,
जगत प्रीत मत करिओ।।
जगत प्रीत मत करिओ।।
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Jaigurudev