◆ *जयगुरुदेव चेतावनी* ◆ 7.

Chetavni 30 
*Anmol tera jeevan*
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अनमोल तेरा जीवन यूं ही गंवा रहा है।
किस ओर तेरी मंजिल, किस ओर जा रहा है।।

सपनों की नींद में ही यह रात ढल न जाय।
पल भर  का क्या भरोसा कहीं जां निकल न जाय।।
गिनती की हैं श्वांसे, यूं ही लुटा रहा है।
किस ओर तेरी मंजिल, किस ओर जा रहा है।।

ममता के बंधनों ने, क्यों आज तुझको घेरा।
सुख में सभी हैं साथी, कोई नहीं है तेरा।
तेरा ही मोह तुझको कब से रुला रहा है।
किस ओर तेरी मंजिल, किस ओर जा रहा है।।

जब तक है भेद मन में, भगवान से जुदा है।
खोलो जो दिल का दर्पण, इस घर में ही खुदा है।।
सुख रूप होके भी तू, दुःख आज पा रहा है।
किस ओर तेरी मंजिल, किस ओर जा रहा है।।

जायेगा जब यहां से, कोई ना साथ देगा।
इस हाथ जो दिया, उस हाथ जाके लेगा।
कर्मो की है खेती, फल आज पा रहा है।
किस ओर तेरी मंजिल, किस ओर जा रहा है।।


Chetavni 31
*Guru ka Naam le*
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गुरु का नाम ले वरना पछतायेगा,
गुरु का ध्यान कर वरना पछतायेगा।
जिन्दगानी का कोई भरोसा नही।।

जिसने होनी को टाला है संसार में,
चक्रवर्ती हरिश्चंद्र को देखिए।
जो थे राजा कभी रंक वो बन गए,
राजधानी का कोई भरोसा नहीं।।

झूठी माया का अभिमान करके यहाँ,
आदमी बन रहा आज भगवान है।
ऐसी दुनिया से बचके ओ भक्तों चलो,
ऐसी दुनिया का कोई भरोसा नहीं।।

क्यों बहारों में मदहोश होता है तू,
आगे पतझड़ खड़ा ये भी सोच ले।
खिलने वाला हर एक फूल मुरझायेगा,
फिर सुहानी का कोई भरोसा नहीं।।


Chetavni 32
*Ja din man panchhi ud jaihe*
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जा दिन मन पंछी उड़ि जइहैं।।
ता दिन तेरे तन तरुवर के,
सबै पात झड़ि जैहैं।।
जा दिन मन पंछी उड़ि जइहैं।।१

या देहि का गर्व न कीजै,
स्यार काग गिध खइहैं।।
जा दिन मन पंछी उड़ि जइहैं।।२

कहां वह नैन कहां वह शोभा,
कहं रंग रुप दिखइहैं।।
जा दिन मन पंछी उड़ि जइहैं।।३

जिन लोगन से नेह करत हौ,
सो तेहि देखि डरइहैं।।
जा दिन मन पंछी उड़ि जइहैं।।४
जिन पुत्रन को बहु प्रति पाल्यो,
देवी देव मनइहैं।।
जा दिन मन पंछी उड़ि जइहैं।।५

तेहि ले बांस दियो खोपड़ी में,
शीश फाड़ बिखरइहैं।।
जा दिन मन पंछी उड़ि जइहैं।।६

घर के कहत सबेरे काढो,
भूत भये घर खइहैं।।
जा दिन मन पंछी उड़ि जइहैं।।७

अजहूं मूढ़ करो सत्संगत,
संतन में कछु पइहैं।।
जा दिन मन पंछी उड़ि जइहैं।।८

नर बपुधर जो जन नहिं गुरु के,
जम के मारग जइहैं।।
जा दिन मन पंछी उड़ि जइहैं।।९

सूरदास संत भजन बिन, 
वृथा ये जनम गवइहैं।।
जा दिन मन पंछी उड़ि जइहैं।।१०


Chetavni 33
*Jab teri doli*
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जब तेरी डोली निकाली जायेगी।
बिन मुहूरत के उठाली जाएगी।।

उन हकीमों ने कहा यों बोलकर।
करते थे दावे किताबे खोलकर।
यह दवा हरगिज न खाली जायेगी।
बिन मुहूरत के उठा ली जाएगी।।

जर सिकन्दर का यहीं सब रह गया।
मरते दम लुकमान भी ये कह गया।
यह घड़ी हरगिज न टाली जायेगी।
बिन मुहूरत के उठाली जाएगी।।

क्यों गुलों पर हो रही बुल बुल निसार,
पीछे है मालिक खड़ा वो होशियार।
मारकर गोली गिराली जाएगी-
बिन मुहूरत के उठाली जाएगी।।

ऐ मुसाफिर क्यों बिचरता है यहां।
यह किराए पर मिला तुझको मकां।
कोठरी खाली करा ली जाएगी,
बिन मुहूरत के उठाली जाएगी।।

होगा जब परलोक में तेरा हिसाब।
कैसे मुकरोगे वहाँ पर तुम जनाब।
जब वही तेरी निकाली जाएगी।
बिन मुहूरत के उठाली जायेगी।।
जब तेरी डोली निकाली जायेगी।
बिन मुहूरत के उठाली जाएगी।।



*Jaag ri meri surat*
जयगुरुदेव चेतावनी 34
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जाग री मेरी सुरत सुहागन...२ ।।१।।

क्यों तू सोबत मोह नींद में,
उठके भजनिया मे लाग री मेरी सुरत सुहागन ।।
जाग री मेरी सुरत सुहागन...२।।

चित्त से शब्द सुनो श्रवण दे,
उठत मधुर धुन राग री मेरी सुरत सुहागन ।।
जाग री मेरी सुरत सुहागन...३।।

दोऊ कर जोड़ शीश चरणन दे,
भक्ति अचल वर मांग री मेरी सुरत सुहागन ।।
जाग री मेरी सुरत सुहागन...४।।

कहत कबीर सुनो भाई साधौ,
जगत पीठ दे भाग री मेरी सुरत सुहागन ।
जाग री मेरी सुरत सुहागन ।।५।।


 Chetavni 35
*Jag me guru saman nahi*
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जग में गुरु समान नहीं दाता।
जग में गुरु समान नहीं दाता।।

वस्तु अगोचर दई मेरे सतगुरु,
भली बताई बाता।
जग में गुरु समान नहीं दाता।।

काम और क्रोध कैद करि राखे,
लोभ को लीन्हों नाथा।
जग में गुरु समान नहीं दाता।।

काल्हि करे सो हालहिं करिले,
फेरि मिले न यह साथा।
जग में गुरु समान नहीं दाता।।

चौरासी में जाय गिरोगे,
भुगतो दिन औ राता।
जग में गुरु समान नहीं दाता।।

शब्द पुकार पुकार कहत हैं,
करि ले सन्तन साथा।
जग में गुरु समान नहीं दाता।।

सुमिरन बन्दगी कर साहिब की,
काल नवावै माथा।
जग में गुरु समान नहीं दाता।।

परदा खोल मिलो सतगुरु से,
उतरो भव जल पारा।
जग में गुरु समान नहीं दाता।।

कहैं कबीर सुनो भई साधो,
मानो बचन हमारा।
जग में गुरु समान नहीं दाता।।


Chetavni 36
*Jagat prit mat kariyo*
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जगत प्रीत मत करिओ रे मनवा,
जगत प्रीत मत करिओ।।
हरि बाधा से डरिओ रे मनवा,
हरि बाधा से डरिओ।।

ये जग तो माया की छाया,
झूठी माया झूठी छाया।
या पीछे मत पड़िओ रे मनवा,
जगत प्रीत मत करिओ।।

ये जग तो माटी का खिलौना,
इसके पीछे मत तू होना।
गुरु चरण चित्त धरिओ रे मनवा,
जगत प्रीत मत करिओ।।

ये जग तू झूठा दीवाना,
पागल मन यहां न फंस जाना।
नहीं तो जिन्दा मरिओ रे मनवा,
जगत प्रीत मत करिओ।।

इस जग में तू आया अकेला,
मत करिओ जग से मन मैला।
भव से पार उतरिओ रे मनवा,
जगत प्रीत मत करिओ।।

जगत प्रीत मत करिओ रे मनवा,
जगत प्रीत मत करिओ।।


जयगुरुदेव ★
शेष क्रमशः पोस्ट 8. में पढ़ें 🙏🏻👇🏼

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