● *पराजय* ● कहानी संख्या 9.
【 *एक ऐतिहासिक घटना पर आधारित* 】
लोग उन्हेें देखते तो कोई हंसता कोई कुछ फिकरें कसता किन्तु उन पर किसी के कहने सुनने का कोई असर नहीं था।
दरबारियों ने कहा जहांपनाह! वह इतना गरीब है कि उसके पास कपड़े भी ठीक नहीं हैं और वह ऐसे ही पड़ा रहता है। औरंगजैब ने आदेश दिया कि उस गरीब फकीर को कपड़े दिये जायं।
दरबार का एक कर्मचारी वस्त्र लेकर सरमद साहब के पास पहुंचा उस समय वे मस्जिद के फाटक के बाहर बैठे हुए थे।
दरबारी ने जाकर कहा- ऐ फकीर!
सरमद ने कहा- ले जा इस कपड़े को, औरंगजैब को दे दे। उन्होंने कहा कि पहले अपनी मुफलिसी दूर करे फिर रहम करेगा। दरबारी वापस लौट गया।
औरंगजैब ने पूछा- फकीर ने कपड़े नहीं लिए। उत्तर मिला नहीं, क्यों ? क्या कहा उसने। औरंगजैब का दूसरा प्रश्न था। दरबारी ने कहा लेने से इंकार कर दिया। फकीर की बात कहने का साहस वह न कर सका।
दूसरे दिन औरंगजैब खुद ही कपड़े लेकर सरमद साहब के पास चला गया। मोती मस्जिद के पास ही सरमद लेटे हुए थे। औरंगजैब ने कहा कि फकीर साहब तुमने कपड़ों को क्यों लौटा दिया ? मैं हिन्दुस्तान का बादशाह औरंगजेब खुद तुम्हारी खिदमत में आया हूं कपड़े ले लो।
सरमद ने अपने बगल में इशारा करते हुए कहा- औरंगजेब! पहले इसको ढक दे जो मुझसे भी अधिक शर्मनाक है। औरंगजेब सरमद की बात न समझ सका। उसने चादर जमीन पर फैला दिया। फिर बोला- और कपड़े न लो, अपने ऊपर चादर ही डाल लो।
फकीर ने कहा- चादर उठाने की बात मत कह बादशाह तू लौट जा। चादर के नीचे तूने क्या ढका है उसे देख नहीं सकेगा।
औरंगजेब के लिए फकीर की बातें एक पहेली बन रहीं थीं। वह कुछ न समझा तो उसका क्रोध भड़कने लगा। उसने गुस्से में कहा- सरमद! तुझे चादर ओड़नी ही पड़ेगी। तू नहीं समझ रहा है कि तेरे सामने बादशाह औरंगजेब खड़ा है।
सरमद ने कहाः बता औरंगजेब! तेरे पापों को ढकना अधिक जरुरी है या इस शरीर को। औरंगजेब की बहुत बड़ी पराजय हुई थी वह चुपचाप किला वापस लौट आया।
*कहते हैं औरंगजेब अन्तिम दिनों में अपनी डायरी लिख रहा था तो उसने यह भी लिखा कि- ‘मैंने जीवन में बहुत से गुनाह किये हैं किन्तु उन सबमें सबसे बड़े दो गुनाह हैं जिसके लिए मैं अपने को कभी माफ नहीं कर सकूंगा। पहला शाहजहां की कैद, दूसरा सरमद का कत्ल।*
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