*सन्तमत की चेतावनियाँ* 6.

*जयगुरुदेव चेतावनी 25*

★ Ankh jisse bhi vo ek bar ★


आंख जिससे भी वो, इक बार मिला लेते हैं।
फिर हमेशा के लिए, अपना बना लेते हैं।।

ये तो मुमकिन नहीं है कोई, इनको अदा कर दे खफा।
रूठे कोई लाख मगर, उसको मना लेते हैं।।

भूल से गैर का भी, दिल में कभी आवे ख्याल,
खींच के ध्यान उसे, पीछे लगा लेते हैं।।

क्या ताब है कोई जो, फंसाये उनको।
जिसको ये दुनिया के, फन्दे से छुड़ा लेते हैं।।

हाथ से हाथ पकड़, क्या वो गफलत में पड़ा।
सोये ये मुमकिन ही नहीं, उसको जगा देते हैं।।

छोड़ करके फिर नहीं, जाते हैं ये शाहंशाह।
दिल में एक बार जब, डेरा जमा लेते हैं।।



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*चेतावनी 26*
★ Are man taj de chal kuchal ★


अरे मन तज दे चाल कुचाल,
अब तू शरण गुरु की आया।।१
गुरु की आज्ञा दम दम पाल,
अब तू शरण गुरु की आया।।२

जब से नर देही में आया,
तबसे बहुत कुकर्म कमाया।
घूमता भूला फिरा बेहाल,
अब तू शरण गुरु की आया।।३

बावले विषयों के थे दास,
रहे फिरते भोगों की आस।
पापियों का था करता साथ,
अब तू शरण गुरु की आया।।४

किया सत्संग से तुमने प्यार,
तुम्हें है देख रहा संसार।
गुरु के शब्दों पर कर ख्याल,
अब तू शरण गुरु की आया।।५

बने कुछ बुरा न तुमसे काम,
गुरु को वो मारेंगे तान।
न करना गुरु का नीचा भाल,
अब तू शरण गुरु की आया।।६

हरि गुरु निन्दा सुनना पाप,
तुम्हे सुन सुनकर होगा ताप।
इसी से अपनी चाल सम्हाल,
अब तू शरण गुरु की आया।।७



★ चेतावनी 27★
Hamare guru jag me jag se nyare
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हमारे गुरु जग में जग से न्यारे।।
पाँच तत्व का पहिन चोलना,
जग में आप पधारे।
हमारे गुरु जग में जग से न्यारे।।

काल जाल में फंसे जीव,
परबस दुःख सहें अपारे ।
सतगुरू शब्द एक रस जिन
बस आपहिं आप संभारे ।।

काम क्रोध मद मोह लोभ में,
भटके जीव विचारे ।
तिन्हहि उबारन भू पर निर्मल,
सतगुरु सूर उगारे ।।

तिनको पाई उजार भक्ति जड़,
चेतन ग्रन्थि संवारे।
कुटिल कुबुध्दि नीच निन्दक,
जन हुए अलूक किनारे  ।।

निज अनुहारि भरम में भूले,
हरि सतगुरुहिं निहारे।
जयगुरुदेव बहुत समझायें,
सीख न सठ चित धारे ।।



He man kahi bhatak mat jaana
★ जयगुरुदेव नाम प्रभु का ★
28 हे मन कहीं भटक न जाना,
हे मन कहीं अटक न जाना ।।

लक्ष्य तेरा बस एक हो साथी,
सुन ले बात हमारी ।
केवल गुरु का दर्शन पाना,
हे मन कहीं भटक न जाना ।।

लाख कहे कोई राह नहीं है,
लाख कहे कोई थाह नहीं है ।
तुम सबको अनसुनी कर जाना ।
हे मन कहीं भटक न जाना ।।

ज्ञान योग से काम बनेगा,
काम न आवे पोथी ।
दृष्टि कहीं अटके नहिं तेरी,
हो बस एक निशाना ।
हे मन कहीं अटक न जाना ।।

माया को तुम डांट बताना,
काल को धक्का देना ।
गुरु स्वरूप पर ध्यान लगाकर,
गीत यह गाते जाना ।
हे मन कहीं भटक न जाना ।।

मैं हूँ गुरु का, गुरु है मेरा,
बीच न आवे कोई ।
मिट्टी दुई अब एक हुये,
गया अपना और बेगाना ।
हे मन कहीं भटक न जाना ।।

अश्रु धार गुरु चरण को धोकर,
ह्रदय को भेंट चढ़ना ।
इसी यतन से सुन लो प्यारे,
गुरु मेहर को पाना ।
हे मन कहीं भटक न जाना ।।

पा जाओ जब गुरु दर्शन तुम,
मुझको भूल न जाना ।
मैं हूँ तेरी जन्म सहचरी,
मुझको संग लगाना ।।
हे मन कहीं भटक न जाना ।।



Ho jao bhav sagar se par re
★ जयगुरुदेव चेतावनी 29 ★
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हो जाओ भव सागर से पार रे सतगुरु ने नाव लगाई
सतगुरु ने नाव लगाई गुरुदेव ने नाव लगाई ।।१।।

अब काम क्रोध को छोड़ो, मोह लोभ से नाता तोड़ो
खेय रहे गुरुदेव पतवार रे, सतगुरु ने नाव लगाई ।।२।।

पापों से ले लो करवट, जाना है एक दिन मरघट।
छूटे ये सारा संसार रे, सतगुरु ने नाव लगाई ।।३।।

तू ध्यान भजन जप कर ले, अब आवागमन से बच ले
हो जा माया भवर से पार रे, सतगुरु ने नाव लगाई ।।४।।

क्या नाम का भेद बताया, अदभुत प्रकाश दिखाया।
सुन लो अनहद की झनकार रे, सतगुरु ने नाव लगाई ।।५।।

ऊपर को सुरत चढ़ा ले, फिर शब्द से तार मिला ले।
खुल जायें तीनो लोक के द्वार रे, सतगुरु ने नाव लगाई ।।६।।

सतगुरु ने मार्ग दिखाया, मुक्ति का भेद बताया।
डोरी नाम लगावे पार रे, सतगुरु ने नाव लगाई ।।७।।


जयगुरुदेव ●
शेष क्रमशः पोस्ट 7. में पढ़ें 🙏🏻👇🏼

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