*( बिच्छुओं के बाग में बाबा जयगुरुदेव )*
11. Bicchuon ke bag me baba jaigurudev
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कुछ साल पहले गुरु पूर्णिमा का आयोजन उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ जिले के कुण्डा ग्राम में हुआ था। एक बहुत बड़ा आम का बाग था, जिसमें बिच्छु, सांप और बिछखोपड़े रहा करते थे।
बिच्छु तो जमीन में इस प्रकार रेंगते थे जिस प्रकार चीटियां चलती हैं। उस क्षैत्र के लोग उसे बिच्छु बाग के नाम से पुकारते थे। उस बाग में जानवर भी चरने नहीं जाते थे।
वो बाग आज भी है और बाबा जयगुरुदेव जी के चमत्कारों की चर्चा उस स्थान के हिन्दु मुसलमान भाई आज भी कहांनियों के रूप में सुनाते हैं।
गुरुपूर्णिमा कार्यक्रम के प्रारम्भ में जब सत्संगियों ने उस स्थान को सत्संग स्थल के रूप में चुन लिया तो एक दिन स्वामी जी महाराज उस स्थान को देखने के लिए आये। मैं भी लखनऊ से नन्दराम जी के साथ अपनी मोटर साइकिल से वहां पहुंच गया। मुझे उस स्थान के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। रात्रि में भोजन करने के बाद बिस्तर लगाकर बाग में हम लेट गये।
प्रातः जब मैं उठा और जब बिस्तर समेटने लगा तो देखा पॉलीथिन के नीचे करीब एक दर्जन बिच्छु छोटे छोटे पड़े हुए हैं। बिच्छुओं को देखते ही हम लोगों के होश उड़ गये और यह सोचने लगे कि इतने सारे बिच्छु दबे पड़े थे और किसी ने भी डंक नहीं मारा। थोड़ा और सवेरा हुआ और धूप निकलने लगी।
स्वामी जी महाराज बाग को घूम घूम कर देखने लगे। तमाम पेड़ की पत्तियां चारों तरफ बिखरी हुई थीं।
स्वामी जी ने सबको आदेश दिया कि झाड़ू लगाकर पूरे बाग को साफ करो। झाड़ू अभियान शुरु हो गया। छोटा मोटा बाग तो था नहीं कि जल्दी हो जाय, घण्टों लग गये। पुराने पेड़ों की जड़ों में सांपों की बामियां थी। कहीं कहीं सांप भी भागते दौड़ते दिखाई दिए। धूल मिट्टी पत्तों के साथ बिच्छु भी इकट्ठा होने लगे।
सत्संगी डरें कि कहीं कोई बिच्छु पैर में डंक न मार दे, लेकिन स्वामीजी महाराज भी स्वयं घूम घूम कर काम करा रहे थे इसलिए सबको उम्मीद बंधी थी कि कुछ होने नहीं पायेगा। बाग में जगह जगह ढेर इकट्ठे हो गये। हजारों की संख्या में बिच्छु उसी ढेर में चलते दिखाई दिए।
स्वामी जी ने आदेश दिया कि सब कूड़ों को उठाकर बड़े बड़े टोकरों में भरकर उधर ले जाकर गड्ढे में फेंक दो। कूड़ों को हाथ से उठाकर टोकरों में भरा जाने था। सब एक दूसरे का मुंह देखने लगे। कूड़े को हाथ से छूने की हिम्मत किसी की नही हो रही थी। इतने में स्वामी जी ने जोर से डांटा और अपना डंडा उठा लिया और कड़क कर के बोले कि उठाते हो कि नहीं ?
मेरे तो हाथ पांव फूल गये। सोचने लगा कि अब तो जान बचने वाली नहीं है। मैने मन ही मन जयगुरुदेव बोलते हुए कूड़े को हाथ से उठाकर टोकरे में भरने लगा। सभी सत्संगी हरकत में आ गये और कूड़ा टोकरों में भर भरकर फेंके जाने लगा।
कुण्डा में मुसलमानों की भी अच्छी खासी आबादी थी। सड़क के किनारे कब्रिस्तान भी था। बाहर बाग के कुछ मुसलमान बूढ़े और जवान इस नजारे को देख रहे थे।
उन्हें इस बात से हैरानी हो रही थी कि यह कौन सा फकीर आ गया जो बिच्छु और सांपों से खेल रहा है, और बाग से उनका सफाया कर रहा है। धीरे धीरे हिन्दु मुसलमान जो खड़े थे स्वामी जी महाराज के पास आये और अदब के साथ सिर झुकाकर प्रणाम किया और कहा कि हुजूर इस बाग में कोई घुसने की हिम्मत नहीं करता है और आज आप इसमें झाड़ू लगवा रहे हैं और बिच्छुओं को हाथ से उठवाकर फिकवा रहे हैं।
स्वामी जी महाराज ने उन्हें देखा, हाथ जोड़कर सबका प्रणाम स्वीकार किया फिर बोले कि सांप हो या बिच्छु हो किसी का कोई नुकसान नहीं करेंगे। गुरु पूर्णिमा के कार्यक्रम में इतना जनसमूह आया, बांसों और बल्लियों पर बिच्छु चढते और उतरते दिखाई देते रहे मगर यह कहीं भी सुनने को नहीं मिला कि किसी बिच्छु ने किसी को काटा हो।
कार्यक्रम समाप्त होने पर स्वामी जी महाराज जब मथुरा पहुंचे तो उनके बिस्तरों में और कुछ बर्तनों में कई बिच्छु विश्राम करते दिखाई दिए। उन्हें किसी ने मारा नहीं और वे ब्रज भूमी की पावन भूमी पर गुरु जी के समीप रहने की आशा लेकर कुटी के इधर उधर छुप गये।
- आर.के. पाण्डेय लखनऊ।
( शाकाहारी सदाचारी पत्रिका, 14 से 20 फरवरी 2002 )
शेष क्रमशः अगली पोस्ट 5 में पढ़ें ...👇
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