【*जयगुरुदेव*】
● *११. स्वामीजी ! सुमिरन दिन में कितनी बार करना चाहिए ?*
उत्तर- सुमिरन २४ घंटे में एक बार अवश्य करना चाहिए। सुमिरन में आठ माला होती है। सुमिरन का समय निश्चित कर लो तो अच्छा है वैसे कभी भी कर सकते हो। यह दो बार भी किया जा सकता है। यदि ठीक से सुमिरन नहीं हुआ है तो कई बार भी कर सकते हैं।
● *१२. स्वामी जी ! निरंजन भगवान कौन हैं और क्या करते हैं ?*
उत्तर - इस आकाश से बहुत ऊपर नारायण भगवान निरंजन बैठे हैं जो नीचे की सारी रचना स्वर्ग बैकुंठ आदि सबका कंट्रोल करते हैं ।
नीचे के सभी लोकों के यह न्यायाधीश या जज है। उनके हुक्म से उनके दूत जिन्हें महात्माओं ने यमदूत और धर्म दूत कहा काम करते हैं यही वह स्थान है जहां से राम आए थे, ईसा मसीह आए थे। इसी ज्योति स्वरूप निरंजन भगवान को ईश्वर, खुदा और गॉड कहते हैं । ब्रह्मा, विष्णु और महादेव जो इस सृष्टि में उत्पत्ति पालन तथा संहार का काम करते हैं उनका दर्शन तक नहीं किया है ।
संत सदगुरु से नाम दान लेने के बाद साधक भजन करके स्वर्ग वैकुंठ लोगों में ब्रह्मा विष्णु महादेव तथा देवी-देवताओं से मिलते-जुलते जब सहज दल कमल में पहुंचता है तब निरंजन भगवान के दर्शन होते हैं।
इन्हीं को श्याम सुंदर कहा गया है। और वह वास्तव में अति सुंदर हैं ।
इनके ऊपर ब्रम्ह विराजमान हैं जो त्रिकुटी स्थान में रहते हैं और निरंजन भगवान से अधिक सुंदर हैं । और अधिक शक्तिशाली हैं।
● *१३. स्वामी जी ! परमात्मा का स्वरूप क्या है ?*
उत्तर- परमात्मा ने मनुष्य को अपनी शकल पर बनाया है ।
यह केवल मनुष्य ही है जिसको श्रेष्ठ शक्तियां मिली है और जो नीचे की योनियों से अधिक अच्छी स्थिति में है। परंतु इस मानव जीवन में भी कोई हर तरह के सुखी होने का दावा नहीं कर सकता ।
जब सृष्टि के सबसे ऊंचे जीव की यह हालत है तब निचली श्रेणियों के जीवो की क्या हालत होगी यह विचार करने की बात है। ८४ के जीवन जानवर, पक्षी, कीड़े - मकोड़ों में बुद्धि नहीं है या कम है इसलिए वे जन्म-मरण के चक्कर से छुटकारा नहीं पा सकेंगे। केवल मनुष्य को ही परमेश्वर ने ऐसी शक्तियां दी हैं जिनका विकास कर मनुष्य उच्चतम रूहानी पद को प्राप्त कर सकता है।
बशर्ते उसे एक कामिल गुरु से नाम दान मिल जाए और वह अपनी आत्मा को उच्च मंडलों तक पहुंचाने के लिए कठिन परिश्रम करें । पूरे गुरु के बिना कोई कितनी भी कोशिश क्यों ना करें रूहानी मंडलों में अधिक ऊपर नहीं जा सकता । जब जीवात्मा अपने सच्चे देश सतलोक में पहुंचती है तब उसे पूरा ज्ञान प्राप्त होता है ।और देखती है जो रूप मालिक का है वही उसका भी है रूप में कोई अंतर नहीं । वह समुद्र में मिलकर समुद्र का रुप ले लेती है।
● *१४. स्वामी जी ! शिव नेत्र किसे कहते हैं ?*
उत्तर- जीवात्मा की आंख को शिवनेत्र कहते हैं । इसे तीसरा नेत्र, दिव्य नेत्र, थर्ड आई भी कहा जाता है इस शरीर में जीवात्मा दोनों आंखों के मध्य भाग में ऊपर की तरफ बैठी है । उसी की रोशनी दोनों आंखों में आती है जिससे हमें दिखाई पड़ता है । जब दोनों आंखों को बंद कर के अंदर की एक आंख खोली जाती है तो उसी को शिव नेत्र या दिव्य चक्षु कहते हैं यह शिव नेत्र सभी जीवो में है । एक छोटे से छोटे कीड़े में भी है। मगर बिना उसके जाने मनुष्य अज्ञान में इस दुनिया में भटकता है। मनुष्य शरीर में ही जीवात्मा का नेत्र साधन के द्वारा खोला जा सकता है अन्य शरीरों में नहीं । संत सतगुरु जिनका शिव नेत्र खुला होता है वही इंसानों की तीसरी आंख खोल सकते हैं । शिव नेत्र खुलने पर परमात्मा २४ घंटे साकार है । वह परमात्मा ना कभी निराकार था और ना अब है। निराकार उनके लिए है जिनकी जीवात्मा की आंख बंद है।
● *१५. स्वामी जी ! ध्यान पर जब बैठते हैं तो थोड़ी देर बाद शरीर सुन्न होने लगता है और लगता है क्या करूं ?*
उत्तर- जीवात्मा की चेतन धारा रोम-रोम में समाई हुई है और ध्यान भजन के वक्त इसका धीरे-धीरे सिमटाव होता है। जब सिमटाव होता है तब शरीर सुन्न होने लगता है । इसमें घबराना नहीं चाहिए। इसमें लगातार अभ्यास और दृढ़ संकल्प की जरूरत है। अगर १ घंटे बैठने का विचार किया है तो समय पूरा होने पर ही उठो । संतमत की साधना में जीते जी मरना होता है ।
एक बार जड़ चेतन की गांठ जो आंखों के ऊपर बंधी है वह खुल गई तो मौत का खौफ खत्म हो जाता है । जब चाहे आत्मा शरीर को छोड़ दे और देविक मंडलों की सफर करें आनंद ले और फिर वापस शरीर में आ जाए। इस प्रारंभिक साधना में थोड़ी कठिनाई होती है। और इसमें धीरज और लगन की जरूरत है। सत्संग बहुत जरूरी है सत्संग मिलता रहेगा तो भजन में तरक्की होगी साथ ही गुरु के प्रति प्रेम बढ़ेगा।
● *१६. स्वामी जी ! हमने नामदान लिया है अब हमारी रहनी कैसी होनी चाहिए ?*
उत्तर- सबसे पहली बात यह है कि शाकाहारी रहो और ऐसा कोई नशा मत करो जिससें बुद्धि पागल हो जाए । दूसरी बात भजन ध्यान सुमिरन जैसा बताया गया है उसे रोज-रोज करो नागा ना होने पावे। जीवन नेक पाक होना चाहिए। छुआछूत का विशेष ध्यान रखो। जुबान मीठी होनी चाहिए। बड़ों का सम्मान और छोटों से प्यार करो । कम बोलो और फालतू बहस किसी से मत करो । अधिक बक-बक बोलने से अधिक शक्ति अनावश्यक क्षीण होती है । निंदा किसी की मत करो निंदा करने से दूसरों के पाप कर्म अपने ऊपर आते हैं ।
अपराध कोई करे और फल दूसरा भोगे यही ईश्वरीय विधान है । इस बात को अच्छी तरह समझ लो । दूसरों की आंखों की पुतलियों को देखकर बातें करने से उसके कर्म तुम्हारे ऊपर और तुम्हारे अच्छे कर्म उसके ऊपर चले जाएंगे। अर्थात कर्मों का आदान-प्रदान होता है चाहे अच्छे हो अथवा बुरे हो । क्रियमाण कर्म जो रोज खाने पीने से, मिलने जुलने से अथवा अन्य कार्यकलापों से सत्संगी के ऊपर आते हैं उन्हें सुमिरन, ध्यान, भजन करके रोज साफ करना चाहिए । नहीं तो भजन में रूखे फीके रहोगे । अपने अंतर में रोज झाड़ू लगाकर सफाई करनी है । पहले इतना करो सत्संग में बराबर हाजिरी देते रहो तो आध्यात्मिक यात्रा में जल्दी सफलता प्राप्त होगी।
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शेष क्रमशः पोस्ट न. 4 में पढ़ें 👇🏽
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