जयगुरुदेव
शाकाहारी पत्रिका से संपादकीय कॉलम
जिसको पूरे गुरु मिले और उनसे उपदेश लिया और उनकी शरण में गया, मगर इस अर्से में वह गुम हो गये तो गुरु के बनाये हुए जो गुरु हो, उनमें वैसा ही भाव लाना चाहिए और उनके चरणों में उसी तरह प्रीत करनी चाहिए जैसा कि पहले गुरु के साथ करता था।
सिवाय देह स्वरुप के दोनों में और कोई भेद नहीं है। अलबला जब तक गुरु के बनाए हुऐ गुरु न मिले अथवा उनमें भाव न आवे, तब तक पहले ही गुरु के स्वरुप का ही ध्यान किया करे, मगर उस हालत में पहले गुरु के सामने जो कुछ परमार्थ तरक्की हो चुकी होगी, उतनी ही कायम रहेगी आगे चाल नहीं चल सकती और तरक्की नहीं हो सकती।
यो कर्म फल न मिलेगा यानी कुछ सफाई होगी मगर भक्तीदान और प्रेमदान नहीं प्राप्त हो सकता।
फिर जन्म धारण करना पड़ेगा और करनी करेगा, तब काम बनेगा। - वैसे एक जन्म में कुछ नहीं हो जाता है, कई-कई जन्म धारण करने पड़ते हैं। एक दफा पूरे गुरु मिले और जो उन्होंने बख्शिश दी, वह बाद में उनके गुप्त होने -के, छीनी नहीं जावेगी अथवा जाया नहीं होगी, मगर आगे तरक्की तभी
मुमकीन है, जब वक्त के गुरु मिलते रहें और उनमें भाव आता रहे।
जो नुरानी और सच्चा सेवक है, वह जरुर गुरु के बनाएँ हुए गुरु में, उसी तरह का भाव लाएगा जैसा पहले गुरु में था और जिसको परमार्थ और जीव के कल्याण की चाह नहीं है वह दूसरे की शरण में नहीं जा सकेगा वह पहले गुरु ही की टेक को पकड़े बैठा रहेगा। वह टेकी है जैसा कि उपर कहा गया है, उसका काम भी नहीं बनेगा।
स्वामीजी ने कहा
सब लोग सुमिरन ध्यान करते, सुरत शब्द के रास्ते में लगे रहें ओर अन्तर में चरन रस लेते रहें, साथ ही सेवा भाव से कर्म काटते चलें। सेवा से कर्म करते हैं। वैसे किसी सत्संगी को चिन्ता करने की कोई बात नहीं है। हमारे रहते हुए परमार्थ का लाभ उठाओ वरना आगे तो लोग पछताते हैं। हमारे रहते हुए जो गुरु की कृपा मिल रही है, उसे स्वीकार प्रसन्नता पूर्वक कर लेना चाहिए। हम तुम्हारे स्वार्थ और परमार्थ में मददगार हैं। मुझे प्रसन्नता उसी में हैं जब कि आप सुमिरन, ध्यान और सत्संग करते हैं।
-- बाबा जयगुरूदेव जी महाराज के वचन
जयगुरुदेव
24.10.2024
प्रेस नोट
दिल्ली
*कलयुग में यज्ञ, जप, तप से कुछ नहीं मिलने वाला है, केवल नाम ही आधार है जो वक़्त के सन्त ही दे सकते हैं*
*कर्मों के परदे हटने पर दिव्य रचना दिखाई पड़ती है, पूरे गुरु उसका तरीका बताते हैं*
केवल किताबों को पढ़ने से नहीं बल्कि प्रैक्टिकल करने से फायदा होगा, तो धार्मिक ग्रंथों में जिस आध्यात्मिक विद्या का इशारा किया गया है, उसे देने वाले, उसका प्रैक्टिकल करवाने वाले, इस समय के पूरे समर्थ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि
जो (यह प्रभु का सच्चा भजन नामदान) करेगा, सो पायेगा। यह तो ऐसा करना है कि जितनी देर करेगा, उतना फल पायेगा, 10 मिनट, आधा घंटा, पांच मिनट जो जितना करेगा, उतना फल मिल जाएगा। जो जस कीन, सो तस फल चाखा। जो जैसा करेगा, उसी हिसाब से उसको फल मिलेगा। तो करने तो लग जायेगा इसीलिए सब जगह नाम दान बता के आता हूं। कौन सा नाम? यही जो आज सतसंग में आये हुए नए लोगों को बताया जाएगा। वो नाम जिसे लेते ही भव सागर सूख जाता है। कलयुग योग न यज्ञ न ज्ञाना, एक आधार नाम गुण गाना। कलयुग में यज्ञ जप तप से कुछ नहीं मिलने वाला है। कलयुग में तो जीवों को पार होने का एक नाम का ही आधार है।
*कर्म के पर्दे कैसे हटते हैं ?*
कर्म के पर्दे हटते हैं- सेवा करने, भजन करने, सतसंग सुनने से कर्म कटते हैं तब (उपरी दृश्य) दिखाई पड़ता है, वो (दिव्य चक्षु) खुल जाता है। तब उघरहिं विमल विलोचन ही के मिटहिं दोष दुख भव रजनी के। जब वो (दिव्य) आंख खुल जाती है तब यह भव सागर में आने-जाने का, जन्मने मरने का सिलसिला छूट जाता है, भव सागर में आने वाले सभी दोष मिट जाते हैं।
सुजह राम चरित मणि, यानी राम का चरित्र जो इस शरीर के अंदर 24 घंटे हो रहा है, वो दिखता है, प्रभु दिखाई पड़ जाते हैं। उसकी रचना, जैसे यहां की रचना है, पेड़-पौधे, पहाड़, नदी-नाले की सुंदरता, खुशबू, सुंदर चिड़िया जानवर, चलने वाले सुंदर मनुष्य स्त्री पुरुष, ऐसे ही ऊपरी लोकों की निर्मलता, सुंदरता दिखाई पड़ने लग जाती है। तो वो आँख खुलेगी कैसे? जब कोई जानकार मिलेगा। वो तरीका बताएगा। इसीलिए कहा गया- पूरे गुरु की जरूरत सबको रहती है।
*जिंदगी पानी के बुलबुले की तरह से है*
गुरु महाराज ने भी कहा, मैं भी बार-बार कहता रहता हूं की समय निकालो, शरीर के लिए ही सब कुछ करने में मत लगे रहो। आत्मा के लिए भी करो नहीं तो यह आत्मा फंस जाएगी। और यह शरीर तो नाशवान है, पानी के बुलबुले की तरह से है। जैसे बरसात में पानी में बूंदे गिरने पर बुलबुले बनते और तुरंत ख़त्म हो जाते हैं ऐसे ही यह जिंदगी है। देखत ही छिप जाएंगे ज्यों तारे प्रभात।
जैसे आसमान में सुबह दिखने वाले तारे देखते-देखते छिप जाते हैं, उसी तरह से यह जीवन लीला खत्म हो जाती है। तो इसको अपना मत समझो और दो घंटा समय रोज निकालो। उस समय पर सब कुछ भूल जाओ। केवल उस प्रभु को ही याद करो। फिर देखो, अंतर में आपको गुरु का जलवा दिखाई पड़ जाए।
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