*सन्त किसको कहते हैं?*

जयगुरुदेव 

1. *सन्त किसको कहते हैं?* 
1.24.32 - 1.26.26

दाढ़ी बाल को, उनके कपड़े को सन्त नहीं कहते हैं। जिसको आदि और अंत की जानकारी होती है और जो आदि से लेकर अंत तक का भेद बताता है, आदि से लेकर के अंत तक दिखाता है और अंत से ले करके आदि तक पहुंचाता है, वही होता है सन्त। आप कहोगे कि ये कोई जमीन फाड़ करके आते होंगे या आसमान तोड़ करके आते होंगे; ऐसा कुछ नहीं है। मां के पेट में ही बनते, पलते हैं और इसी धरती पर चलते हैं। यहीं का अन्न खाते हैं, यहीं का पानी पीते हैं लेकिन वो अपना काम पहले करते हैं। अपना काम क्या है-
 "धाम अपने चलो भाई।" अपने घर पहुंचने का काम पहले करते हैं।  

इस धरती पर सन्त हमेशा रहते हैं। कभी गुप्त रूप में रहते हैं, कभी प्रगट रूप में रहते हैं। कहा गया कि -

"घिरी बदरिया पाप की, 
बरस रहे अंगार।
सन्त न होते जगत में, 
जल मरता संसार।।"

उस वक्त के जो सन्त होते हैं, उनके पास पहुंच जाते हैं, उनसे इल्म (ज्ञान) लेते हैं, शिक्षा लेते हैं, नाम लेते हैं। कौन सा नाम? जिसके लिए कहा गया-
कलयुग केवल नाम अधारा।
सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा।।

इस भवसागर से पार होने वाला नाम लेते हैं और नाम को जगाते हैं। नाम की डोर को पकड़ते हैं और प्रभु तक पहुंचते हैं। जब उनके लिए प्रभु का आदेश हो जाता है कि अब तुम इस काम को करो, तब वो काम करने लग जाते हैं।

2. *साप्ताहिक सतसंगों में लोगों को बुला करके लाओ। अच्छी संगति बहुत जरूरी है।* 
1.50.10 – 1.52.05

देखो! कहा जाता है कि साप्ताहिक सतसंग जगह-जगह पर स्थापित कर लो और उसमें लोगों को बुला-बुला करके लाओ। पाप कैसे होता है? संग दोष से होता है। खराब आदमी का संग कर लो तो समझ लो खराबी आ जाती है और अच्छे आदमी का साथ करो तो अच्छाई आ जाती है। कोई आपको फल दे दिया जाए और मुंह में नहीं आने वाला फल है तो कैसे खाओगे? तो कहोगे कि चाकू लाओ। वही चाकू आपको फल काट करके खिला देता है। वही चाकू अपराधी के हाथ में आ जाए तो मार देगा, पेट फाड़ देगा, बकरे का गला काट देता है। चाकू वही है, छुरी वही है, लेकिन साथ जैसा पड़ जाता है उसी तरह का वो हो जाता है। 

संगत ही गुण होत है, 
संगत ही गुण जाए। 

स्वाति के नक्षत्र की बूंद जो होती है, ये अगर केले की पंखुड़ियों में पड़ जाए तो कपूर बन जाता है, अगर सीप में पड़ जाए तो मोती बन जाता है, और सांप के मुंह में पड़ जाए तो जहर बन जाता है। तो ऐसे ही समझ लो कि साथ का असर होता है। तो साथ इनका (साधकों का) करो और लोगों को बुला करके लाओ और सतसंग में बैठाओ, ध्यान भजन कराओ। अच्छे का साथ कराओगे तो अच्छाई आ जाएगी। भजन करने की आदत बन जाएगी। *इसलिए साप्ताहिक सतसंग केंद्र जगह-जगह करने के लिए कहा जाता है।*





एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ