*सन्त बाबा उमाकान्त जी ने समझाया- वो प्रभु किससे खुश रहता, किसको प्यार देता, किसको अपना लेता है*

जयगुरुदेव


01.10.2024
प्रेस नोट
सुल्तानपुर (उ.प्र.)

*सन्त बाबा उमाकान्त जी ने समझाया- वो प्रभु किससे खुश रहता, किसको प्यार देता, किसको अपना लेता है*

*जब तक गुरु की शक्ति का इजहार अंदर में नहीं होता, आदमी, गुरु को मनुष्य ही समझता है*

थोड़ी सी भी साधना बताये गए तरीके से मन को रोक कर, श्रद्धा भाव भक्ति विश्वास के साथ करो तो बहुत जल्द अंदर में दर्शन देने वाले, प्रभु को खुश कर उनकी दया कृपा प्राप्त करने के आसान तरीके बताने वाले, इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि- 

गुरु को मानुष जानते, ते नर कहिये अंध, महा दुखी संसार में, आगे यम के फंद। गुरु कोई हाड़-मांस के शरीर का नाम नहीं होता है। गुरु तो पावर शक्ति होती है। वह शक्ति इसी मनुष्य शरीर में रहती है। लेकिन जब तक आदमी शक्ति का इजहार अपने अंदर नहीं कर पाता है तब तक उसे जल्दी विश्वास नहीं होता है, वो गुरु को मनुष्य ही समझता है और गुरु के पास तरह-तरह की दुनिया की इच्छा लेकर के जाता है। 

दुनिया में मान-सम्मान, धन, पुत्र-परिवार की बढ़ोतरी की इच्छा लेकर के जाता है, मुकदमा जीत जाए, लड़के को नौकरी मिल जाए, रोग ठीक हो जाए आदि इस तरह की इच्छाओं को लेकर के जाता है। तो वहां से कोई खाली नहीं लौटता, कुछ न कुछ फायदा सबको होता है। यह दुनिया का फायदा तो अन्य जगहों पर भी मिल जाता है, कोई मजार पर चादर चढ़ा दे, गया में पिंड दान कर आवे, चला जाए जल चढ़ा दे, अमावस्या पूर्णिमा को सरयू में, गंगा जमुना त्रिवेणी में स्नान कर ले तो भाव अच्छे बनेंगे, कर्म कटेंगे तो यह (दुनिया की) छोटी-छोटी चीजें तो वहां भी मिल जाती है। बड़ी चीज कहां कब मिलती है? जब गुरु के आदेश का पालन यानी गुरु भक्ति की जाती है, जब मनमुखता खत्म होती है और गुरु मुखता आती है तब गुरु की पहचान, अपनी, प्रभु की पहचान होती है।

*मालिक किससे खुश रहता है, किसको प्यार देता है, किसको अपना लेता है?*

लाभ और मान क्यों चाहे, पड़ेगा फिर तुझे देना, और वह मालिक रिझेगा नहीं, खुश नहीं होगा तो दूर रहेगा। और जब खुश हो जाता है, जैसे बाप बेटे से खुश रहता है तो गोदी में उठा लेता है, प्यार करता है, हर चीज की साधन सुविधा देता है। तो मालिक पिता तब दूर हो जाता है। वह खुश किससे रहता है? प्यार किसको देता है? दीन देख कर करे निबेरा, जो है सच्चे मन से हेरा। जिसके अंदर दीनता आ जाती है, मन सच्चा हो जाता है, परमार्थी मन हो जाता है। जो भी संगत की सेवा हो, जो भी काम हो, उसको जो छोटा बन कर के करने लग जाता है, उसको वो अपना लेते हैं, नहीं तो उससे दूरी बढ़ती चली जाती है। 

क्योंकि ये जितनी भी दुनिया की चीजें हैं, ये शरीर के साथ जुड़ी हुई है। धन-दौलत, मान-सम्मान हो आदि सब शरीर से जुड़ा हुआ है। शरीर को ही सम्मान मिलता है। धन के लोलुप, इच्छुक लोग धनी-मानी को सम्मान देते हैं कि ये बड़े आदमी, पैसे वाले आदमी है। इसी तरह जो विद्वान होते हैं, जिनमें किसी भी तरह की जानकारी होती है, उनको लोग सम्मान इज्जत देते हैं। अगर कोई दो करोड़ रुपया की गाड़ी में बैठ कर किसी के दरवाजे पर पहुंच गया तो वो आदमी सोचता है कि ये बड़ा आदमी होगा, पैसे वाला होगा या ऊंचे औहदे वाला होगा। 

तो इसको उसी तरह का सम्मान दिया जाए। तो नहीं कुछ होगा, नहीं पैर छुयेगा तो कहेगा कि आइए-आइए, बैठिए। जो भी घर में होगा, अच्छी से अच्छी चीज खिलाने की कोशिश करेगा। जस पूजा तस चाहिए देवता। तो शरीर को सम्मान मिलेगा। और यह शरीर कितने दिन साथ देगा? शरीर का कोई भरोसा है? हम लोग यही बात भूल जाते हैं कि मौत सामने खड़ी है। मौत को ही भूले हुए हैं। कल किसी ने देखा? नहीं देखा। 

और कल की चिंता फिक्र करते हैं। इसलिए लाभ और मान क्यों चाहे, पड़ेगा फिर‌ तुझे देना। लाभ और मान की तरफ से मन को हटाना चाहिए। आप लोग साधक, कार्यकर्ता, आप इस बात को समझो कि यह लाभ और मान का ऐसा अंकुर है जो जीवन को उसी के चक्कर में बर्बाद, और परमार्थ से अलग कर देगा। इसलिए इसको तो ताक में रखना चाहिए। गुरु की मौज रहो सब धार। गुरु की रजा संभालो यार।। जो गुरु की मौज हो, उसमें चलना चाहिए।







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