जयगुरुदेव प्रार्थना 233.
Uddhar ki hai shakti apar
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उद्धार की है शक्ति अपार गुरुदेव तुम्हारे हाथों में।
पतितों को भी होता सुधार, सरकार तुम्हारे हाथों में।।
मैं भी तो पतित अभागा हूँ, युग युग का सोया जागा हूँ।
अब हुआ अभय दे पोत भार, पतबार तुम्हारे हाथों में।।
पितु मात सहायक तुम मेरे, मैं तो आधीन हुआ तेरे ।
जीवों की घर पहुँचाने का, आधार तुम्हारे हाथों में।।
हे दीनदयाल दया सागर, समरथ खेबटिया आगर ।
इस पार तुम्हारे हाथों में, उस पार तुम्हारे हाथों में।।
तुम आये सदा लिवाने को, हम तत्पर हुए न जाने को ।
तब रहे काल के कांटों में, इस बार तुम्हारे हाथों में।।
भव सिन्धु कठिन लहरें अपार,
लखि बन्द हुई आंखें हमार ।
मुख से निकला सतगुरु गोहार,
मझधार तुम्हारे हाथों में।।
डगमग डिगमिग का अन्त हुआ,
अति निकट दूर का पंथ हुआ ।
आया नजदीक निज घर का द्वार,
हे नाथ तुम्हारे हाथों में।।
नभ, बजी दुंदुभी गूँज गया,
सब गोप्य रहस्य भी सूझ गया ।
हो गई काल की कठिन हार,
गुरुदेव तुम्हारे हाथों में।।
जयगुरुदेव प्रार्थना 234.
Ri mere par nikas gaya
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री मेरे पार निकस गया, सतगुरु मार्या तीर।
विरह भाल लगी उर अन्दर, व्याकुल भया शरीर।
इत उत चित्त चलें नहिं कवहूँ डारी प्रेम जंजीर।
कै जाणें मेरो प्रीतम प्यारौ और न जानै पीर।
कहा करूँ मेरौं वस नहिं सजनी, नैन झरत दोऊ नीर ।
मीरा कहें प्रभु तुम मिलियाँ विन प्राण धरत नहिं धीर ।
जयगुरुदेव प्रार्थना 235.
Maili chadar odh ke kese dwar tihare aaun
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मैली चादर ओढ़ के कैसे द्वार तिहारे आऊँ।
रे पावन परमेश्वर मेरे, मन ही मन शरमाऊँ ।। मैली.
तुमने मुझको जग में भेजा निर्मल देके काया।
आ करके संसार में मैंने इसको दाग लगाया।
जन्म जन्म की मैली चादर कैसे दाग छुड़ाऊँ ।। मैली..
निर्मल वाणी पाकर तुझसे नाम न तेरा गाया ।
नयन मूंद के हे परमेश्वर कभी न तुझको ध्याया ।
मन वीणा की तारें टूटीं अब क्या गीत सुनाऊँ ।। मैली.
इन पैरों से चल कर तेरे द्वार कभी ना आया।
जहां जहां हो पूजा तेरी, कभी न शीश झुकाया ।
हे गुरुवर मैं हार के आया, अब क्या हार चढ़ाऊं। मैली..
जयगुरुदेव प्रार्थना 236.
Yeh vinti gurudev hamari
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यह विनती गुरुदेव हमारी...२ ।।१।।
गुरु पद स्नेह छूटे नही कबहूँ भाव छुटे संसारी
यह विनती गुरुदेव हमारी...।।२।।
नित नव प्रेम जगे तुम्हरे प्रति रहहुँ नाम आधारी
यह विनती गुरुदेव हमारी...।।३।।
शब्द कूप की सुरत हमारी बनी रहे पनिहारी
यह विनती गुरुदेव हमारी...।।५।।
शब्द अमिय रस पियहि निरंतर, झूले अधर मंझारी
यह विनती गुरुदेव हमारी...।।६।।
सहस कमल दल छिन में उतरे त्रिकुटी लेई संभारी।
यह विनती गुरुदेव हमारी।।७
निरखै हँस रूप वह अपना खोले द्वार किबाड़ी
यह विनती गुरुदेव हमारी...।।८।।
गुफापार सतनाम समाये, सुख दुःख से होए न्यारी।
यह विनती गुरुदेव हमारी।।९
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Jaigurudev