जयगुरुदेव संगत की प्रार्थनाएं 39.

जयगुरुदेव 

बाबा जयगुरुदेव जी महाराज व महाराज जी का आदेश - प्रार्थना रोज होना चाहिए  

जयगुरुदेव प्रार्थना 233.
Uddhar ki hai shakti apar
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उद्धार की है शक्ति अपार गुरुदेव तुम्हारे हाथों में। 
पतितों को भी होता सुधार, सरकार तुम्हारे हाथों में।
 
मैं भी तो पतित अभागा हूँ, युग युग का सोया जागा हूँ। 
अब हुआ अभय दे पोत भार, पतबार तुम्हारे हाथों में।
 
पितु मात सहायक तुम मेरे, मैं तो आधीन हुआ तेरे । 
जीवों की घर पहुँचाने का, आधार तुम्हारे हाथों में।

हे दीनदयाल दया सागर, समरथ खेबटिया आगर । 
इस पार तुम्हारे हाथों में, उस पार तुम्हारे हाथों में।

तुम आये सदा लिवाने को, हम तत्पर हुए न जाने को ।
तब रहे काल के कांटों में, इस बार तुम्हारे हाथों में।

भव सिन्धु कठिन लहरें अपार, 
लखि बन्द हुई आंखें हमार ।
मुख से निकला सतगुरु गोहार, 
मझधार तुम्हारे हाथों में

डगमग डिगमिग का अन्त हुआ, 
अति निकट दूर का पंथ हुआ ।
आया नजदीक निज घर का द्वार, 
हे नाथ तुम्हारे हाथों में।

नभ, बजी दुंदुभी गूँज गया, 
सब गोप्य रहस्य भी सूझ गया ।
हो गई काल की कठिन हार, 
गुरुदेव तुम्हारे हाथों में।



जयगुरुदेव प्रार्थना 234.
Ri mere par nikas gaya 
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री मेरे पार निकस गया, सतगुरु मार्या तीर। 
विरह भाल लगी उर अन्दर, व्याकुल भया शरीर।
इत उत चित्त चलें नहिं कवहूँ डारी प्रेम जंजीर। 
कै जाणें मेरो प्रीतम प्यारौ और न जानै पीर। 
कहा करूँ मेरौं वस नहिं सजनी, नैन झरत दोऊ नीर । 
मीरा कहें प्रभु तुम मिलियाँ विन प्राण धरत नहिं धीर ।



जयगुरुदेव प्रार्थना 235. 
Maili chadar odh ke kese dwar tihare aaun
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मैली चादर ओढ़ के कैसे द्वार तिहारे आऊँ।
रे पावन परमेश्वर मेरे, मन ही मन शरमाऊँ ।। मैली. 

तुमने मुझको जग में भेजा निर्मल देके काया। 
आ करके संसार में मैंने इसको दाग लगाया। 
जन्म जन्म की मैली चादर कैसे दाग छुड़ाऊँ ।। मैली.. 

निर्मल वाणी पाकर तुझसे नाम न तेरा गाया । 
नयन मूंद के हे परमेश्वर कभी न तुझको ध्याया । 
मन वीणा की तारें टूटीं अब क्या गीत सुनाऊँ ।। मैली. 

इन पैरों से चल कर तेरे द्वार कभी ना आया। 
जहां जहां हो पूजा तेरी, कभी न शीश झुकाया ।
हे गुरुवर मैं हार के आया, अब क्या हार चढ़ाऊं। मैली..



जयगुरुदेव प्रार्थना 236.
Yeh vinti gurudev hamari 
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यह विनती गुरुदेव हमारी...२ ।।१।।

गुरु पद स्नेह छूटे नही कबहूँ भाव छुटे संसारी
यह विनती गुरुदेव हमारी...।।२।।

नित नव प्रेम जगे तुम्हरे प्रति रहहुँ नाम आधारी
यह विनती गुरुदेव हमारी...।।३।।

शब्द कूप की सुरत हमारी बनी रहे पनिहारी
यह विनती गुरुदेव हमारी...।।५।।

शब्द अमिय रस पियहि निरंतर, झूले अधर मंझारी
यह विनती गुरुदेव हमारी...।।६।।

सहस कमल दल छिन में उतरे त्रिकुटी लेई संभारी।
यह विनती गुरुदेव हमारी।।७

निरखै हँस रूप वह अपना खोले द्वार किबाड़ी
यह विनती गुरुदेव हमारी...।।८।।

गुफापार सतनाम समाये, सुख दुःख से होए न्यारी।
यह विनती गुरुदेव हमारी।।९




जयगुरुदेव प्रार्थना 237.
Mere satguru ne pilai esi bhang
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मेरे सतगुरु ने पिलाई ऐसी भंग। 
ये रंग अनौखा लाय रही ।।

काली घटा अंधेरी रातें, जिसमें जुगनू चमक रहे । 
बिजली सी चमकत चाँदनी सूरज तारे दमक रहे ।। 
अद्भुत ज्योंति है वो जैसे मणी भुजंग ।। 
ये रंग अनौखा..१ 

अम्बर से इक उठी बदरियां रिमझिम बरसे पानी है। 
चातक चौक उठाई ऊपर, मन की प्यास बुझानी है ।। 
अमृत पीले रे सन्तों के तू संग ।। 
ये रंग अनौखा..२ 

झींगुर की झंकार सुने मन, कभी नहीं नाराज रहे। 
घण्टा शंख बाँसुरी, वीणा, न्यारे न्यारे बाज रहे ।।
जीते जी मर जावे, फिर जीवे निरथंग।। 
ये रंग अनौखा..३ 

करो सदा सत्संग नाम का सुमिरन कर मन मन्दिर में। 
बैठे जयगुरुदेव दयालु, तेरे ही घट अन्दर में ।। 
ध्वनि बाज रही सब मिलि चंग ।।
 ये रंग अनौखा..४



जयगुरुदेव प्रार्थना 238.
Vyakul sabhi bhakt hain ab tumhare
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व्याकुल सभी भक्त हैं अब तुम्हारे,
दरस दीजिए स्वामी सतगुरु हमारे।

दरद है नयन को न दरद को निहारे,
तुम्हारे दरस को तरस जा रहे हैं।
दुखित नयन नीर भरकर निहारें,
दरस दीजिए...

पिता हो तुम्ही स्वामी माता तुम्ही हो,
सखा शान्ति दाता विधाता तुम्ही हो,
खड़े आस में दास तुम्हारे सहारे
दरस दीजिए...

संसार सुख भोग भाता नहीं है,
दुःख चित मन मोह आता नहीं है।
पुकारूं मैं कब तक खड़े तेरे द्वारे
दरस दीजिए...

सदा भक्त पाते हैं तेरा सहारा,
सुना है कि तुम गिद्ध गणिका को तारा,
तुम्हारे सिवा कौन मुझको उबारे,
दरस दीजिए...

निराधार निर्बल हूं शक्ति नहीं है,
दया भाव अनुराग भक्ती नही है।
सुगम युक्ति दे भक्ती पथ को संभाले
दरस दीजिए...

फंसा हूं दरस बिन न आनंदमय हूं,
मै हूं अधम अति मति मंद मय हूं।
मेरे स्वामी तुम हो अधम के सहारे,
दरस दीजिए...

तुम्हे रूप अपना दिखाना पड़ेगा,
मधुर सुर सुधा सम सुनाना पड़ेगा।
मुझे पूर्ण प्रतीत है प्राण प्यारे
दरस दीजिए...

विरह मय भई मैं सुरत चित विभोरी,
निहारूं मैं निस दिन चंदा चकोरी।
करो पार भव से लगा दो किनारे
दरस दीजिए स्वामी सतगुरु हमारे।।



जयगुरुदेव प्रार्थना 239.
Karu vandana me teri
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करूँ वन्दना मैं तेरी, जग के रचाने वाले । 
ज्योति स्वरूप तुम हो, तम के हटाने वाले ।। 

पट घट के खोल दीन्हे, गुरु ज्ञान हमको देकर। 
करें ध्यान हम तुम्हारा, दुःख से छुड़ाने वाले ।। 

सृष्टि सुघर सजीली, सिरजी है कैसी तुमने । 
सारे पदार्थ जग में, मन को लुभाने वाले ।। 

आकाश भूमि भूधर, नक्षत्र शशि दिवाकर। 
ये सबके सब हैं तेरी, महिमा जताने वाले ।। 

दुनिया के ताप दोषों, से मुक्त बस वही है।
पदकंज में जो तेरे हैं, लौ लगाने वाले ।। 

यद्यपि बहुत कठिन है, भव सिन्धु पार जाना। 
पर कुछ नहीं चिंता, हो पार लगाने वाले ।। 

दिया ज्ञान नेत्र तुमने, त्रिकुटी में दिव्य ज्योति । 
जय गुरुदेव रूप में हो, बंसी बजाने वाले ।। 

मैं हूं शरण में तेरी, अब क्या है नाथ देरी । 
भक्ति को अपनी दे दो, सद् मार्ग दिखाने वाले ।।



जयगुरुदेव प्रार्थना 240.
Gurudev bhul nahi jana re
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गुरुदेव भूल नहीं जाना रे, 
मोह पार लगाना रे ।।

भटक भटक कर हारा भगवन, 
कहीं आसरा न पाया। 
चरण कमल की छाया दे दो, 
शरण तुम्हारी मैं आया। 
शरणागत को अपनाना रे ।। मोहे० 

डगमग डगमग डोल रही है, 
बीच भंवर में नैया । 
झुला रही हैं ताल तरंगें, 
कोई नहीं है खिवैया ।
करुणा कर पार लगाना रे ।। मोहे० 

भक्ति का रंग कभी न उतरता, 
चाहे जितना धो ले। 
ज्यों ज्यों धोवे त्यों त्यों निखरे 
कभी न फीका होवे ।
प्रभु ऐसा रंग चढ़ाना रे।। मोहे०


जयगुरुदेव |
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