*भजन में मन नहीं लगता तो बराबर सेवा करते रहो -सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज*

जयगुरुदेव

27.07.2024
प्रेस नोट
आगरा (उ.प्र.)

*भजन में मन नहीं लगता तो बराबर सेवा करते रहो -सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज*

*दुनिया का, इंद्रियों का सुख, हड्डी चूसने की तरह से होता है*

प्रभु भक्ति की राह में आने वाली बाधाओं को हटाने वाले, मन के कर्मों को साफ़ करने के आसान तरीके बता कर परमार्थी बनने की शिक्षा देने वाले, इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि लोग कहते हैं कि भजन करता हूं लेकिन भजन में मन नहीं लगता है। तो मन कहीं तो लगता होगा। 

मन अगर धन कमाने में लगता है तो धन से कहीं पाप बन गया होगा। अगर मन विषय वासनाओं में लगता है तो समझ लो शरीर से कोई पाप बन गया होगा। मन से अगर गलत चीज सोचते रहे हो, कुछ लोग कहते हैं गलत भावना ही दिमाग में आती रहती है, तो समझ लो गलत आपकी सोच रही हो, मन गलत काम कराया हो तो इनको सबको कर्मों को खत्म करने के लिए तन, मन, धन से सेवा कराई जाती है।

गुरु महाराज भी सेवा का विधान बनाए हुए थे। जितने भी महात्मा आए, सब सेवा का विधान बनाए। तो इससे कर्म कटते हैं। बराबर सेवा करते रहो। जो भी संगत का आदेश, संगत की रीति-नीति है, उसके हिसाब से आप लोग सेवा बराबर करते रहो। संगत की सेवा, दूसरे की सेवा करो। दूसरे के लिए जो किया जाता है वही परमार्थी काम होता है। वही इंसान कहलाता है। आदमी अपने स्वार्थ के लिए सब करता जाता है, लेकिन परमार्थी दूसरों के लिए किया करते हैं। तो आप लोग बराबर सेवा, ध्यान और भजन करते रहो। जो नए लोग आए हो, आपको नामदान दिया जाएगा। सन्तों की यह परंपरा रही है कि वो जीवों को नामदान देते हैं और उनकी संभाल करते हैं और उनको उनकी मेहनत के हिसाब से, श्रद्धा प्रेम के हिसाब से अपने घर अपने मालिक के पास पहुंचाते हैं।

*इंद्रियों का सुख हड्डी चूसने की तरह से होता है*

कुत्ते हड्डी बहुत पसंद करते हैं क्योंकि उसमें उनको खून मिलता है। हड्डी में खून नहीं है, वो तो जब हड्डी को चूसते हैं और जबड़े में वो हड्डी चुभती है, खून निकलता है तब उसको वह समझते हैं कि हड्डी में से खून निकल रहा है। ऐसे ही दुनिया का, इंद्रियों का सुख सुखदाई नहीं है। वह तो हड्डी चूसने की तरह से ही है।

*स्वच्छंधारी कौन होते हैं*

स्वच्छन्धारी वो जो दो बात बर्दाश्त कर लेता है। स्वच्छंद किसको कहते हैं? आजादी से कहीं घूमे, जब कोई गाली भी दे और उसका जवाब न दो बल्कि उसका पैर छू लो तब वो आपका दुश्मन नहीं बनेगा। तो दुश्मन जिनके बन जाते हैं वह आजादी से घूम नहीं सकते। हमेशा डरते रहते हैं, पता नहीं कब कौन हमला कर दे। और जब आपका कोई दुश्मन नहीं रहेगा तो स्वच्छन्धारी बन जाओगे। कहीं भी घूमो, कहीं भी आओ-जाओ, कोई शंका नहीं कि पीछे से, आगे से, दूर से कोई मार देगा, कुछ नहीं, तो वही स्वच्छन्धारी हो जाते हैं।







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