06.04.2024
प्रेस नोट
गोंडा (उ.प्र.)
*दिखावे की भक्ति का फल दूसरे लोग ले जाते हैं*
इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि भक्ति में लगना चाहिए, लीन होना चाहिए। दिखावे की भक्ति नहीं करनी चाहिए। अंदर से भक्ति करनी चाहिए।
भक्ति इस तरह की बताई गई जैसे मेहंदी के अंदर रंग रहता है। लेकिन रंग को डुबकोये रहती है, दिखाती नहीं है। जब कोई मेहंदी की पत्ती को पीसता है तब रंग मालूम पड़ता है। इसी तरह से, भक्ति ऐसी कीजिए, जान सके न कोये, जो मेहंदी के पात में, रंग रही डूबकोय। तो ऐसी भक्ति करनी चाहिए। दिखावे की भक्ति का फल दूसरे लोग ले जाते हैं। जो देखते हैं, बता दोगे, कह दोगे कि हमने ऐसी भक्ति किया, तन से सेवा किया, धन से सेवा किया, मन से सेवा किया, प्रचार करोगे तो वह बंट जाएगा। तो वह ले जाएगा तो क्या रह जाएगा आपके पास? इसलिए लगे रहना चाहिए।
*भवसागर से पार करने वाले गुरु नाम लगा दिए हैं*
आपको गुरु महाराज जैसे गुरु मिल गए। कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर नर उतरे पारा। भवसागर से पार होने का आपको नाम मिल गया और भवसागर से पार कराने वाले आपको गुरु, मल्लाह मिल गए जो सुमिरन ध्यान भजन का नाव लगा दिए हैं। अगर इसमें बैठने लग जाओ, सुमिरन ध्यान भजन करने का जो समय है, इस समय के नाव पर अगर आप बैठ जाओगे तो गुरु आपको इस भवसागर से पार कर देंगे। और नहीं तो इसीमें डूबोगे और उतराओगे, इसी में चिल्लाओगे, रोओगे, जीवन रोते-रोते बीतेगा और जब यह शरीर छूटेगा तो फिर रोने के लिए यहां आना पड़ेगा। इसलिए इससे पार होने के लिए जो गुरु ने रास्ता बताया है- मन तू भजो गुरु का नाम, उस नाम को आप लोग बराबर भजते रहो।
*प्रेम, भाव, भक्ति जागेगी*
महाराज जी ने बताया कि साप्ताहिक सतसंग पर आप जोर दे दो। साप्ताहिक सतसंग का केंद्र बना दो। वहां नए-पुराने, जो न आते हो, उनको बुलाओ। जब वहां लोग आने-जाने लग जाएंगे तो उनका प्रेम भाव भक्ति जगेगी। वहां पर विरह की प्रार्थना होनी चाहिए, अंदर के भाव प्रकट होने चाहिए और वहां पर ध्यान भजन होना चाहिए। घर पर लोग नहीं बैठ पाते हैं लेकिन दो घंटे का समय आप इसके लिए निश्चित करोगे तो इसमें डेढ़, पौने दो घंटा, सवा घंटा तो बैठेंगे ही बैठेंगे, 15 मिनट लेट भी आए तो भी कुछ समय तो बैठेंगे ही बैठेंगे, तो एक आदत तो बनेगी।
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सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज |
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