जयगुरुदेव
25.04.2024
प्रेस नोट
पटना (बिहार)
*जब समर्थ गुरु के दिए नामदान के अनुसार करोगे तो धार्मिक किताबों में लिखी हुई सारी चीजें दिखने सुनाई देने लगेंगी*
*समरथ गुरु की पूजा में सबकी पूजा, गुरु बेदाग होते हैं*
इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त महाराज जी ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि
आप आंख बंद करोगे, अंदर में ध्यान लगाओगे, मन को रोकोगे तो ऊपरी लोकों में जाने लग जाओगे। इसी मनुष्य शरीर में देवी-देवताओं का दर्शन, जो महात्माओं ने कहा, देखा, लोगों ने कहा, वह दर्शन आपको होने लगेगा। और जब ऊपर का नजारा दृश्य देखोगे तो खुश हो जाओगे। मणि मोतियों के चबूतरे, बिना भूमि एक महल बना है, तामे ज्योति आपरी रे, अंधा देख-देख सुख पावे, बात बतावे सारी रे।
यह जो कह करके गए, देखे-सुने, वह बातें जो बता कर गये, किताबों में लिखा, वह जब आपके सामने आएंगे, उनको देखोगे, सुनोगे तो मस्त होकर दूसरों को बताने लगोगे। और जैसे ही बताओगे तैसे ही वह बंद कर देगा। फिर कुछ दिखाई सुनाई नहीं पड़ेगा। इसीलिए (अंतर में जो दिखे उसे) किसी को भी बताना मत। यह चीज रट लो, याद कर लो। और आप मन को रोक करके लगातार देखने सुनने की कोशिश करोगे तो कोई आप सौतेले बेटे नहीं हो, बहुत से लोगों को दिखाई, सुनाई पड़ रहा है। आपके ऊपर भी हमारे गुरु महाराज उस प्रभु की दया हो जाएगी। तो कुछ भी दिखाई, सुनाई पड़े, किसी को भी मत बताना।
*समरथ गुरु की पूजा में सबकी पूजा*
गुरु के आदेश की पालना को ही गुरु भक्ति कहते हैं। गुरु का आदेश दो तरह का होता है। एक बाह्य आदेश और एक आंतरिक आदेश। बाह्य आदेश में आता है- गुरु की सेवा। गुरु की सेवा में सबकी सेवा। कहा गया है- गुरु की पूजा में सबकी पूजा और गुरु समान कोई देव न दूजा। तो पूजा का मतलब क्या होता है? खुश किया जाता है। जैसे देवताओं को खुश करते हैं। खुश हो जाएंगे तो हमारे धन पुत्र परिवार में बढ़ोतरी कर देंगे, लोग मूर्तियों के सामने, उनको देवता मान करके उनकी पूजा सेवा करते, फूल-पत्ती, प्रसाद चढ़ाते हैं। ऐसे ही गुरु की पूजा। गुरु कब खुश होंगे? जब उनके आदेश का पालन किया जाएगा तब गुरु खुश होंगे।
अब अगर मान लो इनमें से (आई हुई भक्तों की भारी भीड़ में) बता दिया जाए कि यह तुम्हारे गुरु है, और इनकी सेवा करो, अब तुम इनका पैर दबाओ, हाथ दबाओ और अगर इतने लोग अगर हाथ-पैर दबाने लगे तो हाथ-पैर का क्या हाल होगा? तो ऐसी युक्ति बता देते हैं कि सब लोगों को सेवा मिल जाए। जैसे गुरु महाराज बता के गए कि तुम प्रचार प्रसार करना, लोगों को शाकाहारी नशा मुक्त, सतयुग के लायक बनाना। क्योंकि कलयुग में ही सतयुग कुछ समय के लिए आएगा। और अगर यह सतयुग के लायक नहीं बने तो कलयुग इनकी सफाई कर देगा, अपने साथ लेकर चला जाएगा। इसलिए इनको समझाओ कि तुम्हारा यह शरीर हमेशा नहीं रहेगा। एक दिन इसको छोड़ना पड़ेगा। क्योंकि तुम इस मृत्यु लोक में रहते हो।
यहां का यह नियम है कि जो पेड़ फलता है, झड़ता है; जो आग जलती है वह बुझाती है; जो पैदा होता है वह मरता है। और आत्मा के कल्याण के लिए उपाय भी बताओ- केवल नाम का सुमिरन करने से भवसागर से पार हो सकते हो। नामदान दिलाओ और सुमिरन ध्यान भजन कराओ। गुरु महाराज जीवों के कल्याण का यह काम आखिरी वक्त तक करते रहे और बता कर भी गए। तो गुरु भक्ति करनी चाहिए। गुरु के आदेश का पालन करना चाहिए। इससे कर्म कटते हैं। कर्मों का बड़ा जटिल विधान बना दिया गया है। और सुमिरन ध्यान भजन से कर्म कटते हैं, यह आंतरिक भक्ति है। जीवात्मा न फंस जाए, जीवों पर दया करो, उस आदेश का पालन करो। तो उससे कर्म कटते हैं। कर्मों को काटना जरूरी होता है। कर्मों के विधान से कोई बच नहीं पाया है।
*गुरु बेदाग होते हैं*
वेदव्यास के पास जब सुखदेव लौट कर आए तब वेदव्यास ने पूछा, अरे गुरु मिले, बोले मिले। कैसा गुरु मिला? कुछ नहीं बोले। वेदव्यास बोले, अरे तेरा गुरु कैसा है? सूरज जैसा है या चंद्रमा जैसा है? बोले है तो सूरज जैसे ही, चमक तो उतनी ही है, रोशनी तो उससे भी ज्यादा है लेकिन इस सूरज में गर्मी तपन है और गुरु में शीतलता है, ठंडाई है। है तो चंद्रमा जैसे। चांद जब निकलता है तब अंधेरे को मिटाता है। है तो तिमिर को मिटाने वाले ही गुरु है लेकिन इस चंद्रमा में दाग है और हमारे गुरु में कोई दाग नहीं है, वह बेदाग है। तो मैं कहां तक गुरु की महिमा बताऊ पिताजी। गुरु की महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता है। धरती सब कागज करूं, लेखन सब वन राय, सात समुद्र वशी करु, गुरु गुण लिखा न जाए। गुरु के गुण को लिखा ही नहीं जा सकता है। क्योंकि सच्चे परोपकारी तो समरथ गुरु ही होते हैं। इसलिए कहा गया है- सन्तों की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार। अनंत उपकार इनका होता है। गुरु महाराज ने देखो हमारे-आपके लिए अनंत उपकार किया है। सबसे बड़ा उपकार तो यही किया कि हमको-आपको अपनाया और नाम रूपी रत्न जड़ी दिया। यह जो नाम दान दिया, यही सबसे बड़ा उपकार है। और जो जितना मेहनत किया, उसको उसी हिसाब से उन्होंने दया दुआ दिया, सब किया।
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