🌹 जयगुरुदेव 🌹
✰ कर्म किसी को नहीं बख्शतें ✰
एक बार बाबा सावन सिंह जी के समय की बात है आश्रम में लंगर बंट रहा था तभी वहां पर एक गरीब आदमी आया वह आदमी बैल गाड़ी चलाकर कर अपनी रोजी-रोटी कमाकर खाता था.
वह आश्रम के बाहर अपनी बैलगाड़ी को खड़ा करके हाथ मुंह धोकर आश्रम में जाकर बाबा जी को मत्था टेक कर बाहर आकर (हलवा प्रसाद) की लाईन में लग जाता है.
हलवा प्रसाद पर सेवादार भाई सेवा सिंह जी की सेवा थी वह गरीब आदमी बार-बार चिंतित था कि उसके बैल कहीं बैलगाड़ी को लेकर न चले जाएं इसलिए उसको बड़ी हड़बड़ाहट हो रही थी. यह चीज सेवादार सेवा सिंह देख रहा था. वह व्यक्ति लाइन छोड़कर प्रसाद लेने आगे आ गया तो सेवादार सेवा सिंह उस पर गुस्सा हो गया और उसे डांटते हुए बोला कि पीछे हट रीछ (भालू) दी तरह ऊपर चडँया आना हे यह बोलकर उसे पीछे हटा दिया और प्रसाद भी नहीं दिया।
अब वह गरीब आदमी साईड में खड़ा होकर अपनी बारी का इंतजार करता रहा सेवादार संगत को प्रसाद देता रहा मगर उस गरीब को नहीं दिया तभी उस गरीब ने देखा की थोड़ा सा प्रसाद नीचे गिरा हुआ है उसने प्रसाद उठाया और अपने मत्थे पर लगाकर गुरु प्रसाद खा लिया जब वह बाहर निकला तो उसके मन में यह विचार घूमता रहा कि सेवादार ने उसे रीछ क्यूँ कहा जबकि सेवादार खुद रीछ की तरह व्यवहार कर रहा था यह सोच करता हुआ मन में लिए अपने काम पर चला गया कुछ दिन बाद उस सेवादार (सेवा सिंह जी) की मृत्यु हो गई.
उसकी जगह उसके बेटे को सेवादार बना दिया गया समय बीता गया। एक दिन एक मदारी जो कि एक रीछ (भालू) को लिए आश्रम के बाहर आया और उसे बाहर खड़ा कर खुद हाथ मुंह धोकर आश्रम के अंदर चला गया मत्था टेककर जब वह प्रसाद लेकर बाहर आया तो उसने थोड़ा प्रसाद भालू को भी दिया भालू दो पैरों पर खड़ा होकर प्रसाद खाया और आश्रम की और मुंह करके दोनों हाथ जोड़कर नीचे की और झुक गया और आंखों में आसूं छलकने लगे कुछ संगत वहां खड़ी उसकी और देख रहीं थीं.
अब तो यह रोज का नियम हो गया उस मदारी का रोज आना और वहीं प्रतिक्रया दोहरानी जिसे सारी संगत देखती। एक दिन सेवादारों ने बाबा जी से पूछा की बाबाजी यह मदारी रीछ (भालू) को लेकर रोज आता है रोज यह आपका प्रसाद खाता है और मत्था भी टेकता है मगर जब यह मत्था टेकता हैं तो इस की आंखों में पानी क्यों भर आता है यह सब क्या है ?
तब बाबा सावन सिंह जी ने उन्हें विस्तार से बताया की यह अपने पिछले कर्मों का भोग भुगतान कर रहा हैं और जानते हो यह कौन हैं ? तभी सेवादारो ने कहा बताइये गुरु जी कौन हैं तब गुरु जी नें बताया की यह हमारा वहीं सेवादार (सेवा सिंह) हैं सेवादारो में सेवा सिंह जी का बेटा भी बैठा था उसने बाबाजी के आगे हाथ जोड़कर विनती की कि मेरे पिताजी ने तो आपकी जीवन भर सेवा की है बाबाजी फिर भी उनकी यह दुर्दशा।
तब बाबाजी ने उसे समझाया कि अपने किये कर्मो की सजा हर किसी को भुगतनी पड़ती है यह सुन सेवा सिंह का बेटा गुरु जी के चरणों में गिर कर रोने लगा और कहने लगा की गुरुजी आप तो सबको बख्श सकतें हैं आपसे मेरी हाथ जोड़कर विनती है की मेरे पिता जी को बख्श दो उन्हें इस योनि से मुक्त कर दो बाबा जी को उस पर दया आ गई और उन्होंने थोड़ा सा प्रसाद अपने हाथ से दिया और कहां कि जा यह प्रसाद उस रीछ को अपने हाथों से खिलाकर आ वह प्रसाद लेकर गया और उस रीछ को खिला दिया इस तरह (सेवादार सेवा सिंह जी) को भालू की योनि से मुक्ति मिली।।
*भावार्थ >>>*
भगवान ना जानें किसको किस रुप में मिल जाए कभी भी किसी गरीब का अपमान न करें और अगर आप किसी भी रुप कोई भी सेवा संगत की कर रहे हैं तो कभी भी किसी से झल्लाकर न बोले अन्यथा आपकी की गई सेवा व्यर्थ हो जाती है*
*जयगुरुदेव*
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सतसंग वचन |
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Jaigurudev