जयगुरुदेव
01.11.2023
प्रेस नोट
सहारनपुर (उ.प्र.)
*अकबर के प्रसंग से समझाया, नीयत दुरुस्त रखोगे तो बरकत होगी*
*मन मुखता नहीं गुरु मुखता होनी चाहिए -सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज*
पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 1 सितंबर 2020 सायं उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि
इधर से जब आपका ध्यान उधर की तरफ चला जाएगा तो अंदर में हो रही (दिव्य) आवाज आपको पकड़कर के खींच करके ऊपर की तरफ ले जाएगी। फिर अंधेरा खत्म हो जाएगा। आपको सतसंग में सुनाया गया, वहां की रोशनी (प्रकाश) के आगे यहां इस दुनिया की बाहरी आंखों से दिखाई देने वाली चमक-दमक कुछ नहीं है। जैसे सूरज के सामने दीपक जला दें तो उस दीपक की रौशनी की कीमत कुछ नहीं। इसी तरह से हो जाएगा।
आंख बंद करते हो, अंधेरा रहता है। यहां आंखों से देखने वाले उजाले और अंधेरे होते रहते हैं लेकिन वहां तो उजाला ही उजाला है। परम प्रकाश रूप दिन राती, नहीं कछु चाहिए दिया घृत भांति। वहां तो दिया चिराग की कोई जरूरत ही नहीं है। जब वह आवाज, रोशनी आपके पकड़ में आएगी तब यह जड़ता खत्म होगी। नहीं तो यह शरीर एक तरह से जड़ है। चेतना तो इसमें है, चेतनता तो आती है लेकिन जड़ता भी आ जाती है। सोते समय यह शरीर जड़ रहता है, हिल-डुल नहीं सकता है।
एक जगह से दूसरी जगह नहीं ले जा सकते हो, जड़ता आ जाती है। और जब जागृति आ गई, जीवात्मा की ताकत, प्रकाश जब इस शरीर में आ गया, तब चेतनता आ जाती है। जैसे जब प्रकाश के ऊपर कोई चीज आप ढक दो तो अंधेरा रहेगा और हटाने पर उजाला हो जाता है ऐसे ही फिर चेतनता आ जाती है। लेकिन परमानेंट स्थाई चेतनता नहीं आती है।
जब तक वह चेतनता नहीं आएगी तब तक निश्चित नहीं होगा कि शरीर छूटने के बाद आपका मुक्ति मोक्ष ही हो जाएगा, आप अपने वतन मालिक के पास की पहुंच जाओगे, उसमें समा जाओगे, साजुग्य, सालोक मुक्ति आपको मिल जाएगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है। यह जीवन आपका अधूरा रह जाएगा। आपके अंदर संस्कार बन गए, आप ध्यान भजन, आदेश का पालन, गुरु भक्ति करते हो, गुरु की दया लेते हो। सोचो बगैर किये हुए हमारी सुरत निकल कर के अपने लोक पहुँच जाइए यह कैसे संभव होगा। आपको युक्ति तो करनी पड़ेगी।
कहते हैं- युक्ति से मुक्ति मिलती है तो इस जीवात्मा की मुक्ति तभी मिलेगी। मन मुखता को छोड़ो, गुरु मुखता लाओ। कुछ लोगों का मन (साधना में) लगा, उनको (साधना में) रस मिला। जो साधना लगातार मन को रोक करके करते हैं, उनके अंदर रिद्धि-सिद्धि, कामधेनु, कल्पवृक्ष, अणुमा, महिमा, गरीमा, लघुमा आदि सिद्धियाँ आ जाती है। लेकिन यह सिद्धियां और यह शक्ति मन मुखता और अंहकार को खत्म नहीं कर पाती है।
जब जीवात्मा ऊपर की तरफ निकलती है तब यह सिद्धियां शरीर में आती है और कुछ दिन इसमें रुक जाती है तो समझ लो फिर यह सिद्धियां भी खत्म हो जाती है फिर जो मन सुरत जीवात्मा के साथ रहता है, वह फिर इससे अपराध और पाप कराने लग जाता है। मन मुखता नहीं गुरु मुखता होनी चाहिए।
*साधक हमेशा ऊपरी लोकों की मस्ती में डूबा रहता है*
महाराज जी ने 25 जुलाई 2020 सांय उज्जैन आश्रम में बताया कि जो असल में है मस्ती में डूबे, होश कब है उन्हें जिन्दगी का। साधक यहां तो रहता है, काम सब करता रहता है लेकिन मस्ती में हमेशा डूबा रहता है। क्योंकि ऊपरी लोकों की मस्ती ही अलग है। वह गिजा, खुराक यहां है ही नहीं। यहाँ कुछ है ही नहीं। जब अच्छी चीज, अच्छा भोजन, अच्छा रहने की जगह मिल जाती है, जैसे यहां इस धरती पर है, ऐसे ही जीवात्मा को जब ऊपर की खुराक मिल जाती है तब वहीं रहना पसंद करती है।
*नीयत खराब होने से क्या होता है?*
महाराज जी ने 15 जून 2023 सांय सहारनपुर (उ.प्र.) में बताया कि बुड्ढे ही बताते हैं। देखो नीयत दुरुस्त रखोगे तो बरकत होगी। नियत जब खराब होती है तो कुदरत बरकत बंद कर देता है। बादशाह अकबर घूमने चला जाता था।
पहले के राजा भेष कपड़ा बदल करके अपने राज्य में घूमते, पता लगाते रहते थे। कोई किसी को सता, मार तो नहीं रहा है। किसके पास खाने को है, किसके पास खाने का नहीं है तो उसको भिजवा देते थे।
गरीब लोगों के पास कपड़ा, अनाज, जरूरत की चीजों को भिजवा देते थे। और नहीं तो दूसरा जब देखता है, अपनी-अपनी नजर से देखता है। गरीबी, अमीरी अपने-अपने नजर से देखता है। कोई बहुत बड़ा आदमी हो, उसके पास गाड़ी में पेट्रोल भराने के लिए पैसा न रह जाए तब तो कहेगा हम बहुत गरीब हो गए।
अब कोई ऐसा है जिसकी बस खाने को रोटी कपड़ा नहीं है तो सच पूछो तो वो गरीब है। वह तेल भराने वाला आदमी क्या समझेगा कि गरीबी क्या चीज होती है।
लेकिन बादशाह लोगों का अनुभव होता था, वह देखते थे। देखकर ही परख जाते थे। उनके अंदर संस्कार होता था। पुण्य कर्म जो करता है, वह स्वर्ग बैकुंठ में जाता है।
जब समय पूरा हो जाता है तब पुण्य क्षीण हो जाता है तो मृत्युलोक में ही आना पड़ता है। राजा महाराजा के यहाँ जन्म मिलता है। तो उनके संस्कार ज्ञान अच्छे होते हैं। देखो, दो बच्चे पैदा होते हैं। एक का संस्कार अच्छा होता है, किसी का खराब हो गया तो उनका दिल दिमाग बुद्धि एक जैसी नहीं रहती है।
ऐसे ही राजा घूम करके देखा करते थे। चला गया जंगल में। प्यास लगी, खोजा पानी, नहीं मिला। तब तक एक बुढ़िया अनार बेचती हुई दिखाई पड़ी। बोला अनार का रस निकाल दो, पिएंगे। निकाल दिया। बुड़िया से पूछा कितने का है? बोली एक आने का। बादशाह ने सोचा एक अनार, एक आने में। इतने अनार लगे हुए हैं तो बहुत कमाई होती होगी। जब लौट कर के आया तो कहा अनार के ऊपर टैक्स लगा दिया जाए।
इसमें बड़ी अच्छी आमदनी है। एक साल के बाद फिर उधर ही घूमता हुआ गया। उसको याद आया, बुढ़िया अनार बेच रही थी। चलकर के अनार पिया जाए, बड़ा मीठा अनार था। बुढ़िया से कहा अनार का रस निकालो, पिएंगे। पहली बार जब आया था तो बुढ़िया ने एक ही अनार तोड़ा था और उसके रस से गिलास भर गया था।
अबकी बार तीन अनार तोड़ा और रस निकाला तो भी गिलास में रस कम रह गया, पूरा नहीं भर पाया। बादशाह ने कहा पिछली साल में आया था तो एक अनार से गिलास भर गया था और इस साल क्यों नहीं भरा? तो बुढ़िया को तो यह मालूम नहीं था कि यह बादशाह है। बुढ़िया ने कहा इस मुल्क के बादशाह की नीयत खराब हो गई है।
इसीलिए कुदरत ने बरकत बंद कर दिया। बताओ अन्य चीजों से बादशाह का पेट नहीं भरा और हम गरीबों के ऊपर टैक्स लगा दिया, हमारे गरीब के पेट के ऊपर पैर मारा, इसीलिए कुदरत ने बरकत बंद कर दिया। आपको समझने की जरूरत है।
इस समय लोग भले ही कोठियां तैयार कर लेन, एक करोड़ की गाड़ी दरवाजे पर खड़ी कर ले लेकिन पता लगाओ, कर्जदार कितने हैं? पता चलेगा पांच करोड़, दस करोड़ के कर्जदार है, घर में पीतल का बर्तन भी नहीं मिलेगा। जबकि बड़े आदमी चांदी के बर्तन में खाते थे। गरीब घर की औरतों के पैरों में जूतियां भले ही न रही हो, बिवाईयां फट जाती हो लेकिन कम से कम एक पाव सोना, दो किलो चांदी के गहने शरीर पर हुआ करते थे। और अब खोजो घरों में तो वही स्टील का बर्तन है, चोर भी ले जाए तो पछताए। क्योंकि दो रुपये का बिकने वाला है।
तो यह सब कहां चला गया? सब दिखावे में चला गया। जो बड़े आदमियों के घर की औरतें कही जाती है, ये वो कीमती सामान खरीद लाती है जो खराब हो जाए तो उसको स्क्रैप (कबाड़) कहते हैं, उसके भाव भी न बिके। तो अब दिखावे में इंसान ज्यादा आ गया। पहले मोटा झोटा ही खाते थे, जब सन्त सतसंग मिलता था, बुड्ढे बुजुर्ग के पास लोग बैठते थे, इतने रोग अस्पताल नहीं थे, इतने डॉक्टर वैद्य नहीं थे। कोई-कोई वैद्य जिले में एक हुआ करता था।
वहां जब जड़ी बूटियों से नहीं ठीक होता था तब उनके पास जाते थे। वह कई जड़ी-बूटियों को कूट पीस करके रखते थे। उन से लोगों को लाभ मिलता था। और अब तो आये दिन अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है। तो कारण क्या है? खान-पान खराब हो गया, चाल चलन बिगड़ गया।
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कम मेहनत में ज्यादा लाभ प्राप्त करने का तरीका बताने वाले महात्मा
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