जयगुरुदेव
22.10.2023
प्रेस नोट
बावल (हरियाणा)
*सन्त बाबा उमाकान्त जी ने बताया मन, चित, बुद्धि, अंहकार की डोर किसके हाथ में है*
*अंहकार कब खत्म होता है, रिद्धि सिद्धियों के अधिकार क्या है?*
अंदर की असली सच्ची अध्यात्मिक साधना बताने वाले, काल भगवान् के जालों से निकालने वाले, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 25 अक्टूबर 2020 दोपहर उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि जब लोग (साधना करके) शिव की जगह पर, हृदय चक्र पर पहुंचते हैं तब अहंकार खत्म होता है। नहीं तो शिव का काम संहार करना है। अहंकार ही संहार करता है, विनाश का कारण बन जाता है।
*मन, चित, बुद्धि, अंहकार की डोर किसके हाथ में है*
महाराज जी ने 4 अक्टूबर 2020 उज्जैन आश्रम में बताया कि नर्क और स्वर्ग दोनों में जाने की व्यवस्था बनाये रखते हैं। जैसे दुख और सुख, स्वर्ग और नर्क, धरती और आसमान बना दिया। ऐसे ही व्यवस्था बनाए रखते हैं। पाप और पुण्य बनाया, अच्छा-बुरा जिसको कहते हैं। मन चित बुद्धि बना दिया और रजोगुण तमोगुण सतोगुण बना दिया। अब इनकी डोर, इन्ही चारों के हाथ में हैं। मन की डोर त्रिदेव की माता, आद्या महाशक्ति जिनको महामाया, काल माया कहा गया, इनके हाथ में है। चित की डोर ब्रह्मा के हाथ में, बुद्धि की डोर विष्णु के हाथ में, अंहकार की डोर शिव के हाथ में है और यही चलाते हैं।
*रिद्धि सिद्धियों के अधिकार क्या है?*
महाराज जी ने 11 नवंबर 2022 प्रातः बावल आश्रम में बताया कि जब जीवात्मा इधर से निकली, खिंचाव हुआ, ऊपर की तरफ तीसरे तिल से जब गई, उससे कर्म जब हटे, जब जीवात्मा ऊपर की तरफ प्रकाश में आगे बढ़ी। अभी तो आंख बंद कर लो तो अंधकार दिखता है। अंधेरे में आदमी कहीं आ-जा नहीं सकता है। उजाला हो जाए तो आगे बढ़ सकता है। उसी उजाले में इस काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार का रंग दिखाई पड़ता है।
इनका नीला पीला सफेद हरा आदि इनका रंग है। तो यह रंग धीरे-धीरे तेज रोशनी में खत्म हो जाते हैं। रोशनी आगे मिलती जाती है, बढ़ती जाती है। इस तरह का निरंजन ने जाल बना दिया गया है। उसी समय रिद्धि-सिद्धि, कामधेनु, कल्पवृक्ष, अणुमा, गरिमा, महिमा, लघुमा, वशीकरण आदि आठ सिद्धि, नव निधि आ जाती है फिर बाधा डालती है। कल बल छल कर जाए समीपा, आंचल मार बुझावे दीपा। दीपक बुझाने का मतलब, जो अंधेरे से उजाले में प्रकट किया, उसी को ये बुझाने की कोशिश करने लगती है। फिर (साधना में) बाधा आना शुरू हो जाता है। फिर लोभ और लालच में आदमी फंस जाता है। इनको ऊपरी लोकों की चीजों को देने का अधिकार नहीं है।
उनके अधीन ऊपरी लोकों की चीजें नहीं है और न ये रिद्धि-सिद्धि ऊपर जा सकती है। यह नीचे की चीजों को दे सकती है। जैसे लोग गद्दी पर लिखते है- रिद्धि सिद्धि गणेशाय नमः तो यह जहां रुक जाती है वहां किसी चीज की कमी नहीं रहती है, वहां भंडार रहता है। यह शक्ति प्रकट हो जाती है। अणुमा शक्ति से आदमी छोटा बन जाए, गरिमा शक्ति से बड़ा बन जाए, वशीकरण आ जाए तो देखते ही वश में हो जाए आदमी। यह सब सिद्धियां आ जाती है। फिर आदमी इसका उपयोग, इस्तेमाल करने लगता है तो उसमें सम्मान, धन प्रतिष्ठा मिलता है। हर तरह का हमला होता है।
जड़ माया, चेतन माया के विभिन्न रूप हैं। सब का हमला होता है। जड़ माया- रुपया, पैसा, सोना, चांदी, हीरा, मोती आदि को जड़ कहते हैं। एक जगह डाल दो तो अपनी इच्छा के अनुसार स्वयं दूसरी जगह आ-जा नहीं सकते हैं। कोई ताकत उसको ले जा सकती है चाहे मनुष्य की ताकत या हवा उसको ले जा सकती है। चाहे तेज आग में पिघलने लगे, अपना रूप बदलता है तो समझो कोई ताकत ले जा सकती है। जैसे पत्थर, पेड़ जड़ है। इनके विभिन्न रूप होते हैं। और चेतन माया के भी विभिन्न रूप है। बेटी, बहन, पत्नी, मां बन करके आती है लेकिन माया का रूप सब में रहता है। कोई ज्यादा ताकतवर होती है, ज्यादा कर्मों को इकट्ठा कराती है। कुछ कर्मों को कम करवाती है लेकिन माया का ही जोर होता है।
कोई कहते हैं कि कोई नहीं है लेकिन मेरी मां ही काम में बाधा डालती है कि तुम संगत में मत जाओ, काम मत करो, तुम यह करो, वह करो। ऐसे बच्चे भी मिलते हैं कि मां नहीं मानती है। कहने का मतलब यह है कि आध्यात्मिक विकास में यह बाधाएं आती है। काल भी बेटा, पति, ससुर आदि के रूप में आता है और फंसाने का काम करता है। गृहस्थ आश्रम छोड़ना भी नहीं है, रहो, एक-दुसरे का लेना-देना अदा करो और याद रखो कि यह अपना देश नहीं है, ये काल भगवान् का देश है। जब तक अपने असला घर नहीं पहुंचेंगे तब तक शान्ति, सुख नहीं है।
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गहरे ज्ञान की बात बताने समझाने वाले परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज |
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